सुत्तपिटक

Adarsh sinha
(सुत्त पिटक से अनुप्रेषित)

त्रिपिटक

    विनय पिटक    
   
                                       
सुत्त-
विभंग
खन्धक परि-
वार
               
   
    सुत्त पिटक    
   
                                                      
दीघ
निकाय
मज्झिम
निकाय
संयुत्त
निकाय
                     
   
   
                                                                     
अंगुत्तर
निकाय
खुद्दक
निकाय
                           
   
    अभिधम्म पिटक    
   
                                                           
ध॰सं॰ विभं॰ धा॰क॰
पुग्॰
क॰व॰ यमक पट्ठान
                       
   
         

सुत्तपिटक बौद्ध धर्म का एक ग्रंथ है। यह ग्रंथ त्रिपिटक के तीन भागों में से एक है। सुत्त पिटक में तर्क और संवादों के रूप में भगवान बुद्ध के सिद्धांतों का संग्रह है। इनमें गद्य संवाद हैं, मुक्तक छन्द हैं तथा छोटी-छोटी प्राचीन कहानियाँ हैं। यह पाँच निकायों या संग्रहों में विभक्त है। [1]

इस पिटक के पाँच भाग हैं जो निकाय कहलाते हैं। निकाय का अर्थ है समूह। इन पाँच भागों में छोटे बड़े सुत्त संगृहीत हैं। इसीलिए वे निकाय कहलाते हैं। निकाय के लिए "संगीति" शब्द का भी प्रयोग हुआ है। आरम्भ में, जब कि त्रिपिटक लिपिबद्ध नहीं था, भिक्षु एक साथ सुत्तों का पारायण करते थे। तदनुसार उनके पाँच संग्रह संगीति कहलाने लगे। बाद में निकाय शब्द का अधिक प्रचलन हुआ और संगीति शब्द का बहुत कम।

कई सुत्तों का एक बग्ग (वर्ग) होता है। एक ही सुत्त के कई भाण भी होते हैं। 8000 अक्षरों का भाणवार होता है। तदनुसार एक-एक निकाय की अक्षर संख्या का भी निर्धारण हो सकता है। उदाहरण के लिए दीर्घनिकाय के 34 सुत्त हैं और भाणवार 64। इस प्रकार सारे दीर्घनिकाय में 512000 अक्षर हैं।

सुत्तों में भगवान तथा सारिपुत्र मौद्गल्यायन, आनंद जैसे उसे कतिपय शिष्यों के उपदेश संगृहीत हैं। शिष्यों के उपदेश भी भगवान द्वारा अनुमोदित हैं।

प्रत्येक सुत्त की एक भूमिका है, जिसका बड़ा ऐतिहासिक मत है। उसमें इन मतों का उल्लेख है कि कब, किस स्थान पर, किस व्यक्ति या किन व्यक्तियों को वह उपदेश दिया गया था और श्रोताओं पर उसका क्या प्रभाव पड़ा।

अधिकतर सुत्त गद्य में हैं, कुछ पद्य में और कुछ गद्य-पद्य दोनों में। एक ही उपदेश कई सुत्तों में आया है- कहीं संक्षेप में और कहीं विस्तार में। उनमें पुनरुक्तियों की बहुलता है। उनके संक्षिप्तीकरण के लिए "पय्याल" का प्रयोग किया गया है। कुछ परिप्रश्नात्मक है। उनमें कहीं-कहीं आख्यानों और ऐतिहासिक घटनाओं का भी प्रयोग किया गया है। सुत्तपिटक उपमाओं का भी बहुत बड़ा भंडार है। कभी-कभी भगवान उपमाओं के सहारे भी उपदेश देते थे। श्रोताओं में राजा से लेकर रंग तक, भोले-भाले किसान से लेकर महान दार्शनिक तक थे। उन सबके अनुरूप ये उपमाएँ जीवन के अनेक क्षेत्रों सी ली गई हैं।

बुद्ध जीवनी, धर्म, दर्शन, इतिहास आदि सभी दृष्टियों से सुत्तपिटक त्रिपिटक का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। बुद्धगया के बोधिगम्य के नीचे बुद्धत्व की प्राप्ति से लेकर कुशीनगर में महापरिनिर्वाण तक 45 वर्ष भगवान बुद्ध ने जो लोकसेवा की, उसका विवरण सुत्तपिटक में मिलता है। मध्य मंडल में किन-किन महाजनपदों में उन्होंने चारिका की, लोगों में कैसे मिले-जुले, उनकी छोटी-छोटी समस्याओं से लेकर बड़ी-बड़ी समस्याओं तक के समाधान में उन्होंने कैसे पथ-प्रदर्शन किया, अपने संदेश के प्रचार में उन्हें किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा- इन सब बातों का वर्णन हमें सुत्तपिटक में मिलता है। भगवान बुद्ध के जीवन संबंधी ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन ही नहीं; अपितु उनके महान शिष्यों की जीवन झाँकियाँ भी इसमें मिलती हैं।

सुत्तपिटक का सबसे बड़ा महत्व भगवान द्वारा उपदिष्ट साधनों पद्धति में है। वह शील, समाधि और प्रज्ञा रूपी तीन शिक्षाओं में निहित है। श्रोताओं में बुद्धि, नैतिक और आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से अनेक स्तरों के लोग थे। उन सभी के अनुरूप अनेक प्रकार से उन्होंने आर्य मार्ग का उपदेश दिया था, जिसमें पंचशील से लेकर दस पारमिताएँ तक शामिल हैं। मुख्य धर्म पर्याय इस प्रकार हैं- चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग, सात बोध्यांग, चार सम्यक् प्रधान पाँच इंद्रिय, प्रतीत्य समुत्पाद, स्कंध आयतन धातु रूपी संस्कृत धर्म नित्य दुःख-अनात्म-रूपी संस्कृत लक्षण। इनमें भी सैंतिस क्षीय धर्म ही भगवान के उपदेशों का सार है। इसका संकेत उन्होंने महापरिनिर्वाण सुत्त में लिखा है। यदि हम भगवान के महत्वपूर्ण उपदेशों की दृष्टि से सुत्तों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करें तो हमें उनमें घुमा फिराकर ये ही धर्मपर्याय मिलेंगे। अंतर इतना ही है कि कहीं ये संक्षेप में हैं और कहीं विस्तार में हैं। उदाहरणार्थ सुत्त निकाय के प्रारंभिक सुत्तों में चार सत्यों का उल्लेख मात्र मिलता है, धम्मचक्कपवत्तन सुत्त में विस्तृत विवरण मिलता है और महासतिपट्ठान में इनकी विशद व्याख्या भी मिलती है।

सुत्तों की मुख्य विषयवस्तु तथागत का धर्म और दर्शन ही है। लेकिन प्रकारांतर से और विषयों पर भी प्रकाश पड़ता है। जटिल, परिव्राजक, आजीवक और निगंठ जैसे जो अन्य श्रमण और ब्राह्मण संप्रदाय उस समय प्रचलित थे, उनके मतवादों का भी वर्णन सुत्तों में आया है। वे संख्या में 62 बताए गए हैं। यज्ञ और जातिवाद पर भी कई सुत्तंत हैं।

भारत मगध, कोशल, वज्जि जैसे कई राज्यों में विभाजित था। उनमें कहीं राजसत्तात्मक शासन था तो कहीं गणतंत्रात्मक राज्य। उनका आपस का संबंध कैसा था, शासन प्रशासन कार्य कैसे होते थे- इन बातों का भी उल्लेख कहीं-कहीं मिलता है। साधारण लोगों की अवस्था, उनकी रहन-सहन, आचार-विचार, भोजन छादन, उद्योग-धंधा, शिक्षा-दीक्षा, कला-कौशल, ज्ञान-विज्ञान, मनोरंजन, खेलकूद आदि बातों का भी वर्णन आया है। ग्राम, निगम, राजधानी, जनपद, नदी, पर्वत, वन, तड़ाग, मार्ग, ऋतु आदि भौगोलिक बातों की भी चर्चा कम नहीं है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सुत्तपिटक का महत्व न केवल धर्म और दर्शन की दृष्टि से है, अपितु बुद्धकालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक और भौगोलिक स्थिति की दृष्टि से भी है। इन सुत्तों में उपलब्ध सामग्री का अध्ययन करके विद्वानों ने निबंध लिखकर अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला है।

सुत्तपिटक के पाँच निकाय इस प्रकार हैं: दीघ निकाय, मज्झिम निकाय, संयुत्त निकाय, अंगुत्तर निकाय और खुद्दक निकाय। सर्वास्तिवादियों के सूत्रपिटक में भी पाँच निकाय रहे हैं, जो 'आगम' कहलाते थे (एकोत्तर आगम, देखें)। उनके मूल ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं। सभी ग्रन्थों का चीनी अनुवाद और कुछ का तिब्बती अनुवाद उपलब्ध है। उनके नाम इस प्रकार हैं: दीर्घागम, मध्यमागम, संयुक्तागम, एकोत्तरागम और क्षुद्रकागम। मुख्य बातों पर निकायों और आगामों में समानता है। इस विषय पर विद्वानों ने प्रकाश डाला है।

सुत्तपिटक का विस्तार इस प्रकार है[2][3]-

  • दीघनिकाय (दीघ = दीर्घ = लम्बा; भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्चित लम्बे सूत्रों का संकलन)
  • मज्झिमनिकाय (मज्झिम = मध्यम; भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्चित मध्यम सूत्रों का संकलन)
  • संयुत्तनिकाय (संयुत्त = संयुक्त; भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्चित लम्बे, छोटे सूत्रों का संयुक्त संकलन)
  • अंगुत्तरनिकाय (अंगुत्तर = अंकोत्तर = अंक अनुसार; धर्म को अंक अनुसार संग्रहित ग्रंथ)
  • खुद्दकनिकाय (खुद्दक = क्षुद्र्क = छोटा; भगवान बुद्ध द्वारा प्रवर्चित छोटे सूत्रों का संकलन)


निकाय वग्ग सुत्त लिखँ
दीघनिकाय ताःहाकःगु सुत्ततेगु निकाय
सीलक्खन्धवग्गपाळि
ब्रह्मजालसुत्तं
सामञ्ञफलसुत्तं
अम्बट्ठसुत्तं
सोणदण्डसुत्तं
कूटदन्तसुत्तं
महालिसुत्तं
जालियसुत्तं
महासीहनादसुत्तं
पोट्ठपादसुत्तं
सुभसुत्तं
केवट्टसुत्तं
लोहिच्चसुत्तं
तेविज्जसुत्तं
महावग्गपाळि
महापदानसुत्तं
महानिदानसुत्तं
महापरिनिब्बानसुत्तं
महासुदस्सनसुत्तं
जनवसभसुत्तं
महागोविन्दसुत्तं
महासमयसुत्तं
सक्कपञ्हसुत्तं
महासतिपट्ठानसुत्तं
पायासिसुत्तं
पाथिकवग्गपाळि
पाथिकसुत्तं
उदुम्बरिकसुत्तं
चक्कवत्तिसुत्तं
अग्गञ्ञसुत्तं
सम्पसादनीयसुत्तं
पासादिकसुत्तं
लक्खणसुत्तं
सिङ्गालसुत्तं
आटानाटियसुत्तं
सङ्गीतिसुत्तं
दसुत्तरसुत्तं
मज्झिमनिकाय मध्यम हाकःया सुत्ततेगु निकाय
मूलपण्णासपाळि
मूलपरियायवग्गो
सीहनादवग्गो
ओपम्मवग्गो
महायमकवग्गो
चूळयमकवग्गो
मज्झिमपण्णासपाळि
गहपतिवग्गो
भिक्खुवग्गो
परिब्बाजकवग्गो
राजवग्गो
ब्राह्मणवग्गो
उपरिपण्णासपाळि
देवदहवग्गो
अनुपदवग्गो
सुञ्ञतवग्गो
विभङ्गवग्गो
सळायतनवग्गो
संयुत्तनिकाय
सगाथावग्गपाळि
देवतासंयुत्तं
देवपुत्तसंयुत्तं
कोसलसंयुत्तं
मारसंयुत्तं
भिक्खुनीसंयुत्तं
ब्रह्मसंयुत्तं
ब्राह्मणसंयुत्तं
वङ्गीससंयुत्तं
वनसंयुत्तं
यक्खसंयुत्तं
सक्कसंयुत्तं
निदानवग्गपाळि
निदानसंयुत्तं
अभिसमयसंयुत्तं
धातुसंयुत्तं
अनमतग्गसंयुत्तं
कस्सपसंयुत्तं
लाभसक्कारसंयुत्तं
राहुलसंयुत्तं
लक्खणसंयुत्तं
ओपम्मसंयुत्तं
भिक्खुसंयुत्तं
खन्धवग्गपाळि
खन्धसंयुत्तं
राधसंयुत्तं
दिट्ठिसंयुत्तं
ओक्कन्तसंयुत्तं
उप्पादसंयुत्तं
किलेससंयुत्तं
सारिपुत्तसंयुत्तं
नागसंयुत्तं
सुपण्णसंयुत्तं
गन्धब्बकायसंयुत्तं
वलाहकसंयुत्तं
वच्छगोत्तसंयुत्तं
झानसंयुत्तं
सळायतनवग्गपाळि
सळायतनसंयुत्तं
वेदनासंयुत्तं
मातुगामसंयुत्तं
जम्बुखादकसंयुत्तं
सामण्डकसंयुत्तं
मोग्गल्लानसंयुत्तं
चित्तसंयुत्तं
गामणिसंयुत्तं
असङ्खतसंयुत्तं
अब्याकतसंयुत्तं
महावग्गपाळि
मग्गसंयुत्तं
बोज्झङ्गसंयुत्तं
सतिपट्ठानसंयुत्तं
इन्द्रियसंयुत्तं
सम्मप्पधानसंयुत्तं
बलसंयुत्तं
इद्धिपादसंयुत्तं
अनुरुद्धसंयुत्तं
झानसंयुत्तं
आनापानसंयुत्तं
सोतापत्तिसंयुत्तं
सच्चसंयुत्तं
अङ्गुत्तरनिकाय
एककनिपातपाळि
रूपादिवग्गो
नीवरणप्पहानवग्गो
अकम्मनियवग्गो
अदन्तवग्गो
पणिहितअच्छवग्गो
अच्छरासङ्घातवग्गो
वीरियारम्भादिवग्गो
कल्याणमित्तादिवग्गो
पमादादिवग्गो
दुतियपमादादिवग्गो
अधम्मवग्गो
अनापत्तिवग्गो
एकपुग्गलवग्गो
एतदग्गवग्गो
अट्ठानपाळि
एकधम्मपाळि
पसादकरधम्मवग्गो
अपरअच्छरासङ्घातवग्गो
कायगतासतिवग्गो
अमतवग्गो
दुकनिपातपाळि
कम्मकरणवग्गो
अधिकरणवग्गो
बालवग्गो
समचित्तवग्गो
परिसवग्गो
पुग्गलवग्गो
सुखवग्गो
सनिमित्तवग्गो
धम्मवग्गो
बालवग्गो
आसादुप्पजहवग्गो
आयाचनवग्गो
दानवग्गो
सन्थारवग्गो
समापत्तिवग्गो
कोधपेय्यालं
अकुसलपेय्यालं
विनयपेय्यालं
रागपेय्यालं
तिकनिपातपाळि
बालवग्गो
रथकारवग्गो
पुग्गलवग्गो
देवदूतवग्गो
चूळवग्गो
ब्राह्मणवग्गो
महावग्गो
आनन्दवग्गो
समणवग्गो
लोणकपल्लवग्गो
सम्बोधवग्गो
आपायिकवग्गो
कुसिनारवग्गो
योधाजीववग्गो
मङ्गलवग्गो
अचेलकवग्गो
कम्मपथपेय्यालं
रागपेय्यालं
चतुक्कनिपातपाळि
भण्डगामवग्गो
चरवग्गो
उरुवेलवग्गो
चक्कवग्गो
रोहितस्सवग्गो
पुञ्ञाभिसन्दवग्गो
पत्तकम्मवग्गो
अपण्णकवग्गो
मचलवग्गो
असुरवग्गो
वलाहकवग्गो
केसिवग्गो
भयवग्गो
पुग्गलवग्गो
आभावग्गो
इन्द्रियवग्गो
पटिपदावग्गो
सञ्चेतनियवग्गो
ब्राह्मणवग्गो
महावग्गो
सप्पुरिसवग्गो
परिसावग्गो
दुच्चरितवग्गो
कम्मवग्गो
आपत्तिभयवग्गो
अभिञ्ञावग्गो
कम्मपथवग्गो
रागपेय्यालं
पञ्चकनिपातपाळि
सेखबलवग्गो
बलवग्गो
पञ्चङ्गिकवग्गो
सुमनवग्गो
मुण्डराजवग्गो
नीवरणवग्गो
सञ्ञावग्गो
योधाजीववग्गो
थेरवग्गो
ककुधवग्गो
फासुविहारवग्गो
अन्धकविन्दवग्गो
गिलानवग्गो
राजवग्गो
तिकण्डकीवग्गो
सद्धम्मवग्गो
आघातवग्गो
उपासकवग्गो
अरञ्ञवग्गो
ब्राह्मणवग्गो
किमिलवग्गो
अक्कोसकवग्गो
दीघचारिकवग्गो
आवासिकवग्गो
दुच्चरितवग्गो
उपसम्पदावग्गो
सम्मुतिपेय्यालं
सिक्खापदपेय्यालं
रागपेय्यालं
छक्कनिपातपाळि
आहुनेय्यवग्गो
सारणीयवग्गो
अनुत्तरियवग्गो
देवतावग्गो
धम्मिकवग्गो
महावग्गो
देवतावग्गो
अरहत्तवग्गो
सीतिवग्गो
आनिसंसवग्गो
तिकवग्गो
सामञ्ञवग्गो
रागपेय्यालं
सत्तकनिपातपाळि
धनवग्गो
अनुसयवग्गो
वज्जिसत्तकवग्गो
देवतावग्गो
महायञ्ञवग्गो
अब्याकतवग्गो
महावग्गो
विनयवग्गो
समणवग्गो
आहुनेय्यवग्गो
रागपेय्यालं
अट्ठकादिनिपातपाळि
मेत्तावग्गो
महावग्गो
गहपतिवग्गो
दानवग्गो
उपोसथवग्गो
गोतमीवग्गो
भूमिचालवग्गो
यमकवग्गो
सतिवग्गो
सामञ्ञवग्गो
रागपेय्यालं
नवकनिपातपाळि
सम्बोधिवग्गो
सीहनादवग्गो
सत्तावासवग्गो
महावग्गो
सामञ्ञवग्गो
खेमवग्गो
सतिपट्ठानवग्गो
सम्मप्पधानवग्गो
इद्धिपादवग्गो
रागपेय्यालं
दसकनिपातपाळि
आनिसंसवग्गो
नाथवग्गो
महावग्गो
उपालिवग्गो
अक्कोसवग्गो
सचित्तवग्गो
यमकवग्गो
आकङ्खवग्गो
थेरवग्गो
उपालिवग्गो
समणसञ्ञावग्गो
पच्चोरोहणिवग्गो
परिसुद्धवग्गो
साधुवग्गो
अरियवग्गो
पुग्गलवग्गो
जाणुस्सोणिवग्गो
साधुवग्गो
अरियमग्गवग्गो
अपरपुग्गलवग्गो
करजकायवग्गो
सामञ्ञवग्गो
रागपेय्यालं
एकादसकनिपातपाळि
निस्सयवग्गो
अनुस्सतिवग्गो
सामञ्ञवग्गो
रागपेय्यालं
खुद्दकनिकाय चिहाकःगु सुत्ततेगु निकाय
खुद्दकपाठपाळि
सरणत्तयं
दससिक्खापदं
द्वत्तिंसाकारो
कुमारपञ्हा
मङ्गलसुत्तं
रतनसुत्तं
तिरोकुट्टसुत्तं
निधिकण्डसुत्तं
मेत्तसुत्तं
धम्मपदपाळि
यमकवग्गो
अप्पमादवग्गो
चित्तवग्गो
पुप्फवग्गो
बालवग्गो
पण्डितवग्गो
अरहन्तवग्गो
सहस्सवग्गो
पापवग्गो
दण्डवग्गो
जरावग्गो
अत्तवग्गो
लोकवग्गो
बुद्धवग्गो
सुखवग्गो
पियवग्गो
कोधवग्गो
मलवग्गो
धम्मट्ठवग्गो
मग्गवग्गो
पकिण्णकवग्गो
निरयवग्गो
नागवग्गो
तण्हावग्गो
भिक्खुवग्गो
ब्राह्मणवग्गो
उदानपाळि
बोधिवग्गो
मुचलिन्दवग्गो
नन्दवग्गो
मेघियवग्गो
सोणवग्गो
जच्चन्धवग्गो
चूळवग्गो
पाटलिगामियवग्गो
इतिवुत्तकपाळि
एककनिपातो
दुकनिपातो
तिकनिपातो
चतुक्कनिपातो
सुत्तनिपातपाळि
उरगवग्गो
चूळवग्गो
महावग्गो
अट्ठकवग्गो
पारायनवग्गो
विमानवत्थुपाळि
इत्थिविमानं
पुरिसविमानं
पेतवत्थुपाळि
उरगवग्गो
उब्बरिवग्गो
चूळवग्गो
महावग्गो
थेरगाथापाळि
एककनिपातो
दुकनिपातो
तिकनिपातो
चतुकनिपातो
पञ्चकनिपातो
छक्कनिपातो
सत्तकनिपातो
अट्ठकनिपातो
नवकनिपातो
दसकनिपातो
एकादसनिपातो
द्वादसकनिपातो
तेरसनिपातो
चुद्दसकनिपातो
सोळसकनिपातो
वीसतिनिपातो
तिंसनिपातो
चत्तालीसनिपातो
पञ्ञासनिपातो
सट्ठिनिपातो
महानिपातो
थेरीगाथापाळि
एककनिपातो
दुकनिपातो
तिकनिपातो
चतुक्कनिपातो
पञ्चकनिपातो
छक्कनिपातो
सत्तकनिपातो
अट्ठकनिपातो
नवकनिपातो
एकादसनिपातो
द्वादसकनिपातो
सोळसनिपातो
वीसतिनिपातो
तिंसनिपातो
चत्तालीसनिपातो
महानिपातो
अपदानपाळि-१
बुद्धवग्गो
सीहासनियवग्गो
सुभूतिवग्गो
कुण्डधानवग्गो
उपालिवग्गो
बीजनिवग्गो
सकचिन्तनियवग्गो
नागसमालवग्गो
तिमिरवग्गो
सुधावग्गो
भिक्खदायिवग्गो
महापरिवारवग्गो
सेरेय्यवग्गो
सोभितवग्गो
छत्तवग्गो
बन्धुजीवकवग्गो
सुपारिचरियवग्गो
कुमुदवग्गो
कुटजपुप्फियवग्गो
तमालपुप्फियवग्गो
कणिकारपुप्फियवग्गो
हत्थिवग्गो
आलम्बणदायकवग्गो
उदकासनवग्गो
तुवरदायकवग्गो
थोमकवग्गो
पदुमुक्खिपवग्गो
सुवण्णबिब्बोहनवग्गो
पण्णदायकवग्गो
चितकपूजकवग्गो
पदुमकेसरवग्गो
आरक्खदायकवग्गो
उमापुप्फियवग्गो
गन्धोदकवग्गो
एकपदुमियवग्गो
सद्दसञ्ञकवग्गो
मन्दारवपुप्फियवग्गो
बोधिवन्दनवग्गो
अवटफलवग्गो
पिलिन्दवच्छवग्गो
मेत्तेय्यवग्गो
भद्दालिवग्गो
अपदानपाळि-२
सकिंसम्मज्जकवग्गो
एकविहारिवग्गो
विभीतकवग्गो
जगतिदायकवग्गो
सालकुसुमियवग्गो
नळमालिवग्गो
पंसुकूलवग्गो
किङ्कणिपुप्फवग्गो
कणिकारवग्गो
फलदायकवग्गो
तिणदायकवग्गो
कच्चायनवग्गो
भद्दियवग्गो
यसवग्गो
सुमेधावग्गो
एकूपोसथिकवग्गो
कुण्डलकेसीवग्गो
खत्तियावग्गो
बुद्धवंसपाळि
रतनचङ्कमनकण्डं
सुमेधपत्थनाकथा
दीपङ्करबुद्धवंसो
कोण्डञ्ञबुद्धवंसो
मङ्गलबुद्धवंसो
सुमनबुद्धवंसो
रेवतबुद्धवंसो
सोभितबुद्धवंसो
अनोमदस्सीबुद्धवंसो
पदुमबुद्धवंसो
नारदबुद्धवंसो
पदुमुत्तरबुद्धवंसो
सुमेधबुद्धवंसो
सुजातबुद्धवंसो
पियदस्सीबुद्धवंसो
अत्थदस्सीबुद्धवंसो
धम्मदस्सीबुद्धवंसो
सिद्धत्थबुद्धवंसो
तिस्सबुद्धवंसो
फुस्सबुद्धवंसो
विपस्सीबुद्धवंसो
सिखीबुद्धवंसो
वेस्सभूबुद्धवंसो
ककुसन्धबुद्धवंसो
कोणागमनबुद्धवंसो
कस्सपबुद्धवंसो
गोतमबुद्धवंसो
बुद्धपकिण्णककण्डं
धातुभाजनीयकथा
चरियापिटकपाळि
अकित्तिवग्गो
हत्थिनागवग्गो
युधञ्जयवग्गो
जातकपाळि-१
एककनिपातो
दुकनिपातो
तिकनिपातो
चतुक्कनिपातो
पञ्चकनिपातो
छक्कनिपातो
सत्तकनिपातो
अट्ठकनिपातो
नवकनिपातो
दसकनिपातो
एकादसकनिपातो
द्वादसकनिपातो
तेरसकनिपातो
पकिण्णकनिपातो
वीसतिनिपातो
तिंसनिपातो
जातकपाळि-२
चत्तालीसनिपातो
पण्णासनिपातो
सट्ठिनिपातो
सत्ततिनिपातो
असीतिनिपातो
महानिपातो
महानिद्देसपाळि
कामसुत्तनिद्देसो
गुहट्ठकसुत्तनिद्देसो
दुट्ठट्ठकसुत्तनिद्देसो
सुद्धट्ठकसुत्तनिद्देसो
परमट्ठकसुत्तनिद्देसो
जरासुत्तनिद्देसो
तिस्समेत्तेय्यसुत्तनिद्देसो
पसूरसुत्तनिद्देसो
मागण्डियसुत्तनिद्देसो
पुराभेदसुत्तनिद्देसो
कलहविवादसुत्तनिद्देसो
चूळवियूहसुत्तनिद्देसो
महावियूहसुत्तनिद्देसो
तुवट्टकसुत्तनिद्देसो
अत्तदण्डसुत्तनिद्देसो
सारिपुत्तसुत्तनिद्देसो
चूळनिद्देसपाळि
पारायनवग्गो
पारायनवग्गनिद्देसो
खग्गविसाणसुत्तो
पटिसम्भिदामग्गपाळि
महावग्गो
युगनद्धवग्गो
पञ्ञावग्गो
नेत्तिप्पकरणपाळि
सङ्गहवारो
उद्देसवारो
निद्देसवारो
पटिनिद्देसवारो
नयसमुट्ठानं
सासनपट्ठानं
मिलिन्दपञ्हपाळि
मिलिन्दपञ्हपाळि
मिलिन्दपञ्हो
मेण्डकपञ्हो
अनुमानपञ्हो
ओपम्मकथापञ्हो
पेटकोपदेसपाळि
अरियसच्चप्पकासनपठमभूमि
सासनपट्ठानदुतियभूमि
सुत्ताधिट्ठानततियभूमि
सुत्तविचयचतुत्थभूमि
पञ्चमभूमि
सुत्तत्थसमुच्चयभूमि
हारसम्पातभूमि
सुत्तवेभङ्गियं
  1. पुस्तक:त्रिपिटक प्रवेश, पृष्ठ २२, परिच्छेद ३, अनुवाद एवं संग्रहःवासुदेव देसार "कोविद", प्रकाशक: दुर्गादास रंजित, ISBN 99946-973-9-0[मृत कड़ियाँ]
  2. "प्राचीन भारत की श्रेष्ठ कहानियाँ, लेखकः जगदीश चन्द्र जैन, प्रकाशक:भारतीय ज्ञानपीठ, प्रकाशित : मई ०९, २००३". मूल से 23 अक्तूबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 सितंबर 2008.
  3. पृष्ठ ९, पुस्तकःबुद्धवचन त्रिपिटकया न्हापांगु निकाय ग्रन्थ दीघनिकाय, वीरपूर्ण स्मृति ग्रन्थमाला भाग-३, अनुवादक:दुण्डबहादुर बज्राचार्य, भाषा:नेपालभाषा, मुद्रकःनेपाल प्रेस

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