सीमाब अकबराबादी उर्दू के महान लेखककवि थे। वह दाग़ देहलवी के शागिर्द थे। जब कभी उर्दू अदब का ज़िक्र होता है तब उनका नाम मोहमद इक़बाल, जोश मलीहाबादी, फ़िराक गोरखपुरी और जिग़र मुरादाबादी के साथ लिया जाता है।

संक्षिप्त परिचय

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सीमाब अकबराबादी उर्दू के मशहूर लेखक और कवि थे। आप का नाम आशिक़ हुसैन सिद्दीकी था। आप का जन्म ५ जून १८८२ को आगरा, उत्तर प्रदेश, में हुआ था। आप के पिता, मुहमद हुसैन, भी कवि थे और अत्तार अकबराबादी के शिष्य थे। सीमाब ने फ़ारसी और अरबी भाषाएँ सीखीं और १८९२ में उर्दू में ग़ज़ल कहना आरम्भ कर दी थीं। १८९८ में आप मिर्ज़ा खाँ दाग़ देहलवी के शिष्य बन गए थे। १९२३ में रेलवेज़ की नौकरी त्याग कर " क़स्र उल अदब " की नींव रखी और आगरा में रहने लगे जहाँ से उन्हों ने पहले " पैमाना " नाम से पत्रिका प्रकाशित की और बाद में " तेज " १९२९ से और १९३२ से " शायर " नाम की पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू किया था।

सीमाब की प्रकाशित ७० कृतियों में २२ काव्य संग्रह हैं। उनकी कविताओं का प्रथम संग्रह " नैस्तां " के नाम से १९२३ में आगरा से प्रकाशित हुआ था। उर्दू साहित्य में आप का एक बड़ा योगदान रहा है और आप का ज़िक्र जोश मलीहाबादी और फ़िराक गोरखपुरी के साथ किया जाता है। सीमाब को उस्ताद का दर्जा हासिल था। उनके ३७० शागिर्द हुए जिन में राज़ चांदपुरी, साग़र निजामी, ज़िया फ़तेहाबादी, बिस्मिल सईदी, शिफ़ा गवालियरी और तुरफ़ा भंडारवी शामिल थे। कुरान मजीद का अरबी से उर्दू काव्य शैली में किये अनुवाद के प्रकाशन का प्रयास सीमाब को १९४९ में पाकिस्तान ले गया और वहीँ के कराची शहर में रहते हुए ३१ जनवरी १९५१ को उनका देहांत हुआ।

सीमाब अकबराबादी की कही अनेक ग़ज़लें कुंदन लाल सैगल ने गायी हैं।

चंद मुख्य काव्य संग्रह

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  • नेस्तान
  • इल्हाम ए मंज़ूम
  • कार ए इमरोज़
  • कलीम ए अजम
  • साज़ ओ आहंग
  • लोह ए महफूज़
अब क्या बताऊँ मैं तेरे मिलने से क्या मिला
इरफ़ान ए ग़म हुआ मुझे, दिल का पता मिला
जब दूर तक न कोई फ़कीर आशना मिला
तेरा नियाज़मंद तेरे दर से जा मिला
मंजिल मिली, मुराद मिली, मुद्दुआ मिला
सब कुछ मुझे मिला जो तेरा नक्श ए पा मिला
या ज़ख्म ए दिल को चीर के सीने से फ़ेंक दे
या एतराफ़ कर कि निशान ए वफ़ा मिला
" सीमाब " को शगुफ्ता न देखा तमाम उम्र
कमबख्त जब मिला हमें ग़म आशना मिला

सन्दर्भ एवं सूत्र

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