सांख्यसूत्र
सांख्यसूत्र, हिन्दुओं के सांख्य दर्शन का प्रमुख ग्रन्थ है। परम्परा से कपिल इसके रचयिता माने जाते हैं। इसे सांख्यप्रवचनसूत्र भी कहते हैं। अपने वर्तमान रूप में, यह अपने मूल रूप में नहीं उपलब्ध है। यद्यपि सांख्य दर्शन कम से कम ईसा-पूर्व तीसरी चौथी शताब्दी से प्रचलित रहा है किन्तु वर्तमान में उपलब्ध ग्रन्थ का रचनाकाल ईसा के उपरान्त १४वीं शती माना जाता है। इस पर पहला भाष्य १६वीं शती में किया गया था।
इसमें सृष्टि (cosmology) का विवेचन है जो ब्रह्माण्ड के स्तर पर भी है और व्यक्ति के स्तर पर भी। इसमें छः अध्याय हैं। इसमें प्रकृति एवं पुरुष दोनों के द्वैत स्वरूप का विवेचन है। इसके अलावा कैवल्य (मोक्ष) का विवेचन है; 'ज्ञान का सिद्धान्त' प्रतिपादित किया गया है; आदि
- छः अध्याय
- (१) विषयाध्यायः
- (२) प्रधानकार्य
- (३) वैराग्याध्यायः
- (४) आख्यायिका
- (५) परमतनिर्जयः
- (६) तन्त्राध्यायः
भाष्य
संपादित करें- गौड़पाद का भाष्य
- वाचस्पति मिश्र द्वारा रचित तत्वकौमुदी
- विज्ञानभिक्षु की सांख्यप्रवचनभाष्य
- मठराचार्य कृत मठरावृत्ति
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- सांख्यसूत्राणि (संस्कृत विकिस्रोत)
- सांख्यसूत्र का सम्पूर्ण पाठ (संस्कृत विकिपुस्तकानि)
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