हंसराम पहलवान
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सन् 1932 में हंसराम पहलवान का जनम गुडगाँव के निकट झाड़सा गाँव में हुआ। उनके पिता श्री लेखराम सोनी झाड़सा गांव के एक लोकप्रिय स्वर्णकार थे।
जीवन वृताँत
संपादित करेंहंसराम ने गुडगाँव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विधालय से सन १९५० में दसवी की परीक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से पास की। क्योंकि उस समय गाँव में प्राथमिक स्कूल था। इनके भाई हरिचंद वर्मा अपने समय के मशहूर कब्बडी खिलाडी थे। जब गाँव के एक लड़के ने हंसराम को पिटा तो इन्होने अपने भाई के कहने पर गाँव के कृषण मंदिर अखाडा में जाना शुरू कर दिया। वहां बृजलाल गाँव के लडको को कुश्ती सिखाते थे। वर्ष 1950 में इन्हे पोस्ट एंड टेलीग्राफ विभाग (भारतीय डाक सेवा) दिल्ली में विदेशी विभाग में एक खजांची के रूप में अपनी नोकरी की शुरुआत की।
गुरु हनुमान से पर्शिक्षण
संपादित करेंउसी समय इन्होने दिल्ली के हनुमान अखाडा से गुरु हनुमान के सानिध्य में कुश्ती के गुर सिखने शुरू कर दिए। गुरु हनुमान ने अपने पर्शिक्षण से हमेशा देश के लिए होनहार खिलाडी तैयार किये हैं। गुरु हनुमान के योगदान से भारतीय कुश्ती हमेशा ही आगे अगर्सर हुयी है। गुरु हनुमान के पर्शिक्षण से इन्होने भारतीय डाक तार विभाग के सभी पहलवानो को हराया. विभाग के प्रसिध पहलवान श्री सोहन लाल (पश्चिम बंगाल पहलवान) को इन्होने ही हराया था। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने वाले सभी कुश्ती दंगलो में उन्होंने सभी पहलवानों को चित किया हुआ था।
विजय अभियान
संपादित करेंगुडगाँव के निकट इस्लामपुर गाँव में गुगा नवमी पर होने वाले कुश्ती दंगल में हमेशा विजयी रहते थे। ये डाक तार विभाग दिल्ली के नामचीन पहलवानों में गिने जाते थे।
- श्री वैश्य व्यायामशाला मंदी रोहतक १९५४ में स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित इंडियन स्टाइल कुश्ती टूर्नामेंट में प्रथम स्थान.
- इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस कल्चरल (भारतीय डाक विभाग) मीट, दिल्ली - १९५४ -५५ प्रथम स्थान
- इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस कल्चरल मीट, पटना (लाइट वेट) - १९५५ प्रथम स्थान
- इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस कल्चरल मीट, दिल्ली (लाइट वेट) १९५६ -५७ प्रथम स्थान
- जोनल स्पोर्ट्स & कल्चरल मीट, अम्बाला १९५७ - ५८ प्रथम स्थान
- इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस कल्चरल मीट, लखनऊ दिस. २० १९५९ प्रथम स्थान
- इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस कल्चरल मीट, पंजाब (हैवी वेट) १९६०-६१ प्रथम स्थान
- जिला पंचायत टूर्नामेंट, गुडगाँव - १९६२ -१९६३ प्रथम स्थान
- इंडियन स्टाइल रेसलिंग चंपिओंशिप ऑफ़ इंडिया, जबलपुर (फैथेर वेट) १९६५ प्रथम स्थान
- इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस कल्चरल मीट, कोलकत्ता (लाइट वेट) १३,१४,१५ फार. १९६६ प्रथम स्थान
- इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस कल्चरल मीट, दिल्ली १९६७ प्रथम स्थान
- इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस कल्चरल मीट, हैदराबाद (लाइट वेट) २५ सिट. १९६८ प्रथम स्थान
- इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस कल्चरल मीट, नयी दिल्ली (मिडल वेट) - ५ जन. १९७१ -७२ प्रथम स्थान
इंडियन पोस्ट & टेलीग्राफ सर्विस की अल इंडिया बेस्ट अथ्लित एंड आर्टिस्ट की किताब में अच्छे पहलवानों (लाइट वेट) में इनका चित्र प्रकाशित हुआ था।
डॉक्टरो द्वारा कुश्ती छुड़वाना
संपादित करें१९७२ में इनको किसी अज्ञात बीमारी के चलते खून की उलिटया लग गयी। परिणामस्वरूप इनको कई महीने कमजोरी के कारण बिस्तर पर रहना पड़ा! जिसके कारण डॉक्टरों ने इनको कुश्ती खेलने से मना कर दिया था।
शाकाहारी
संपादित करेंयह स्वयम शाकाहारी थे और पहलवानों को भी शाकाहारी होने की प्रेरणा देते थे। पहलवानी के दिनों में ये रोज बादाम, देशी घी और दूध का सेवन करते थे। कसरत के लिए ये रोजाना २००० दंड बैठक रोजाना लगते थे।
दोबारा दंगल में उतरना
संपादित करेंइसके बाद सन १९८७ में जब वे कुश्ती को अलविदा कह चुके थे तो गाँव में दिल्ली के बरवाला गांव के से आये पहलवान के ललकारने पर दोबारा दंगल में उतर गए थे। कोई भी उसकी चुनोती स्वीकार नहीं कर रहा था। तब हंसराम जी ने ५२ साल की उम्र में उस पहलवान को धुल चटाई. उनकी इसी ताकत और कुश्ती के प्रेम के चलते पूरे गुडगाँव के आस - पास के गाँव में लोग आज भी उनका नाम आदर के साथ लेते हैं।
== गाँव के बच्चो को पर्शिक्षण == इन्होने गुडगाँव के कुछ मशहूर पहलवानों को पर्शिक्षित भी किया। इनमे धीरज पहलवान को वो खुद गुरु हनुमान के अखाड़े में छोड़ कर आये थे जो बाद में रेलवे के मशहूर पहलवान बने और १९९४ के सैफ खेलो में स्वर्ण पदक जीता। ये जिला स्तर पर गुडगाँव के कबड्डी टीम में भी शामिल रहे हैं।
मृत्यु
संपादित करेंसन १९९४ में एक ट्रक दुर्घटना में इनकी मृत्यु हो गयी।