हालाँकि हरियाणा अब पंजाब का एक हिस्सा नहीं है पर यह एक लंबे समय तक ब्रिटिश भारत में पंजाब प्रान्त का एक भाग रहा है और इसके इतिहास में इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। हरियाणा के बानावाली और राखीगढ़ी, जो अब हिसार में हैं[1], सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा रहे हैं, जो कि ५,००० साल से भी पुराने हैं।[2]

हरियाणा का इतिहास

नामोत्पत्ति संपादित करें

मानवविज्ञानियों का मानना ​​है कि हरियाणा को इस नाम से जाना जाता था क्योंकि महाभारत के बाद के काल में, आभीर यहाँ रहते थे,[3] जिन्होंने कृषि कला में विशेष कौशल विकसित किया।[4] प्राण नाथ चोपड़ा के अनुसार हरियाणा का नाम अभिरायण-अहिरायण-हिरायणा-हरियाणा से लिया गया है।[5]

वैदिक काल संपादित करें

सिंधु घाटी जितनी पुरानी कई सभ्यताओं के अवशेष सरस्वती नदी के किनारे पाए गए हैं। जिनमे नौरंगाबाद और मिट्टाथल भिवानी में, कुणाल फतेहाबाद मे, अग्रोहा और राखीगढी़ हिसार में, रूखी रोहतक में और बनवाली सिरसा जिले में प्रमुख है। प्राचीन वैदिक सभ्यता भी सरस्वती नदी के तट के आस पास फली फूली। ऋग्वेद के मंत्रों की रचना भी यहीं हुई है।

कुछ प्राचीन हिंदू ग्रंथों के अनुसार, कुरुक्षेत्र की सीमायें, मोटे तौर पर हरियाणा राज्य की सीमायें हैं। तैत्रीय अरण्यक ५.१.१ के अनुसार, कुरुक्षेत्र क्षेत्र, तुर्घना (श्रुघना / सुघ सरहिन्द, पंजाब में) के दक्षिण में, खांडव (दिल्ली और मेवात क्षेत्र) के उत्तर में, मारू (रेगिस्तान) के पूर्व में और पारिन के पश्चिम में है।[6] भारत के महाकाव्य महाभारतमे हरियाणा का उल्लेख बहुधान्यकऔर बहुधनके रूप में किया गया है। महाभारत में वर्णित हरियाणा के कुछ स्थान आज के आधुनिक शहरों जैसे, प्रिथुदक (पेहोवा), तिलप्रस्थ (तिल्पुट), पानप्रस्थ (पानीपत) और सोनप्रस्थ (सोनीपत) में विकसित हो गये हैं। गुड़गाँव का अर्थ गुरु के ग्राम यानि गुरु द्रोणाचार्य के गाँव से है। कौरवों और पांडवों के बीच हुआ महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध कुरुक्षेत्र नगर के निकट हुआ था। कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश यहीं पर दिया था। इसके बाद अठारह दिन तक हस्तिनापुर के सिंहासन का अधिकारी तय करने के लिये कुरुक्षेत्र के मैदानी इलाकों में पूरे भारत से आयी सेनाओं के मध्य भीषण संघर्ष हुआ। जनश्रुति के अनुसार महाराजा अग्रसेन् ने अग्रोहा जो आज के हिसार के निकट स्थित है, में एक व्यापारियों के समृद्ध नगर की स्थापना की थी। किवंदती है कि जो भी व्यक्ति यहाँ बसना चाहता था उसे एक ईंट और रुपया शहर के सभी एक लाख नागरिकों द्वारा दिया जाता था, इससे उस व्यक्ति के पास घर बनाने के लिये पर्याप्त ईंटें और व्यापार शुरू करने के लिए पर्याप्त धन होता था।

मध्यकाल संपादित करें

हूण के शासन के पश्चात हर्षवर्धन द्वारा ७वीं शताब्दी में स्थापित राज्य की राजधानी कुरुक्षेत्र के पास थानेसर में बसायी। उसकी मौत के बाद प्रतिहार ने वहां शासन करना आरंभ कर दिया और अपनी राजधानी कन्नौज बना ली। यह स्थान दिल्ली के शासक के लिये महत्वपूर्ण था। पृथ्वीराज चौहान ने १२वीं शताब्दी में अपना किला हाँसी और तरावड़ी (पुराना नाम तराईन) में स्थापित कर लिया।मुहम्मद गौरी ने दुसरी तराईन युध में इस पर कब्जा कर लिया। उसके पश्चात दिल्ली सल्तनत ने कई सदी तक यहाँ शासन किया।

विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा दिल्ली पर अधिकार के लिए अधिकतर युद्ध हरियाणा की धरती पर ही लड़े गए। तरावड़ी के युद्ध के अतिरिक्त पानीपत के मैदान में भी तीन युद्ध एसे लड़े गए जिन्होंने भारत के इतिहास की दिशा ही बदल दी।

ब्रिटिश राज संपादित करें

ब्रिटिश राज से मुक्ति पाने के आन्दोलनों में हरियाणा वासियों ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। रेवाड़ी के राजा राव तुला राम का नाम १८५७ के संग्राम में योगदान दिया।

हरियाणा का गठन संपादित करें

हरियाणा प्रान्त का गठन १ नम्वबर १९६६ को पंजाब से अलग हो कर हुआ।

18 सितम्बर 1966 को सीमा आयोग की सिफारिशों के अनुसार भारत सरकार ने 'पंजाब पुनर्गठन विधेयक, 1966 (न. -31 ) पारित किया।

18 सितम्बर 1966 को भारत के राष्ट्रपति से हस्ताक्षरित होकर यह गजट ऑफ़ इंडिया भाग -2  सै  1  न.  31  दिनांक 18 सितम्बर  1966 को प्रकाशित हुआ।

'पंजाब पुनर्गठन विधेयक, 1966' के भाग 2, अनुच्छेद -3 में हरियाणा की सीमाओं आदि की व्याख्या की गयी थी। यह व्याख्या कुछ इस प्रकार थी -

1.  निश्चित दिन से एक नए राज्य का निर्माण होगा जो कि 'हरियाणा' कहलायेगा , जिसमे पंजाब राज्य के निम्न क्षेत्र शामिल होंगे -

-हिसार, रोहतक, गुरुग्राम (गुडगाँव), करनाल, महेंद्रगढ़ के जिले

-संगरूर जिले की नरवाना और जींद तहसीलें

- अम्बाला जिले की अम्बाला, जगाधरी और नारायणगढ़ तहसीलें

- अम्बाला जिले की खरड़ तहसील की पिंजौर कानूगो सरकल

- अम्बाला ज़िले की खरड़ तहसील के मनीमाजरा के कानूगो सरकल का क्षेत्र जो प्रथम परिच्छेद में अनुसूचित है।

इसके बाद ये क्षेत्र पंजाब राज्य के अंग नहीं रहेंगें।

2.  उप -अनुच्छेद (आ) में वर्णित क्षेत्र से हरियाणा राज्य के अंतरगत जींद नाम का अहलदा जिला बनेगा।

3.  उप - अनुच्छेद (1) की धारा (आ), (इ), और (ई ) में वर्णित क्षेत्र हरियाणा राज्य  के अंतरगत अम्बाला नाम का अहलदा  जिला बनेगा।

(अ) उप - अनुच्छेद (1) की धारा (इ) और (ई) में वर्णित क्षेत्र नारायणगढ़ तहसील के भाग होंगे।

(आ) उप - अनुच्छेद (1) की धारा (3) में वर्णित क्षेत्र नारायणगढ़ तहसील के अंतर्गत पिंजौर के कानूगो सरकल का भाग होगा।

विधेयक के भाग - 3 में विधानपालिकाओं के विषय में बताया गया था।

विधेयक के भाग - 3  के प्रमुख अनुच्छेद -

A. अनुच्छेद 7  में राज्यसभा में मौजूदा 11 सदस्यों बाँट और अनुच्छेद 8 में उनके चुनाव आदि का तरीका सुझाया गया था।

B. अनुच्छेद 9  में लोकसभा के सदस्यों की स्थिति के विषय में बतलाया गया था।

C.  अनुच्छेद 10 में राज्य के मौजूदा विधानसभा सदस्यों को बांटा गया था जिसमें से 54 सदस्य जो हरियाणा क्षेत्र से चुनकर गए थे, वे वे हरियाणा के हिस्से में रखे गए।

     नई सभा का नाम "हरियाणा विधानसभा होगा,ऐसा उल्लेख किया गया था।

D. अनुच्छेद 14 (2) में हरियाणा के सदस्यों द्वारा अपनी इस विधानसभा का अपने से, सविंधान में बताये गए तरीके से, एक अध्यक्ष चुनने की व्यवस्था की गयी थी।

E. यह भी कहा गया था की मौजूदा विधानसभा के बाद यहाँ 'अनुच्छेद - 16' के अनुसार सदस्यों की संख्या 81 होगी।

विधेयक के भाग - 4 में उच्च न्यायालय के विषय में व्याख्या थी इसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण अनुच्छेद - 21 था जिसमें कहा गया था कि 'पंजाब और हरियाणा की साझी उच्च न्यायालय होगी।'

'पंजाब पुनर्गठन विधेयक, 1966' के अनुसार 1 नवंबर, 1966 को 'हरियाणा' राज्य के रूप में एक नये राज्य का उदय हुआ।

तो दोस्तों इस प्रकार से पंजाब राज्य दो हिस्सों में बंट गया और एक नये राज्य जिसका नाम पड़ा 'हरियाणा' ने जन्म लिया।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "49 साल का हुआ हरियाणा जानिए कैसे हुआ था इसका गठन". Dainik Bhaskar. 2014-10-31. अभिगमन तिथि 2021-08-02.
  2. "राज्य/संघ राज्य क्षेत्र - हरियाणा - भारत के बारे में जानें: भारत का राष्ट्रीय पोर्टल". knowindia.gov.in. मूल से 2 अगस्त 2021 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2021-08-02.
  3. Lal, Muni (1974). Haryana: On High Road to Prosperity. Vikas Publishing House. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7069-0290-7.
  4. Punia, Bijender K. (1994). Tourism Management: Problems and Prospects (अंग्रेज़ी में). APH Publishing. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7024-643-5.
  5. Chopra, Pran Nath (1982). Religions and Communities of India (अंग्रेज़ी में). Vision Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-391-02748-0.
  6. [1] आर्यों के भारत प्रवासन संबंधी वैदिक प्रमाण पर विशाल अग्रवाल का पत्र

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें