मॉंसी
निर्देशांक: 29°49′24″N 79°17′13″E / 29.823422°N 79.287053°E मॉंसी एक गाँव है जो रामगंगा नदी के पूर्वी किनारे पर चौखुटिया (गनांई) तहसील के तल्ला गेवाड़ पट्टी में भारतवर्ष के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत कुमांऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा जिले में स्थित है। यह मूलत: मासीवाल नामक उपनाम से विख्यात कुमांऊॅंनी हिन्दुओं का पुश्तैनी गाँव है। यह अपनी ऐतिहासिक व सॉस्कृतिक विरासत, ठेठ कुमांऊॅंनी सभ्यता व संस्कृति, पर्वतीय जीवन शैली तथा समतल उपजाऊ भूमि के लिए पहचाना जाता है।
मॉंसी | |||||||
— एक ऐतिहासिक गाँव — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
राज्य | उत्तराखण्ड | ||||||
ज़िला | अल्मोड़ा | ||||||
लिंगानुपात | 862 ♂/♀ | ||||||
क्षेत्रफल • ऊँचाई (AMSL) |
• 1,020 मीटर (3,346 फी॰) | ||||||
जलवायु तापमान • ग्रीष्म • शीत |
ऑलपाइन आर्द्र अर्ध-उष्णकटिबन्धीय (कॉपेन) • 28 - -2 °C (84 °F) • 28 - 12 °C (70 °F) • 15 - -2 °C (61 °F) | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: almora.nic.in |
इतिहास
संपादित करेंप्राचीन इतिहास के अनुसार, जैसा कि अाज भी उत्तराखंड के इतिहासकार तथा गेवाड़ घाटी के अधिकॉश अनुभववेत्ता इस इतिहास से भली भॉति सहमत हैं। तल्ला गेवाड़ के सूर्यवंशी ठाकुर मेलदेव कनौणियॉं ने स्वेच्छा से अपने राज्य को कई हिस्सों में विभाजित किया था। जिनमें से कुछों के साक्ष्य स्पष्ट हैं। जैसा कि अपने चार पुत्रों और एक पुत्री में। यानि पॉच भागों में विभाजन। पहला विभाजन शीर्ष पुत्र को यह है रामगंगा के पश्चिमी ओर का दक्षिणी भू भाग (कनौंणी), दूसरा विभाजन दूसरे पुत्र को यह है रामगंगा के पश्चिमी ओर का उत्तरी क्षेत्र (डॉंग), तीसरा विभाजन तीसरे पुत्र को यह है रामगंगा के पूर्व में राज्य का दक्षिणी भू भाग (काला चौना), चौथा विभाजन चौथे पुत्र को रामगंगा के पश्चिम की ओर आदीग्राम बंगारी और आदीग्राम फुलोरिया के बीच का पठार (आदीग्राम कनौणियॉं ) तथा पॉचवॉ विभाजन रामगंगा के पूर्वी छोर से लगा आदीग्राम कनौणियॉं के सामने से लेकर काला चौना की सीमा रेखा तक का भू भाग, यह दिया अपनी पुत्री को, जो आज मॉंसी के नाम से प्रसिद्ध है।
इस प्रकार यह मॉंसी नामक गाँव सूर्यवंशी ठाकुर मेलदेव कनौणियॉं बिष्ट द्वारा अपनी पुत्री को आबंटित भू भाग है। जो आज तल्ला गेवाड़ में रामगंगा नदी के पूर्वी किनारे पर बसा मॉंसी नाम से विख्यात है। यहाँ के मूल निवासी मासीवाल कहलाते हैं।
सभ्यता एवम् संस्कृति
संपादित करेंमॉंसी की सभ्यता एवं संस्कृति पूर्ण रूप से कुमांऊँ की लोककला पर आधारित है। घरों की बनावट व सजावट में ही सर्वप्रथम पर्वतीय लोक कला व संस्कृति दृष्टिगोचर होती है। दशहरा, दीपावली, नामकरण, जनेऊ आदि शुभ अवसरों पर महिलाएँ घर में ऐंपण (अर्पण) बनाती हैं। इसके लिए घर, ऑंगन तथा सीढ़ियों को गेरू से लीपा जाता है। चावलों को भिगोकर पीसा जाता है तथा उसके लेप से आकर्षक चित्र बनाए जाते हैं। विभिन्न अवसरों पर नामकरण-चौकी, सूर्य-चौकी, स्नान-चौकी, जन्मदिन-चौकी, यज्ञोपवीत-चौकी, विवाह-चौकी, धूमिलअर्ध्य-चौकी, वर-चौकी, आचार्य-चौकी, अष्टदल-कमल, स्वास्तिक-पीठ, विष्णु-पीठ, शिव-पीठ, सरस्वती-पीठ तथा विभिन्न प्रकार की परम्परागत कलाकृतियॉं बनाई जाती हैं। इन्हेें तकरीबन महिलाऐं व बालिकाऐं ही बनाती हैं।
मॉंसी में बोलचाल की भाषा अर्थात बोली को पाली पछांऊॅं की कुमांऊॅंनी कहा जाता है। सरकारी कामकाज में बोलने व लिखने की भाषा हिन्दी है। अध्ययन व अध्यापन हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में पाया जाता है।
मेले एवम् त्यौहार
संपादित करेंकुमांऊॅं के सभी तीज-त्यौहार तथा उत्सव मनाऐ जाते हैं और पूर्ण रूप से पाली पछांऊॅं इलाके की कुमांऊॅंनी हिन्दू संस्कृति का समावेश बिखरा पड़ा रहता है।
- ऐतिहासिक सोमनाथ मेला
सोमनाथ मेला, सोमनाथ, सल्डिया सोमनाथ यानि वर्तमान ऐतिहासिक सोमनाथ कहा जाने वाला मेला कनौंणियॉं बिष्ट व मॉंसीवाल नामक उपनाम के लोगों से सम्बन्धित है। इस तल्ला गेवाड़ में माॅंसी के समीप परन्तु अब मॉंसी में प्रतिवर्ष होने वाले ऐतिहासिक सोमनाथ मेले की आराध्य भूमि को सोमनाथेश्वर कहते हैं। जो आज भी तत्समय के इतिहास के सुनहरे पन्नों और पाली पछांऊॅं इलाके की कुमांऊॅंनी सॉस्कृतिक विरासत को समेटे है।[1][2] यहीं से मेले के इतिहास का पदार्पण हुआ था और इसी सोमनाथेश्वर महादेव नामक शिवालय से शुरू होता था, सोमनाथ। वक्त बदला, लोग बदले और मेले का स्वरूप भी अछूता न रह सका और बीसवीं सदी के अन्त तक मेला मॉंसी के बाजार में होने लग गया और इतिहास भी काफी कुछ बदल गया और बीसवीं सदी के पहले दशक के प्रारम्भ से राजनीतिक रंग का समावेश भी दृष्टगोचर होने लगा है।
आवागमन के स्रोत
संपादित करेंमॉंसी के लिए प्राचीन काल से ही आवागमन का अभाव लगभग ना के बराबर ही रहा है। कत्यूरी राजवंश, चन्द राजवंश, गोरखा राज तथा ब्रिटिश शासनकाल के मार्गों के अवशेष आज भी जीवित हैं और कुछेक प्रयोग में भी हैं। गढ़वाल से पाली पछांऊॅं होकर रानीखेत को जाता तत्कालीन राजमार्ग मॉंसी के निकट से गुजरता है। तराई से भिकियासैंण होकर आता और उत्तर की ओर बद्रीनाथ धाम, केदारनाथ धाम इत्यादि इलाकों का तत्कालीन मार्ग यहीं होकर निकलता था। बाद में ब्रिटिशकाल के दौरान जिसके समानान्तर मौजूदा मोटर मार्ग बना जो अाज यातायात की मुख्य सड़क है। दूसरा रानीखेत से जालली होते हुए मॉंसी तक जाता मोटर मार्ग। इस मार्ग का निर्माण लगभग 1970-75 के दौरान हुआ था।
वायु मार्ग
संपादित करेंनिकटतम हवाई अड्डा रुद्रपुर व हल्द्वानी के मध्य में स्थित पंतनगर विमानक्षेत्र है। यह सड़क द्वारा लगभग 175 से 200 किलोमीटर की दूरी पर पंतनगर में ही है। जहॉ से सुविधानुसार टैक्सी अथवा कार से पहुंचा जाता है।
रेल मार्ग
संपादित करेंरेलवे जंक्शन काठगोदाम जो कि लगभग 161 किलोमीटर की दूरी पर तथा दूसरा रेलवे जंक्शन 115 किलोमीटर पर रामनगर में है। दोनों स्थानों से सुविधानुसार उत्तराखंड परिवहन की बस अथवा टैक्सी कार द्वारा आसानी से मॉंसी पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग
संपादित करेंदिल्ली के आनन्द विहार आईएसबीटी से यहॉ के लिए उत्तराखण्ड परिवहन की दिल्ली-मॉंसी बस प्रतिदिन शायं उपलब्ध होती है। जिनके द्वारा 10-12 घंटों में यहॉ पहुंचा जाता है। प्रदेश के अन्य स्थानों से भी बसों की सुविधाऐं उपलब्ध हैं। दिल्ली से रूट: राष्ट्रीय राजमार्ग ९ से हापुड़, गजरौला, मुरादाबाद, रामनगर, भतरोंजखान या घट्टी से भिकियसैण होते हुए मॉंसी।
निकटवर्ती धार्मिक, ऐतिहासिक व प्राकृतिक स्थल
संपादित करेंयहॉं पर तकरीबन साल भर प्राकृतिक सौन्दर्य की विरासतता चारों ओर बिखरी रहती है।
- भूमियॉं मन्दिर, मॉंसी
यहॉं पर प्राचीन काल का भूमियॉं मन्दिर स्थापित है, जहॉं बारहों महीने देश व प्रदेश के विभिन्न भागों से श्रधालु और दर्शनार्थी पहुंचते रहते हैं।
- सोमनाथेश्वर महादेव
यह सोमनाथेश्वर महादेव नामक शिवालय तल्ला गेवाड़ के वर्तमान मॉंसी में प्रतिवर्ष होने वाले ऐतिहासिक सोमनाथ मेले की ऐतिहासिक आराध्य भूमि पर स्थित है। इसकी स्थापना कत्यूरी शासनकाल की मानी जाती है।
- पौराणिक बृद्धकेदार
यह पौराणिक बृद्धकेदार नामक शिवालय यहॉंं सेे चार किलोमीटर दक्षिण की ओर रामगंगा नदी के पश्चिमी तट पर विराजमान है। इस वैदिक काल के शिवालय को नेपाल स्थित पशुपतिनाथ मन्दिर का अंग माना जाता है। यहॉं पर महाशिव का धड़ स्थापित है। इसकी स्थापना का अनुमान पन्द्रहवीं सोलहवीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है। यहॉं प्रतिवर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा की रात दूर दूर से भक्तगण आकर पूरी रात रामगंगा नदी में खड़े होकर तथा हाथों दीप प्रज्वलित कर श्रधासुमनों के साथ शिव भक्ति में लीन रहते हैं। भोर होने पर गंगा में विसर्जित कर अपनी-अपनी मनोकामनाओं को साकार करने की मनोकामना करते हैं। सदियों से मेला लगता है। महाशिवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व होता है।
- नैथनादेवी
यह नैथनादेवी नाम शिखर जिसे कभी नागार्जुन कहा जाता था, यह मॉंसी से पूर्व दिशा की ओर विराजमान है। यहॉं गोरखाराज के किले के अवशेष भी मौजूद हैं, जहॉं से उस समय पाली पछांऊॅं इलाके की गतिविधियॉं संचालित थीं। बरषों से देखरेख के अभावों के बाद अवशेष खंडहरों के नामो निशान भी मिटने लगे हैं।
- मॉं मानिलादेवी
मॉंसी के ठीक दक्षिण की ओर मॉं मानिलादेवी पर्वत शिखर है। जहॉं मॉं मानिला देवी के तल्ला व मल्ला मानिला में भव्य मन्दिर हैं।
मॉंसी से उत्तर पूर्व की ओर लगभग 20-25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
क्रय-विक्रय केन्द्र मॉंसी बाजार
संपादित करेंमॉंसी गॉंव की सीमा के भीतर ही बाजार स्थित है, जिसे मॉंसी बाजार कहते हैं। यहॉं पर रोजमर्रा की वस्तुवें मिल जाती हैं। निकटस्थ बाजार आधा किलोमीटर की दूरी पर मॉंसी है। जहॉं पर बैंक, डाकखाना, एटीएम, स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाऐं तथा तकरीबन सभी प्रकार की सुविधाऐं उपलब्ध हो जाती हैं।
शिक्षण सुविधाऐं
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "सोमनाथ मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम". हिन्दुस्तान, हिन्दी दैनिक. मूल से 29 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जनवरी 2018.
- ↑ "मासी का सोमनाथ मेला". अमर उजाला, हिन्दी दैनिक. मूल से 7 नवंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जनवरी 2018.