सन 1851 में जॉर्ज गैब्रियल स्टोक्स (George Gabriel Stokes) ने किसी श्यान तरल में गति कर रहे किसी गोलीय पिण्ड पर लगने वाले विकर्ष (drag force ) के लिए एक व्यंजक दिया जिसे अब स्टोक्स का नियम कहते हैं।

किसी द्रव में डूबते हुए गोले के चारों तरफ बनी धारारेखाएँ ; इस चित्र में उत्प्लावन बल को Fd से तथा गुरुत्वीय बल को Fg से दर्शाया गया है।

स्टोक्स ने श्यान तरल से होकर गति कर रहे छोटे गोलाकार पिण्ड पर लगने वाले श्यान बल के लिए निम्न्लिखित व्यंजक दिया -[1]

जहाँ:

  • Fd वेग के विपरीत दिशा में लगने वाला घर्षण बल है, जिसे 'स्टोक्स का विकर्ष' (Stokes' drag) कहते हैं।
  • μ तरल की गतिक श्यानता (dynamic viscosity]] है। (कुछ लेखक इसको η से निरूपित करते हैं।)
  • R गोलाकार वस्तु की त्रिज्या है।
  • v वस्तु का तरल के सापेक्ष प्रवाह वेग (flow velocity) है।

यहाँ Fd न्यूटन (= kg m s−2) में है, μ पास्कल-सेकेण्ड (Pa·s) में है, R मीटर में है तथा v मीटर/सेकेण्ड में है।

स्टोक्स का नियम निम्नलिखित अवधारणाओं (assumptions) पर अधारित है-

  • पटलीय प्रवाह (Laminar flow)
  • गोलाकार वस्तु
  • तरल, समांग (Homogeneous) है।
  • वस्तु की सतह चिकनी है,
  • कण (या गतिमान वस्तुएँ) एक-दूसरे के साथ व्यतिकरण (interfere) नहीं कर रहे हैं।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Laidler, Keith J.; Meiser, John H. (1982). Physical Chemistry. Benjamin/Cummings. पृ॰ 833. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-8053-5682-7.