ब्रह्मपुत्र नदी

तिब्बत, भारत और बांग्लादेश में नदी
(सियांग नदी से अनुप्रेषित)

ब्रह्मपुत्र भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। यह तिब्बत, भारत तथा बांग्लादेश से होकर बहती है। ब्रह्मपुत्र का उद्गम हिमालय के उत्तर में तिब्बत के पुरंग जिले में स्थित मानसरोवर झील के निकट होता है,[1] जहाँ इसे यरलुङ त्सङ्पो कहा जाता है। तिब्बत में बहते हुए यह नदी भारत के अरुणांचल प्रदेश राज्य में प्रवेश करती है।[2] आसाम घाटी में बहते हुए इसे ब्रह्मपुत्र और फिर बांग्लादेश में प्रवेश करने पर इसे जमुना कहा जाता है। पद्मा (गंगा) से संगम के बाद इनकी संयुक्त धारा को मेघना कहा जाता है, जो कि सुंदरबन डेल्टा का निर्माण करते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर मिल जाती है।[3]

ब्रह्मपुत्र
गुवाहाटी, असम, भारत में ब्रह्मपुत्र नदी।
देश तिब्बत, भारत, बांग्लादेश
उपनदियाँ
 - बाएँ दिहांग नदी, लोहित नदी, धनसिरी नदी,
कोलंग नदी
 - दाएँ कामेंग नदी, मानस नदी, बेकी नदी, रैडक नदी,
जलंधा नदी, तीस्ता नदी, सुबनसिरी नदी
नगर गुवाहाटी, डिब्रूगढ़, तेजपुर
Secondary source भागीरथ ग्लेशियर
 - location हिमालय, तिब्बत
 - ऊँचाई 5,210 मी॰ (17,090 फीट) मी. (एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह ","। फीट)
मुहाना बंगाल की खाड़ी
 - स्थान गंगा डेल्टा, बांग्लादेश
 - ऊँचाई 0 मी॰ (0 फीट) मी. (एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "&"। फीट)
लंबाई 2,800[1] कि.मी. (एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह ""। मील)
प्रवाह
 - औसत 19,800 मी.³/से. (6,99,230 घन फीट/से.)
 - max 1,00,000 मी.³/से. (35,31,467 घन फीट/से.)
ब्रह्मपुत्र (वायलेट), गंगा (नारंगी), और मेघना (हरा) के संयुक्त जल निकासी घाटियों का नक्शा।
ब्रह्मपुत्र (वायलेट), गंगा (नारंगी), और मेघना (हरा) के संयुक्त जल निकासी घाटियों का नक्शा।
ब्रह्मपुत्र (वायलेट), गंगा (नारंगी), और मेघना (हरा) के संयुक्त जल निकासी घाटियों का नक्शा।
सुक्लेश्वर घाट से खींचा गया ब्रह्मपुत्र का तस्वीर

ब्रह्मपुत्र नदी एक बहुत लम्बी (2900 किलोमीटर) नदी है। ब्रह्मपुत्र का नाम तिब्बत में सांग्पो, अरुणाचल में दिहांग तथा असम में ब्रह्मपुत्र है। ब्रह्मपुत्र नदी बांग्लादेश की सीमा में जमुना के नाम से दक्षिण में बहती हुई गंगा की मूल शाखा पद्मा के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में जाकर मिलती है। सुवनश्री, तिस्ता, तोर्सा, लोहित, बराक आदि ब्रह्मपुत्र की उपनदियां हैं। ब्रह्मपुत्र के किनारे स्थित शहरों में डिब्रूगढ़, तेजपुर एंव गुवाहाटी हैं। ब्रह्मपुत्र की औसत गहराई 38 मीटर (124 फीट) तथा अधिकतम गहराई 120 मीटर (380 फीट) है। प्रायः भारतीय नदियों के नाम स्त्रीलिंग में होते हैं पर ब्रह्मपुत्र एक अपवाद है। संस्कृत में ब्रह्मपुत्र का शाब्दिक अर्थ ब्रह्मा का पुत्र होता है।

ब्रह्मपुत्र के अन्य नाम

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  • बांग्ला भाषा में जमुना के नाम से जानी जाती है।
  • चीन में या-लू-त्सांग-पू चियांग या यरलुंग ज़ैगंबो जियांग कहते है।
  • तिब्बत में यरलुंग त्संगपो या साम्पो के नाम से जानी जाती है।
  • मध्य और दक्षिण एशिया की प्रमुख नदी कहते हैं।
  • अरुणाचल में ब्रह्मपुत्र देहांग के नाम से जानी जाती है।
  • असम में ब्रह्मपुत्र को ब्रह्मपुत्र कहते है।
  • गंगा नदी को बांग्लादेश में पद्मा कहते है।
  • ब्रह्मपुत्र को बांग्लादेश में जमुना कहा जाता *जमुना नदी (बांग्लादेश) में बराक नदी के मिलने पर इसका नाम मेघना पड़ता है।

अपवाह तन्त्र

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ब्रह्मपुत्र नदी का मानचित्र

इस नदी का उद्गम तिब्बत में कैलाश पर्वत के निकट जिमा यॉन्गजॉन्ग झील है। आरंभ में यह तिब्बत के पठारी इलाके में, यार्लुंग सांगपो नाम से, लगभग 4000 मीटर की औसत उचाई पर, 1700 किलोमीटर तक पूर्व की ओर बहती है, जिसके बाद नामचा बार्वा पर्वत के पास दक्षिण-पश्चिम की दिशा में मुङकर भारत के अरूणाचल प्रदेश में घुसती है जहां इसे सियांग कहते हैं।

उंचाई को तेजी से छोड़ यह मैदानों में दाखिल होती है, जहां इसे दिहांग नाम से जाना जाता है। असम में नदी काफी चौड़ी हो जाती है और कहीं-कहीं तो इसकी चौड़ाई 10 किलोमीटर तक है। डिब्रूगढ तथा लखिमपुर जिले के बीच नदी दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है। असम में ही नदी की दोनो शाखाएं मिल कर मजुली द्वीप बनाती है जो दुनिया का सबसे बड़ा नदी-द्वीप है। असम में नदी को प्रायः ब्रह्मपुत्र नाम से ही बुलाते हैं, पर बोडो लोग इसे भुल्लम-बुथुर भी कहते हैं जिसका अर्थ है- कल-कल की आवाज निकालना

इसके बाद यह बांग्लादेश में प्रवेश करती है जहां इसकी धारा कई भागों में बट जाती है। एक शाखा गंगा की एक शाखा के साथ मिल कर मेघना बनाती है। सभी धाराएं बंगाल की खाङी में गिरती है।

सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण

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1954 के बाद बाढ़ नियंत्रण योजनाएँ और तटबंधों का निर्माण प्रारम्भ किए गए थे, बांग्लादेश में यमुना नदी के पश्चिम में दक्षिण तक बना ब्रह्मपुत्र तटबंध बाढ़ को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होता है। तिस्ता बराज परियोजना, सिंचाई और बाढ़, दोनों की सुरक्षा योजना है। ब्रह्मपुत्र या असम घाटी से बहुत थोड़ी विद्युत पैदा की जाती है। जबकि उसकी अनुमानित क्षमता काफ़ी है। अकेले भारत में ही यह लगभग हो सकती है 12,000 मेगावाट है। असम में कुछ जलविद्युत केन्द्र बनाए गए हैं। जिनमें से सबसे उल्लेखनीय 'कोपली हाइडल प्रोजेक्ट' है और अन्य का निर्माण कार्य जारी है।

नौ-संचालन और परिवहन

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तिब्बत में ला—त्जू (ल्हात्से दज़ोंग) के पास नदी लगभग 644 किलोमीटर के एक नौकायन योग्य जलमार्ग से मिलती है। चर्मावृत नौकाएँ (पशु—चर्म और बाँस से बनी नौकाएँ) और बड़ी नौकाएँ समुद्र तल से 3,962 मीटर की ऊँचाई पर इसमें यात्रा करती हैं। त्सांगपो पर कई स्थानों पर झूलते पुल बनाए गए हैं।

असम और बांग्लादेश के भारी वाले क्षेत्रों में बहने के कारण ब्रह्मपुत्र सिंचाई से ज़्यादा अंतःस्थलीय नौ—संचालन के लिए महत्त्वपूर्ण है। नदी ने पंश्चिम बंगाल और असम के बीच पुराने समय से एक जलमार्ग बना रखा है। यद्यपि यदा—कदा राजनीतिक विवादों के कारण बांग्लादेश जाने वाला यातायात अस्त—व्यस्त हुआ है। ब्रह्मपुत्र बंगाल के मैदान और असम से समुद्र से 1,126 किलोमीटर की दूरी पर डिब्रगढ़ तक नौकायन योग्य है। सभी प्रकार के स्थानीय जलयानों के साथ ही यंत्रचालित लान्च और स्टीमर भारी भरकम कच्चा माल, इमारती लकड़ी और कच्चे तेल को ढोते हुए आसानी से नदी मार्ग में ऊपर और नीचे चलते हैं।

1962 में असम में गुवाहाटी के पास सड़क और रेल, दोनों के लिए साराईघाट पुल बनने तक ब्रह्मपुत्र नदी मैदानों में अपने पूरे मार्ग पर बिना पुल के थी। 1987 में तेज़पुर के निकट एक दूसरा कालिया भोमौरा सड़क पुल आरम्भ हुआ। ब्रह्मपुत्र को पार करने का सबसे महत्त्वपूर्ण और बांग्लादेश में तो एकमात्र आधन नौकाएँ ही हैं। सादिया, डिब्रगढ़, जोरहाट, तेज़पुर, गुवाहाटी, गोवालपारा और धुबुरी असम में मुख्य शहर और नदी पार करने के स्थान हैं। बांग्लादेश में महत्त्वपूर्ण स्थान हैं, कुरीग्राम, राहुमारी, चिलमारी, बहादुराबाद घाट, फूलचरी, सरीशाबाड़ी, जगन्नाथगंज घाट, नागरबाड़ी, सीरागंज और गोउंडो घाट, अन्तिम रेल बिन्दु बहादुराबाद घाट, फूलचरी, जगन्नाथगंज घाट, सिराजगंज और गोवालंडो घाट पर स्थित है।

अध्ययन और अन्वेषण

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ब्रह्मपुत्र का ऊपरी मार्ग 18वीं शताब्दी में ही खोज लिया गया था। हालाँकि 19वीं शताब्दी तक यह लगभग अज्ञात ही था। असम में 1886 में भारतीय सर्वेक्षक किंथूप (1884 में प्रतिवेदित) और जे.एफ़. नीढ़ैम की खोज ने त्सांग्पो नदी को ब्रह्मपुत्र के ऊपरी मार्ग के रूप में स्थापित किया। 20वीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थांश में कई ब्रिटिश अभियानों ने त्सांग्पो की धारा के प्रतिकूल जाकर तिब्बत में जिह—का—त्से तक नदी के पहाड़ी दर्रों की खोज की।

  1. "Scientists pinpoint sources of four major international rivers". Xinhua News Agency. 22 August 2011. मूल से 12 मई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 September 2015.
  2. "Brahmaputra River". Encyclopædia Britannica. मूल से 21 अक्तूबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अगस्त 2019.
  3. "Brahmaputra River Flowing Down From Himalayas Towards Bay of Bengal". मूल से 6 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 November 2011.

बाहरी कड़ियाँ

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