सौर बैटरी या सौर सेल फोटोवोल्टाइक प्रभाव के द्वारा सूर्य या प्रकाश के किसी अन्य स्रोत से ऊर्जा प्राप्त करता है। अधिकांश उपकरणों के साथ सौर बैटरी इस तरह से जोड़ी जाती है कि वह उस उपकरण का हिस्सा ही बन जाती जाती है और उससे अलग नहीं की जा सकती। सूर्य की रोशनी से एक या दो घंटे में यह पूरी तरह चार्ज हो जाती है। सौर बैटरी में लगे सेल प्रकाश को समाहित कर अर्धचालकों के इलेक्ट्रॉन को उस धातु के साथ क्रिया करने को प्रेरित करता है।[1] एक बार यह क्रिया होने के बाद इलेक्ट्रॉन में उपस्थित ऊर्जा या तो बैटरी में भंडार हो जाती है या फिर सीधे प्रयोग में आती है। ऊर्जा के भंडारण होने के बाद सौर बैटरी अपने निश्चित समय पर डिस्चार्ज होती है। ये उपकरण में लगे हुए स्वचालित तरीके से पुनः चालू होती है, या उसे कोई व्यक्ति ऑन करता है।

मोनोक्रिस्टलाइन सिलिकॉन वैफ़र से बना सौर सेल
सौर सेल का चिह्न
एक परिकलक में लगे सौर सेल

अधिकांशतः जस्ता-अम्लीय (लेड एसिड) और निकल कैडमियम सौर बैटरियां प्रयोग होती हैं। लेड एसिड बैटरियों की कुछ सीमाएं होती हैं, जैसे कि वह पूरी तरह चार्ज नहीं हो पातीं, जबकि इसके विपरीत निकल कैडिमयम बैटरियों में यह कमी नहीं होती, लेकिन ये अपेक्षाकृत भी होती हैं। सौर बैटरियों को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में भी प्रयोग करने हेतु भी गौर किया जा रहा है। अभी तक, इन्हें केवल छोटे इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में प्रयोगनीय समझा जा रहा है।[1] पूरे घर को सौर बैटरी से चलाना चाहे संभव हो, लेकिन इसके लिए कई सौर बैटरियों की आवश्यकता होगी। इसकी विधियां तो उपलब्ध हैं, लेकिन यह अधिकांश लोगों के लिए अत्यधिक महंगा पड़ेगा। बहुत से सौर सेलों को मिलाकर (आवश्यकतानुसार श्रेणीक्रम या समानान्तरक्रम में जोड़कर) सौर पैनल, सौर मॉड्यूल, एवं सौर अर्रे बनाये जाते हैं। सौर सेलों द्वारा जनित ऊर्जा, सौर ऊर्जा का एक उदाहरण है।

 
विभिन्न प्रकार के सौर सेल

बेहद छोटे उपकरणों जैसे परिकलक में भी सौर बैटरियों का प्रयोग है, लेकिन उनमें लगी बैटरियां काफी छोटी होती हैं और अधिक ऊर्जा संग्रहित नहीं कर पातीं। फिर भी यह ऊर्जा प्रवाह के लिये प्रायः प्रयोगनीय तरीके जैसे तारों आदि से छुटकारा दिलाती हैं। अतः इस अर्थ में ये बेहतर है। विज्ञान पत्रिका साइंस-डेली में छपी रिपोर्ट के अनुसार स्वानसी विश्वविद्यालय के डेव वर्सली लचीले इस्पात के सतह को रंगने का तरीका ढूंढ रहे हैं। इससे वर्तमान सौर सेलों की तुलना में कई गुना ज्यादा ऊर्जा का उत्पादन हो सकता है।[2]

कार्बनिक सेल

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दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक सेंटीमीटर से भी छोटा सौर सेल बनाया है। इन्हें कार्बनिक सौर सेल या पॉलीमर सेल भी कहते हैं।[3][4] इन २० सेलों को कतारबद्ध कर एक इकाई में जोड़ा जा सकता है, जो छोटी सूक्ष्मदर्शी मशीनों को उर्जा प्रदान कर सकती है। पारम्परिक सौर सेल सिलिकॉन से बनाए जाते हैं लेकिन ये नेनो सौर सेल कार्बनिक पॉलीमर से बनाए गए हैं जिनके विद्युत गुण सिलिकॉन जैसे ही होते हैं। इनका प्रमुख लाभ ये है कि इन्हे किसी भी पदार्थ पर छिड़का जा सकता है, यानि कि कार की छत पर भी इस पॉलीमर का छिडकाव कर इस तरह के सौर सेल चिपकाए जा सकते है। इस समय इस तरह के सेल ७ वॉट विद्युत पैदा कर सकते हैं। वैज्ञानिक प्रयासरत हैं कि इनकी क्षमता को और बढाया जा सके जिससे भविष्य में ऐसे सेलों का अधिकाधिक उपयोग किया जा सके।[5]

कार्बन नैनोट्यूब से

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प्रकाश विद्युत प्रभाव में सिलिकॉन की अपेक्षा कार्बन नैनोट्यूब का प्रयोग एक उन्नत विकल्प के रूप में उभरा है। इस खोज से सौर सेलों में आपेक्षिक सुधार होगा। कॉर्नेल के शोधकर्ताओं ने फोटोडायोड कहे जाने वाले सरल सौर सेल का कार्बन नैनोट्यूब से निर्माण एवं प्रयोगशाला परीक्षण द्वारा उनकी कार्य-प्रणाली को पूर्णरूप से सुनिश्चित किया गया है। शोध समूह के प्रमुख सदस्य पौल मैकईयुएन भौतिकी के प्राध्यापक हैं व जीवूंग पार्क रसायनशास्त्र और रसायनिक जीव विज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं। इस शोध में नयी फ़ोटोडायोड द्वारा प्रकाश को विद्युत में अंतरण करने की प्रभावशाली प्रकिया और बहने वाली विद्युत धारा में कई गुना वृद्धि दर्शायी गयी है। सौर सेल में सिंगल-वॉलड कार्बन नैनोट्यूब का प्रयोग किया है जो मूलत: एक ग्रैफीन की बेलनाकार चादर है। लगभग डी.एन.ए. अणु के बराबर आकार वाली नैनोट्यूब को दो विद्युत संपर्कों के बीच तार से जोड़ा गया है जो दो विद्युत द्वारों पर बंद होती है जिसमें से एक ऋणावेशी और दूसरा धनावेशित है। इस का आधार पहले हुई एक शोध है जिसमें वैज्ञानिकों ने सिंगल-वॉलड नैनोट्यूब का प्रयोग करके एक डायोड बनाया था जो एक सरल ट्रांजिस्टर है और विद्युत धारा को केवल एक दिशा में बहने देता है। इस बार कॉर्नेल शोध समूह ने इसका प्रकाश पर प्रभाव प्रयोग किया है। नैनोट्यूब के विभिन्न क्षेत्रों पर अलग-अलग रंग की लेज़र चमकाने पर फोटोन ऊर्जा के उच्च स्तर पर उत्पन्न होने वाली विद्युत धारा के गुणक प्रभाव पड़ता है, यानि विद्युत धारा में बढ़ोत्तरी होती है। यही विद्युत ऊर्जा भंडार की जाती है।[6]

 

इन्हें भी देखें

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  • फोटोडायोड
  •  
    उपयोग में सौर सेल

    बाहरी कड़ियाँ

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