सोमनाथ मेला
सोमनाथ मेला एक हिमालयी क्षेत्र की सभ्यता व संस्कृति का ऐतिहासिक मेला है। यह भारतवर्ष के उत्तराखण्ड प्रदेश के कुमाऊँ क्षेत्र के अन्तर्गत तल्ला गेवाड़ नामक घाटी में मॉंसी व मॉंसी के समीप होता है। यह ऐतिहासिक सोमनाथ कहा जाने वाला मेला कनौंणियॉं अथवा कनौंणियॉं बिष्ट व मॉंसीवाल नामक उपनाम के स्थानीय मूल निवासियों की प्राचीन ऐतिहासिक पृष्टभूमि से सम्बन्धित है। इसे सोमनाथ, सोमनाथ मेला, सल्डिया सोमनाथ, ऐतिहासिक सोमनाथ या कई स्थानीय लोग स्थानीय बोली में भिड़च्यपौ कौतीक भी कहते हैं। इसका शुभारम्भ बैशाख माह के अन्तिम सोमवार की पूर्व संध्या से होता है और सात दिनों तक चलता है।[1][2]
सोमनाथ मेला (उत्तराखण्ड) | |
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आधिकारिक नाम | ऐतिहासिक सोमनाथ |
अन्य नाम | सल्डिया सोमनाथ |
अनुयायी | कनौंणियॉं व मॉंसीवाल |
प्रकार | ऐतिहासिक |
आरम्भ | बैशाख माह |
ऐतिहासिक पृष्टभूमि
संपादित करेंइस तल्ला गेवाड़ के माॅंसी के समीप परन्तु अब मॉंसी में प्रतिवर्ष होने वाले ऐतिहासिक सोमनाथ मेले की आराध्य भूमि को सोमनाथेश्वर महादेव कहते हैं। यहीं से इस ऐतिहासिक सोमनाथ मेले का पदार्पण हुआ था।[3] जो आज भी तत्समय के इतिहास के सुनहरे पन्नों और पाली पछांऊॅं इलाके की कुमांऊॅंनी सॉंस्कृतिक विरासत को उत्तराखण्ड की संस्कृति के साथ समेटे है। यहीं से मेले के इतिहास का पदार्पण हुआ था और इसी सोमनाथेश्वर महादेव नामक शिवालय से शुरू होता था, यह सोमनाथ। वक्त बदला, लोग बदले और मेले का स्वरूप भी अछूता न रह सका और बीसवीं सदी के अन्त तक मेला मॉंसी के बाजार में होने लग गया और इतिहास भी काफी कुछ बदल गया और इक्कीसवीं सदी के पूर्वार्ध में राजनीतिक रंग का समावेश भी दृष्टगोचर होने लगा है।
उल्लेखनीय है, सोमनाथेश्वर महादेव नामक शिवालय पर सैकड़ों वर्ष पूर्व कत्यूरी राजवंशावली के लड़देव के वंशजों में से मेलदेव (कालान्तर में कनौंणियॉं नामक उपनाम से परिचित) का षड़यंत्रों द्वारा वध कर दिया था। तबसे इस मेले की शुरुआत हुई है। यहॉं पर एक प्राचीन नौला (बावड़ी) है। इसी नौले में या इसके निकट उनका कत्ल कर दिया था। तब से इस नौले का स्वच्छ साफ व शीतल जल सभी लोग पीते आये हैं और पीते हैं। मात्र कनौंणियॉं नामक उपनाम से जाने जाने वाले चार गॉंवों (कनौंणी, डॉंग, काला चौना व आदीग्राम कनौणियॉं) के मेलदेव कनौंणियॉंं के वंशज इस नौले का पानी आज भी ग्रहण नहीं करते। यह सत्य है। दूसरा मेला प्रारम्भ से पन्द्रह दिन पूर्व उक्त चारों गॉंवों के कनौंणियॉं नामक उपनाम के निवासियों का मसूर की दाल तथा मसूर मिश्रित वयंजनों का उपयोग वर्जित होता है, जैसा अब तक प्रचलित है।
- सल्डिया शब्द की अवस्था, भूमिका व इतिहास
सामाजिक सहयोगिता
संपादित करेंलोक सांस्कृतिक विरासतताऐं
संपादित करेंव्यावसायिक परिवेश
संपादित करेंबदलता स्वरूप
संपादित करेंइस सोमनाथ मेले के इतिहास का पदार्पण सोमनाथेश्वर महादेव नामक शिवालय से शुरू होता था। इस स्थल पर तथा इसके उत्तर दिशा की ओर रामगंगा नदी के दोनों तटों पर आच्छादित रहता था। वक्त बदला, लोग बदले और मेले का स्वरूप भी अछूता न रह सका और बीसवीं सदी के अन्त तक मेला मॉंसी के बाजार में होने लग गया और इतिहास भी काफी कुछ बदल चुका है और बदल रहा है। इक्कीसवीं सदी के पूर्वार्ध में राजनीतिक रंग का समावेश भी दृष्टगोचर होने लगा है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "सोमनाथ मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम". हिन्दुस्तान, हिन्दी दैनिक. मूल से 29 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 नवम्बर 2017.
- ↑ "मासी का सोमनाथ मेला". अमर उजाला, हिन्दी दैनिक. मूल से 7 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 नवम्बर 2017.
- ↑ "आज से शुरू हुआ माॅंसी का प्रसिद्ध एेतिहासिक सोमनाथ मेला". Uttaranchaltoday.com. मूल से 7 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 नवम्बर 2017.