सारे जहाँ से अच्छा
“सारे जहाँ से अच्छा” (औपचारिक रूप से तरानाय-हिन्दी) एक उर्दू ग़ज़ल है जिसे प्रसिद्ध शायर अल्लामा मुहम्मद इक़बाल ने 1904 में लिखा था। यह गीत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रवाद और ब्रिटिश राज के विरोध का प्रतीक बन गया और आज भी भारत में देशभक्ति का प्रतीक माना जाता है।
बोल | मुहम्मद इक़बाल |
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संगीत के नमूने | |
पृष्ठभूमि और उत्पत्ति
संपादित करें"सारे जहाँ से अच्छा" की रचना उस समय हुई जब भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर पहुँच रहा था। यह ग़ज़ल 16 अगस्त 1904 को साप्ताहिक पत्रिका इत्तेहाद में प्रकाशित हुई और 1905 में लाहौर के सरकारी कॉलेज में इक़बाल द्वारा सार्वजनिक रूप से पढ़ी गई। उस समय इक़बाल लाहौर के सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर थे। इक़बाल को उनके छात्र लाला हरदयाल ने एक कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया था। भाषण देने के बजाय, इक़बाल ने पूरे उत्साह से "सारे जहाँ से अच्छा" गाया। यह ग़ज़ल न केवल हिंदुस्तान के प्रति गहरा लगाव और स्नेह व्यक्त करती है, बल्कि इसमें सांस्कृतिक स्मृति और एक प्रकार की विषादपूर्ण भावना भी दिखाई देती है।[1]
1905 में, 27 वर्षीय इक़बाल ने भारतीय उपमहाद्वीप के भविष्य को एक बहुलतावादी और संयुक्त हिंदू-मुस्लिम संस्कृति के रूप में देखा। इस कविता में हिंदुस्तान (जिसमें आज का भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश शामिल हैं) की महानता और एकता की प्रशंसा की गई थी। बाद में उसी वर्ष, इक़बाल यूरोप के लिए तीन साल की यात्रा पर गए, जिसने उन्हें एक इस्लामी दार्शनिक और भविष्य के इस्लामी समाज के दृष्टा में बदल दिया। बाद में उन्होंने पाकिस्तान आंदोलन की नेतृत्व की।
यह ग़ज़ल हिंदुस्तान की सुंदरता, संस्कृति और एकता की प्रशंसा करती है, जिसमें देश के विभिन्न समुदायों के बीच आपसी भाईचारे पर जोर दिया गया है। इक़बाल का उद्देश्य था कि हिंदुस्तानियों के बीच गर्व और एकता की भावना जागृत की जाए, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय से हों। इस गीत में हिंदुस्तान को दुनिया में श्रेष्ठ बताया गया है।
इक़बाल के विचारों का विकास
संपादित करेंहालाँकि “सारे जहाँ से अच्छा” हिंदुस्तान की महानता को दर्शाता है, इक़बाल के विचार समय के साथ बदलते गए। 1910 तक, उन्होंने एक वैश्विक और इस्लामी दृष्टिकोण को अपनाया, जिसे उन्होंने बच्चों के लिए लिखे एक और गीत “तराना-ए-मिल्ली” में व्यक्त किया। इस नए गीत में उन्होंने अपने देश “हिंदुस्तान” के स्थान पर पूरी दुनिया की बात की। बाद में, 1930 में, उन्होंने मुस्लिम लीग के वार्षिक सम्मेलन में अपने ऐतिहासिक भाषण में एक अलग मुस्लिम राष्ट्र का समर्थन किया, जिसने बाद में पाकिस्तान की स्थापना की प्रेरणा दी।[2]
भारत में लोकप्रियता
संपादित करेंभले ही इक़बाल ने बाद में पाकिस्तान के विचार का समर्थन किया, “सारे जहाँ से अच्छा” आज भी भारत में बेहद लोकप्रिय है। यह गीत विशेष रूप से सैन्य परेड और देशभक्ति के कार्यक्रमों में गाया जाता है और इसे भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक एकता का प्रतीक माना जाता है।
- कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने इसे 1930 के दशक में पुणे के यरवदा जेल में बंदी रहने के दौरान सौ से अधिक बार गाया था।[3]
- इस गीत की सबसे प्रसिद्ध धुन 1950 के दशक में प्रख्यात सितार वादक पंडित रवि शंकर ने तैयार की थी।[4] 1930 और 1940 के दशक में इसे एक धीमी धुन में गाया जाता था। 1945 में, जब पंडित रवि शंकर मुंबई में भारतीय जन नाट्य संघ (IPTA) के साथ काम कर रहे थे, उन्हें के. ए. अब्बास की फिल्म धरती के लाल और चेतन आनंद की फिल्म नीचा नगर के लिए संगीत बनाने के लिए कहा गया। उसी समय, उन्हें “सारे जहाँ से अच्छा” गीत के लिए भी संगीत तैयार करने को कहा गया। 2009 में शेखर गुप्ता के साथ एक साक्षात्कार में रवि शंकर ने बताया कि उन्हें उस समय की मौजूदा धुन बहुत धीमी और उदास लगी। उन्होंने इसे अधिक प्रेरणादायक बनाने के लिए एक शक्तिशाली धुन पर सेट किया, जो आज इस गीत की प्रसिद्ध धुन है। इसे बाद में एक समूह गीत के रूप में आजमाया गया।
- आशा भोसले ने 1959 की हिंदी फिल्म “भाई बहन” में भी ये गीत गाया है।[5]
- इस गीत से जुड़ी एक यादगार घटना 1984 में हुई जब भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा अंतरिक्ष में गए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि भारत अंतरिक्ष से कैसा दिखता है, तो उन्होंने इस गीत की पहली पंक्ति “सारे जहाँ से अच्छा” के माध्यम से जवाब दिया।[6]
- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस कविता को उद्धृत किया था।[7]
- यह गीत भारत में स्कूलों में एक देशभक्ति गीत के रूप में लोकप्रिय है, जिसे सुबह की प्रार्थना सभाओं के दौरान गाया जाता है, और भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक मार्चिंग गीत के रूप में बजाया जाता है। इसे हर साल भारतीय स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और बीटिंग रिट्रीट समारोह के समापन पर सशस्त्र बलों के बैंड द्वारा बजाया जाता है।
गीत
संपादित करेंउर्दू | देवनागरी | टिप्पणी |
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संगीत
संपादित करेंइन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- ↑ IndiaToday.in (April 21, 2016). "Saare Jahan Se Accha: Facts about the song and its creator". India Today. मूल से September 15, 2024 को पुरालेखित.
- ↑ Sultan, Ahmad (2012-04-16). "Is Allama Iqbal relevant in today's politics?". The Express Tribune (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-09-15.
- ↑ "Saare Jahan Se..., it's 100 now". The Times of India. 2005-04-19. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-8257. अभिगमन तिथि 2024-09-15.
- ↑ Jha, Subhash K. (2020-04-07). "'Sare Jahan Se Achcha' was composed by Ravi Shankar!". National Herald (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-09-15.
- ↑ DesiChain (2016-02-05), Saare Jahaan Se Accha: By Asha Bhosle - Bhai Bahen (1959) - Hindi [Gandhi Special] With Lyrics, अभिगमन तिथि 2024-09-15
- ↑ "Rakesh Sharma B'day: अतंरिक्ष से भारत के बारे में कहा था 'सारे जहां से अच्छा'". News18 हिंदी. 2023-01-13. अभिगमन तिथि 2024-09-15.
- ↑ "Saare Jahan Se..., it's 100 now". The Times of India. 2005-04-19. आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-8257. अभिगमन तिथि 2024-09-15.