स्कून का पत्थर
स्कून का पत्थर एक लम्बा लाल रंग का बलुआ पत्थर (यानि सैंडस्टोन) है जिसे सदियों से स्कॉट्लैंड के राजाओं के राज्याभिषेक के लिए प्रयोग किया जाता था और सन् 1296 के बाद ब्रिटेन (मय स्कॉट्लैंड और इंग्लैंड) के सम्राटों के राज्याभिषेकों के लिए भी इस्तेमाल किया गया है। इसे अंग्रेज़ी में "स्टोन ऑफ़ स्कून" (Stone of Scone) या "स्टोन ऑफ़ डॅस्टिनि" (Stone of Destiny, भाग्य का पत्थर) का पत्थर कहा जाता है और स्कॉट्लैंड की गेलिक भाषा में "An Lia Fàil" लिखा जाता है।
इसकी लम्बाई 26 इंच, चौड़ाई 16.75 इंच और ऊँचाई 10.5 इंच है और इसका वज़न 152 किलोग्राम है। इसकी ऊपरी सतह पर तराशे जाने के कुछ निशान हैं। पत्थर के दोनों तरफ लोहे की एक-एक कड़ी है, जो शायद इसे उठाकर हिलाने में आसानी होने के लिए लगवाई गई थीं।
इतिहास
संपादित करेंयह पक्का ज्ञात नहीं है के स्कून का पत्थर कहाँ से आया और कितना पुराना है। सन् 1296 तक यह स्कॉट्लैंड में स्कून के मठ में रखा जाता था जो पॅर्थ़ शहर से कुछ मील उत्तर में पड़ता है। 14वीं सदी के पादरी और इतिहासकार वाल्टर हेमिन्ग्फ़ोर्ड ने लातिनी भाषा में लिखा था - "Apud Monasterium de Scone positus est lapis pergrandis in ecclesia Dei, juxta manum altare, concavus quidam ad modum rotundae cathedreaie confectus, in quo future reges loco quasi coronatis" यानि "स्कून के मठ में, भगवन के मंदिर में, ऊँची वेदी के नज़दीक़, एक बड़ा पत्थर पड़ा है जिसको अन्दर से ज़रा खोखला कर के गोल कुर्सीनुमा बना दिया गया है और जिसपर इनके (स्कॉटीयों के) राजा अपने अभिषेक के लिए परम्परानुसार बैठाए जाते हैं।"
सन् 1296 में इंग्लैंड के राजा ऍडवार्ड प्रथम ने स्कॉट्लैंड पर युद्ध करके उसे परास्त कर दिया और ज़बरदस्ती स्कून का पत्थर इंग्लैंड ले आये। उन्होंने एक लकड़ी का सिंहासन बनवाया जिसे अब राजा ऍडवर्ड की कुर्सी ("किंग ऍडवर्डस चेयर") कहा जाता है। इसमें उन्होंने बैठने के तख़्ते के नीचे एक खुला ख़ाना बनवाया जिसमें स्कून का पत्थर आ सके। उसके बाद जब भी किसी ब्रिटिश सम्राट का राज्याभिषेक हुआ है तो वह इसी कुर्सी पर बैठकर हुआ है। क्योंकि कुर्सी पर बैठने वाला एक तरह से स्कून के पत्थर के ऊपर भी विराजमान होता है, इसलिए स्कॉट्लैंड की परंपरा के अनुसार वह स्कॉट्लैंड का भी राजा बन जाता है।
सदियों तक कई स्कॉटियों को यह बात अखरती रही के स्कॉट्लैंड की यह ऐतिहासिक शिला इंग्लैण्ड में रखी जाती है - उनके लिए यह स्कॉट्लैंड की गुलामी का एक प्रतीक बन गया। सन् 1996 में ब्रिटिश सरकार ने इन भावनाओं को नज़र में रखते हुए यह घोषणा की के यह पत्थर स्कॉट्लैंड में रखा जाएगा और लन्दन तभी लाया जाएगा जब किसी नए राजा का अभिषेक करना हो।