सौरोर्जा (सौर-ऊर्जा) सूर्य से निकलने वाली प्रकाश और ऊष्मा है जो विद्युदुत्पन्न करने के लिए सौर शक्ति , सौर तापीय ऊर्जा (सौर जल तापन सहित), और सौर वास्तुकला जैसी तकनीकों की एक शृंखला का उपयोग करके उपयोग की जाती है। यह नवीकरणीय ऊर्जा का एक आवश्यक स्रोत है, और इसकी तकनीकों को व्यापकतः निष्क्रिय सौर या सक्रिय सौर के रूप में वर्णित किया जाता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि वे सौरोर्जा को कैसे ग्रहण और वितरित करते हैं या इसे सौर शक्ति में परिवर्तित करते हैं। सक्रिय सौर तकनीकों में ऊर्जा का दोहन करने के लिए फोटोवोल्टिक प्रणालियों, केन्द्रित सौर शक्ति और सौर जल तापन का उपयोग शामिल है। निष्क्रिय सौर तकनीकों में एक इमारत को सूर्य की ओर उन्मुख करना, अनुकूल तापीय द्रव्यमान या प्रकाश फैलाने वाले गुणों वाली सामग्रियों का चयन करना और ऐसी स्थानों को नियत करना शामिल है जो स्वाभाविक रूप से वायु को प्रसारित करती हैं।

सूर्य विद्युच्चुम्बकीय विकिरण उत्पन्न करता है जिसका उपयोग ऊर्जा के रूप में किया जा सकता है।

विशेषताएँ

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सौर ऊर्जा : सूर्य एक दिव्य शक्ति स्रोतशान्त व पर्यावरण सुहृद प्रकृति के कारण नवीकरणीय सौर ऊर्जा को लोगों ने अपनी संस्कृतिजीवन यापन के तरीके के समरूप पाया है। विज्ञान व संस्कृति के एकीकरण तथा संस्कृति व प्रौद्योगिकी के उपस्करों के प्रयोग द्वारा सौर ऊर्जा भविष्य के लिए अक्षय ऊर्जा का स्रोत साबित होने वाली है। सूर्य से सीधे प्राप्त होने वाली ऊर्जा में कई खास विशेषताएं हैं। जो इस स्रोत को आकर्षक बनाती हैं। इनमेंज घाछआजइसका अत्यधिक विस्तारित होना, अप्रदूषणकारी होना व अक्षुण होना प्रमुख हैं। सम्पूर्ण भारतीय भूभाग पर ५००० लाख करोड़ किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मी० के बराबर सौर ऊर्जा आती है जो कि विश्व की संपूर्ण विद्युत खपत से कई गुने अधिक है। साफ धूप वाले (बिना धुंध व बादल के) दिनों में प्रतिदिन का औसत सौर-ऊर्जा का सम्पात ४ से ७ किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर तक होता है। देश में वर्ष में लगभग २५० से ३०० दिन ऐसे होते हैं जब सूर्य की रोशनी पूरे दिन भर उपलब्ध रहती है।

 
सौर पैनेल द्वारा चालित कम्प्यूटर

सौर ऊर्जा, जो रोशनी व उष्मा दोनों रूपों में प्राप्त होती है, का उपयोग कई प्रकार से हो सकता है। सौर उष्मा का उपयोग अनाज को सुखाने, जल उष्मन, खाना पकाने, प्रशीतन, जल परिष्करण तथा विद्युत ऊर्जा उत्पादन हेतु किया जा सकता है। फोटो वोल्टायिक प्रणाली द्वारा सूर्य के प्रकाश को विद्युत में रूपान्तरित करके प्रकाश प्राप्त की जा सकती है, प्रशीलन का कार्य किया जा सकता है, दूरभाष, टेलीविजन, रेडियो आदि चलाए जा सकते हैं, तथा पंखे व जल-पम्प आदि भी चलाए जा सकते हैं। जल का उष्मन

 
सौर ऊर्जा से गरम जल की प्राप्ति

सौर-उष्मा पर आधारित प्रौद्योगिकी का उपयोग घरेलू, व्यापारिक व औद्योगिक इस्तेमाल के लिए जल को गरम करने में किया जा सकता है। देश में पिछले दो दशकों से सौर जल-उष्मक बनाए जा रहे हैं। लगभग ४,५०,००० वर्गमीटर से अधिक क्षेत्रफल के सौर जल उष्मा संग्राहक संस्थापित किए जा चुके हैं जो प्रतिदिन २२० लाख लीटर जल को ६०-७०° से० तक गरम करते हैं। भारत सरकार का अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय इस ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहन देने हेतु प्रौद्योगिकी विकास, प्रमाणन, आर्थिक एवं वित्तीय प्रोत्साहन, जन-प्रचार आदि कार्यक्रम चला रहा है। इसके फलस्वरूप प्रौद्योगिकी अब लगभग परिपक्वता प्राप्त कर चुकी है तथा इसकी दक्षता और आर्थिक लागत में भी काफी सुधार हुआ है। वृहद् पैमाने पर क्षेत्र-परिक्षणों द्वारा यह साबित हो चुका है कि आवासीय भवनों, रेस्तराओं, होटलों, अस्पतालों व विभिन्न उद्योगों (खाद्य परिष्करण, औषधि, वस्त्र, डिब्बा बन्दी, आदि) के लिए यह एक उचित प्रौद्योगिकी है। जब हम सौर उष्मक से जल गर्म करते हैं तो इससे उच्च आवश्यकता वाले समय में बिजली की बचत होती है। १०० लीटर क्षमता के १००० घरेलू सौर जल-उष्मकों से एक मेगावाट बिजली की बचत होती है। साथ ही १०० लीटर की क्षमता के एक सौर उष्मक से कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन में प्रतिवर्ष १.५ टन की कमी होगी। इन संयंत्रों का जीवन-काल लगभग १५-२० वर्ष का है।

सौर ऊर्जा  का उपयोग करके क्या क्या बनाया जा सकता हैं ।

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सौर-पाचक (सोलर कुकर)

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सौर उष्मा द्वारा खाना पकाने से विभिन्न प्रकार के परम्परागत ईंधनों की बचत होती है। बाक्स पाचक, वाष्प-पाचक व उष्मा भंडारक प्रकार के एवं भोजन पाचक, सामुदायिक पाचक आदि प्रकार के सौर-पाचक विकसित किए जा चुके हैं। ऐसे भी बाक्स पाचक विकसित किए गये हैं जो बरसात या धुंध के दिनों में बिजली से खाना पकाने हेतु प्रयोग किए जा सकते हैं। अबतक लगभग ४,६०,००० सौर-पाचक बिक्री किए जा चुके हैं। सोलर कुकर बनाना

आवश्यक सामाग्री:- अलुमिनिअम पेपर १ नग,काळा पेपर 1 नग,कार्डबोर्ड पेपर 1 नग,पारदर्शी काच-1 नग |

सोलर कुकर बनाने की विधी: कार्डबोर्ड पेपर को काटें और 8 सेमी, चौड़ाई, 7 सेमी, ऊंचाई, 8 सेमी का एक बॉक्स बनाएं।कार्डबोर्ड पेपर की लंबाई 2 सेमी,चौड़ाई 1.5 सेमी काटें और इसे काले कागज पर चिपका दें।लंबाई 3 सेमी, चौड़ाई 2.5 सेमी। कार्डबोर्ड पेपर को काटें और एल्यूमीनियम पेपर को इसमें संलग्न करें।कार्डबोर्ड बॉक्स के अंदर इसे संलग्न करें।बॉक्स के शीर्ष पर 3 सेमी, चौड़ाई 3 सेमी, ऊंचाई 8 सेमी होनी चाहिए।लंबाई 2 सेमी, चौड़ाई 2.5 सेमी का एक कार्डबोर्ड ढक्कन बनाकर एल्यूमीनियम पेपर से लगाए और सभी सामग्रियों की जाँच करके धूप मे रखकर उपयोग करें।

सौर कुकर/ओवन सौर कुकर या ओवन ऐसे उपकरण होते है जो की खाना बनाने या गर्म करने के लिए प्रत्यक्ष रूप से सूर्य के प्रकाश का उपयोग करते है। यह किसी भी प्रकार के ईंधन का उपयोग नहीं करते है| इस प्रकार इन्हे संचालित करना भी बहुत सस्ता होता है। यह एक खाना पकाने का बर्तन का इस्तेमाल करते हैं, जिस पर सूर्य के प्रकाश या गर्मी को केंद्रित करने के लिए परावर्तक सतह जैसे की कांच या धातु की चादर का उपयोग होता है| बर्तन को सूरज की रोशनी से गर्मी अवशोषित करने के लिए काले या गहरे गैर-रिफ्लेक्टिव पेंट से रंगा जाता हैं, जिस कारण बर्तन अवशोषित गर्मी के माध्यम से खाने को पका सके। भारत में अधिकतम स्थानों पर सूर्य का प्रकाश अपने उच्च स्तर सौर विकिरण के साथ 275 दिनों के लिए प्राप्त होता है| स्पष्ट रूप से सौर कुकर को इन दिनों में सूर्योदय के एक घंटे बाद से सूर्यास्त से एक घंटे पहले तक आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। विभिन्न कारक जैसे की ईंधन की कमी, बायोमास के जलने से स्वास्थ्य पर प्रभाव और जलवायु परिवर्तन, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सौर कुकर का उपयोग करने का एक मजबूत मामला अवश्य बनाते हैं। सावधानियाँ:-सोलर कुकर को उठाते समय ध्यान रखे की काँच और आईना फूटने ना पाएँ |सोलर कुकर के अंदर से पनि गिरने ना पाएँ ,इस बात का ध्यान रखे |सोलर कुकर के ऊपर वजनदार वस्तु नही रखना चाहिए।

डिश सौर कुकर ये नियमित सौर कुकर काले रंग के होते हैं| यह कुकर सूरज की रोशनी को केंद्रित करने के लिए एक परबोलिक डिश का इस्तेमाल करता हैं, जहां एक केन्द्र बिन्दु पर सूरज की रोशनी केंद्रित होती है| इस तरह के सौर कुकर 350-400 डिग्री सेंटीग्रेट तक का तापमान प्राप्त कर सकते हैं, इस प्रकार इन कूकरो पर खाना भी बहुत तेजी से पकता है| इन्हे आप रॉक्स्टइंग, फ्राइंग और चीज़े उबालने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। यह अपने आकार की वजह से, लगभग 10-15 लोगों के लिए खाना पकाने के लिए भली-भाति सक्षम होते है (हालांकि, यह कुछ छोटे आकर में भी बाजार में उपलब्ध हैं, जो की 4 लोगों के लिए खाना पकाने के लिए अच्छे होते हैं)| इस तरह के कुकर को भी सूर्य के प्रकाश की दिशा के आधार पर समायोजन की जरूरत होती है| बाजार में इनके विभिन्न प्रकार के मॉडल उपलब्ध हैं, जिनको या तो मैनुअल समायोजन की जरूरत होती है या यह समायोजन तंत्र से स्वचालित होते है (ऐसे यंत्रो में सूरज की रोशनी को ट्रैक करने के लिए यांत्रिक घड़ी की व्यवस्था होती हैं)| एक डिश सौर कुकर की कीमत लगभग रुपये 6,000-7,000 तक होती है और यह प्रतिवर्ष प्रयोग और सूर्य के प्रकाश के आधार पर 10 सिलेंडरों की बचत कर सकने में सक्षम होते हैं| यह कुकर किसी के भी द्वारा आसानी से इकट्ठे या उद्ध्वस्त किया जा सकते हैं, और इस प्रकार यह आसानी से कहीं भी ले जाये जा सकते हैं| यह उपयोगकर्ता के भी अनुकूल होता है, क्यूंकि इसकी ऊंचाई को भी प्रयोग करने वाले व्यक्ति के आधार पर समायोजित किया जा सकता है| बाजार में बड़े आकार के डिश कुकर भी उपलब्ध हैं जो की लगभग 40 लोगों के लिए खाना बना सकते है और जिसकी लागत लगभग 30,000 रुपये होती है (हालांकि, यह लगभग 30 रसोई गैस सिलेंडरों की बचत करने में भी सक्षम होते हैं)।

इंडोर खाना बनाने के लिए सामुदायिक सोलर कुकर इस प्रकार के कुकर परंपरागत खाना पकाने वाले प्रणाली के सबसे करीब होते है| यह रसोई घर के अंदर ही खाना पकाने की संभावना प्रदान करते है| इनमे एक बड़े रिफ्लेक्टर, जो बाहर के तरफ होता हैं और माध्यमिक रिफ्लेक्टर के माध्यम से सूर्य की रौशनी को काले रंग में रंगे बर्तन या फ्राइंग पैन के तल पर केंद्रित किया जाता है। इस प्रकिया के माध्यम से इतना तापमान प्राप्त किया जा सकता है, जिससे बहुत जल्दी खाना पक सके, यह एक बॉक्स कुकर की तुलना में अधिक तेजी से खाना बनाते हैं। क्यूंकि यह पारंपरिक प्रणाली की तरह कार्य करता है, इसलिए इससे चपातियां, डोसा, आदि बनाना संभव होता हैं| आकार की वजह से, यह 40-100 लोगों के लिए खाना पकाने के लिए भली-भाति सक्षम होता हैं| इसकी लागत लगभग रुपये 75,000 से 1.6 लाख के आसपास आती हैं और अपने आकार की वजह से यह एक वर्ष में 30-65 एलपीजी सिलेंडरों का संचय करने में सक्षम भी होता हैं। अधिकांश ऐसी प्रणालियों में सूरज की रोशनी को ट्रैक करने के लिए स्वचालित रोटेशन प्रणाली लैस होती हैं। इनमे एक मैकेनिकल युक्ति या सूरज को ट्रैक करने के लिए घड़ी-नुमा परावर्तक की व्यवस्था भी होती हैं।

सोलर मोबाइल चार्जर

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कम लागत मे तैयार होने वाला यह मोबाइल चार्जर ग्रामीण क्षेत्रों मे बहुत ही लाभप्रद एवं उपयोगी है | ग्रामीण अंचल मे आज भी कई जगह विद्धुत लाइन का विस्तार नही हो पाया है किन्तु तकनीकी युग मे लोगों के लिए मोबाइल बहुत ही आवश्यक हो चुका है | मोबाइल का उपयोग के साथ साथ मोबाइल की चार्जिंग की भी उतनी ही आवश्यकता पड़ती है जिसके लिए कम लागत मे तैयार होने वाला मोबाइल चार्जर बनाया गया है | इसकी लागत 500-600 रुपए के अंदर ही तैयार हो जाता है और अन्य चार्जर के अपेक्षा अधिक दिनों तक उपयोग में भी आता है।

सोलर मोबाइल चार्जर हेतु आवश्यक

साधन व सामाग्री: सोल्डर गन¬-1नग,12 वॉल्ट का डीसी सोलर प्लेट-1नग,चार्जिंग पिन-1नग,07805 ट्राजेस्टर-1नग,डायड-IN4007 1 नग,सॉकेट-1नग, सोल्डर पेस्ट-1 नग |

विधी:- सोलर मोबाइल चार्जर बनाने हेतु दिये गए सर्किट डायग्राम देखकर बनाएँ | सोलर प्लेट से निकले हुये लाल एवं काला वायर के बीच 07805 ट्राजेस्टर को सोल्डर किया जाता है और सर्किट डायग्राम के आधार पर ट्राजेस्टर से यूएसबी सॉकेट के 2 पॉइंट में सोल्डर किया जाता है | चार्जर पिन को सॉकेट मे लगाकर सोलर प्लेट को धूप पर रख कर मोबाइल चार्ज कर सकते है |यह सर्किट बहुत ही सरल है व कम लागत मे तैयार होने वाला मोबाइल चार्जर है।

सौर वायु उष्मन सूरज की गर्मी के प्रयोग द्वारा कटाई के पश्चात कृषि उत्पादों व अन्य पदार्थों को सुखाने के लिए उपकरण विकसित किए गये हैं। इन पद्धतियों के प्रयोग द्वारा खुले में अनाजों व अन्य उत्पादों को सुखाते समय होने वाले नुकसान कम किए जा सकते हैं। चाय पत्तियों, लकड़ी, मसाले आदि को सुखाने में इनका व्यापक प्रयोग किया जा रहा है। सौर स्थापत्य किसी भी आवासीय व व्यापारिक भवन के लिए यह आवश्यक है कि उसमें निवास करने वाले व्यक्तियों के लिए वह सुखकर हो। ``सौर-स्थापत्य वस्तुत: जलवायु के साथ सामन्जस्य रखने वाला स्थापत्य है। भवन के अन्तर्गत बहुत सी अभिनव विशिष्टताओं को समाहित कर जाड़े व गर्मी दोनों ऋतुओं में जलवायु के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके चलते परम्परागत ऊर्जा (बिजली व ईंधन) की बचत की जा सकती है।

 
सूर्य से आने वाली ऊर्जा कहाँ-कहाँ जाती है?

आदित्य सौर कार्यशालाएँ भारत सरकार के अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय के सहयोग से देश के विभिन्न भागों में ``आदित्य सौर कार्यशालाएँ स्थापित की जा रही हैं नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों की बिक्री, रखरखाव, मरम्मत एवं तत्सम्बन्धी सूचना का प्रचार-प्रसार इनका मुख्य कार्य होगा। सरकार इस हेतु एकमुश्त धन और दो वर्षों तक कुछ आवर्ती राशि उपलब्ध कराती है। यह अपेक्षा रखी गयी है कि ये कार्यशालाएँ ग्राहक-सुहृद रूप से कार्य करेंगी एवं अपने लिए धन स्वयं जुटाएंगी। सौर फोटो वोल्टायिक कार्यक्रम सौर फोटो वोल्टायिक तरीके से ऊर्जा, प्राप्त करने के लिए सूर्य की रोशनी को सेमीकन्डक्टर की बनी सोलार सेल पर डाल कर बिजली पैदा की जाती है। इस प्रणाली में सूर्य की रोशनी से सीधे बिजली प्राप्त कर कई प्रकार के कार्य सम्पादित किये जा सकते हैं।भारत उन अग्रणी देशों में से एक है जहाँ फोटो वोल्टायिक प्रणाली प्रौद्योगिकी का समुचित विकास किया गया है एवं इस प्रौद्योगिकी पर आधारित विद्युत उत्पादक इकाईयों द्वारा अनेक प्रकार के कार्य सम्पन्न किये जा रहे हैं। देश में नौ कम्पनियों द्वारा सौर सेलों का निर्माण किया जा रहा है एवं बाइस द्वारा फोटोवोल्टायिक माड्यूलों का। लगभग ५० कम्पनियां फोटो वोल्टायिक प्रणालियों के अभिकल्पन, समन्वयन व आपूर्ति के कार्यक्रमों से सक्रिय रूप से जुड़ी हुयी हैं। सन् १९९६-९९ के दौरान देश में ९.५ मेगावाट के फोटो वोल्टायिक माड्यूल निर्मित किए गये। अबतक लगभग ६००००० व्यक्तिगत फोटोवोल्टायिक प्रणालियां (कुल क्षमता ४० मेगावाट) संस्थापित की जा चुकी हैं। भारत सरकार का अपारम्परिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय सौर लालटेन, सौर-गृह, सौर सार्वजनिक प्रकाश प्रणाली, जल-पम्प, एवं ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एकल फोटोवोल्टायिक ऊर्जा संयंत्रों के विकास, संस्थापना आदि को प्रोत्साहित कर रहा है।फोटो वोल्टायिक प्रणाली माड्यूलर प्रकार की होती है। इनमें किसी प्रकार के जीवाष्म उर्जा की खपत नहीं होती है तथा इनका रख रखाव व परिचालन सुगम है। साथ ही ये पर्यावरण सुहृद हैं। दूरस्थ स्थानों, रेगिस्तानी इलाकों, पहाड़ी क्षेत्रों, द्वीपों, जंगली इलाकों आदि, जहाँ प्रचलित ग्रिड प्रणाली द्वारा बिजली आसानी से नहीं पहुँच सकती है, के लिए यह प्रणाली आदर्श है। अतएव फोटो वोल्टायिक प्रणाली दूरस्थ दुर्गम स्थानों की दशा सुधारने में अत्यन्त उपयोगी है।

सौर लालटेन

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सौर लालटेन एक हल्का ढोया जा सकने वाली फोटो वोल्टायिक तंत्र है। इसके अन्तर्गत लालटेन, रख रखाव रहित बैटरी, इलेक्ट्रानिक नियंत्रक प्रणाली, व ७ वाट का छोटा फ्लुओरेसेन्ट लैम्प युक्त माड्यूल तथा एक १० वाट का फोटो वोल्टायिक माड्यूल आता है। यह घर के अन्दर व घर के बाहर प्रतिदिन ३ से ४ घंटे तक प्रकाश दे सकने में सक्षम है। किरासिन आधारित लालटेन, ढ़िबरी, पेट्रोमैक्स आदि का यह एक आदर्श विकल्प है। इनकी तरह न तो इससे धुआँ निकलता है, न आग लगने का खतरा है और न स्वास्थ्य का। अबतक लगभग २,५०,००० के उपर सौर लालटेने देश के ग्रामीण इलाकों में कार्यरत हैं।

सौर जल-पम्प

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फोटो वोल्टायिक प्रणाली द्वारा पीने व सिंचाई के लिए कुओं आदि से जल का पम्प किया जाना भारत के लिए एक अत्यन्त उपयोगी प्रणाली है। सामान्य जल पम्प प्रणाली में ९०० वाट का फोटो वाल्टायिक माड्यूल, एक मोटर युक्त पम्प एवं अन्य आवश्यक उपकरण होते हैं। अबतक ४,५०० से उपर सौर जल पम्प संस्थापित किये जा चुके हैं।

ग्रामीण विद्युतीकरण (एकल बिजली घर) फोटोवोल्टायिक सेलों पर आधारित इन बिजली घरों से ग्रिड स्तर की बिजली ग्रामवासियों को प्रदान की जा सकती है। इन बिजली घरों में अनेकों सौर सेलों के समूह, स्टोरेज बैटरी एवं अन्य आवश्यक नियंत्रक उपकरण होते हैं। बिजली को घरों में वितरित करने के लिए स्थानीय सौर ग्रिड की आवश्यकता होती है। इन संयंत्रों से ग्रिड स्तर की बिजली व्यक्तिगत आवासों, सामुदायिक भवनों व व्यापारिक केन्द्रों को प्रदान की जा सकती है। इनकी क्षमता १.२५ किलोवाट तक होती है। अबतक लगभग एक मेगावाट की कुल क्षमता के ऐसे संयंत्र देश के विभिन्न हिस्सों में लगाए जा चुके हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, देश का उत्तर पूर्वी क्षेत्र, लक्षद्वीप, बंगाल का सागर द्वीप, व अन्डमान निकोबार द्वीप समूह प्रमुख हैं। सार्वजनिक सौर प्रकाश प्रणाली ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक स्थानों एवं गलियों, सड़कों आदि पर प्रकाश करने के लिए ये उत्तम प्रकाश स्रोत है। इसमें ७४ वाट का एक फोटो वोल्टायिक माड्यूल, एक ७५ अम्पीयर-घंटा की कम रख-रखाव वाली बैटरी तथा ११ वाट का एक फ्लुओरेसेन्ट लैम्प होता है। शाम होते ही यह अपने आप जल जाता है और प्रात:काल बुझ जाता है। देश के विभिन्न भागों में अबतक ४०,००० से अधिक इकाईयां लगायी जा चुकी है।

घरेलू सौर प्रणाली घरेलू सौर प्रणाली के अन्तर्गत २ से ४ बल्ब (या ट्यूब लाइट) जलाए जा सकते हैं, साथ ही इससे छोटा डीसी पंखा और एक छोटा टेलीविजन २ से ३ घंटे तक चलाए जा सकते हैं। इस प्रणाली में ३७ वाट का फोटो वोल्टायिक पैनेल व ४० अंपियर-घंटा की अल्प रख-रखाव वाली बैटरी होती है। ग्रामीण उपयोग के लिए इस प्रकार की बिजली का स्रोत ग्रिड स्तर की बिजली के मुकाबले काफी अच्छा है। अबतक पहाड़ी, जंगली व रेगिस्तानी इलाकों के लगभग १,००,००० घरों में यह प्रणाली लगायी जा चुकी है।

 
अन्तरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के सौर पैनेल

सौर ऊर्जा की कई परेशानियां भी होती हैं। व्यापक पैमाने पर बिजली निर्माण के लिए पैनलों पर भारी निवेश करना पड़ता है। दूसरा, दुनिया में अनेक स्थानों पर सूर्य की रोशनी कम आती है, इसलिए वहां सोलर पैनल कारगर नहीं हैं। तीसरा, सोलर पैनल बरसात के मौसम में ज्यादा बिजली नहीं बना पाते। फिर भी विशेषज्ञों का मत है कि भविष्य में सौर ऊर्जा का अधिकाधिक प्रयोग होगा। भारत के प्रधानमंत्री ने हाल में सिलिकॉन वैली की तरह भारत में सोलर वैली बनाने की इच्छा जताई है।

विश्व के विभिन्न देशों में सौर ऊर्जा का विकास एवं वर्तमान स्थिति

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निम्नलिखित सारणी में विभिन्न देशों में लगे प्रकाश-विद्युत सेल की क्षमता (मेगावाट) में दी गयी है-

क्षेत्र 2006 2007 2008 2009 2010 2011 2012 2013 वृद्धि
2013/2012
हिस्सेदारी
Niemcy 2899 4170 6120 9914 17 320 25 039 32 643 35 500 8,8% 26,0%
चीन 80 100 140 300 800 3300 8300 18 300 120,5% 13,4%
Włochy 50 120 458 1181 3502 12 803 16 241 17 600 8,4% 12,9%
जापान 1709 1919 2144 2627 3618 4914 6914 13 600 96,7% 9,9%
यूएसए 624 831 1169 1616 2534 3966 7312 12 000 64,1% 8,8%
Hiszpania 148 705 3463 3523 3915 4260 4532 5566 22,8% 4,1%
फ्रांस 44 75 180 335 1054 2660 3692 4632 25,5% 3,4%
आस्ट्रेलिया 70 83 105 188 571 1408 2408 3255 35,2% 2,4%
Belgia 4 27 108 627 1044 2051 2650 2983 12,6% 2,2%
Wielka Brytania 14 18 23 26 70 976 1655 2900 75,2% 2,1%
यूनान 7 8 18 55 205 624 1536 2579 67,9% 1,9%
भारत 30 31 71 101 161 481 1176 2319 97,2% 1,7%
Czechy 1 3 64 462 1952 1959 2072 2162 4,3% 1,6%
Korea Południowa 36 81 358 524 656 812 1064 1476 38,7% 1,1%
कनाडा 21 26 33 95 291 559 827 1210 46,3% 0,9%
बुल्गारिया 0 0 1 7 35 141 908 1020 12,3% 0,7%
Szwajcaria 30 36 48 74 111 211 410 740 80,5% 0,5%
हॉलैण्ड 52 53 57 68 88 131 256 650 153,9% 0,5%
यूक्रेन 0 0 0 0 0 140 326 616 89,0% 0,5%
ऑस्ट्रिया 26 28 32 53 96 187 422 580 37,4% 0,4%
Dania 3 3 3 5 7 17 392 532 35,7% 0,4%
Słowacja 0 0 0 0 148 508 523 524 0,2% 0,4%
इस्रायल 1 2 3 25 70 190 250 420 68,0% 0,3%
पुर्तगाल 3 18 68 102 131 144 212 284 34,0% 0,2%
Meksyk 20 21 22 25 31 37 52 100 92,3% 0,1%
Malezja 6 7 9 11 13 14 36 73 102,8% 0,1%
Szwecja 5 6 8 9 11 16 24 43 79,2% 0,0%
तुर्की 3 3 4 5 6 7 9 15 66,7% 0,0%
नार्वे 8 8 8 9 9 10 10 11 10,0% 0,0%
फिनलैण्ड 4 4 4 5 7 8 8 8 0,0% 0,0%
विश्व 6967 9564 15 981 23 299 40 030 69 871 100 115 136 697 36.5% 100,0%

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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