हिंगलाज माता मन्दिर

हिंगलाज, बलूचिस्तान प्रान्त, पाकिस्तान में हिंगोल नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मन्दिर

हिंगलाज माता मन्दिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के हिंगलाज में हिंगोल नदी के तट पर स्थित एक हिन्दू मन्दिर है। यह हिन्दू देवी सती को समर्पित इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है।[1] यहाँ इन देवी को हिंगलाज देवी या हिंगुला देवी भी कहते हैं। इस मन्दिर को नानी मन्दिर के नामों से भी जाना जाता । पिछले तीन दशकों में इस जगह ने काफी लोकप्रियता पाई है और यह पाकिस्तान के कई हिंदू समुदायों के बीच आस्था का केन्द्र बन गया है।[2]

नानी का मंदिर
હિંગળાજ માતા મંદિર
हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताहिंगलाज माता
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिमकरान तटीय क्षेत्र, लसबेला जिला
बलूचिस्तान, पाकिस्तान
भौगोलिक निर्देशांक23°55′26″N 72°23′19″E / 23.92389°N 72.38861°E / 23.92389; 72.38861
वास्तु विवरण
निर्मातास्वयं भगवान शिव द्वारा स्थापित
स्थापितअति प्राचीन
वेबसाइट
www.hinglajmata.com
प्रथम शक्ति पीठ हिंगलाज माता
🔱🪔
 

हिंगलाज माता का गुफा मंदिर पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में लारी तहसील के दूरस्थ, पहाड़ी इलाके में एक संकीर्ण घाटी में स्थित है। यह कराची के उत्तर-पश्चिम में 250 किलोमीटर (160 मील), अरब सागर से 12 मील (19 किमी) अंतर्देशीय और सिंधु के मुंहाने के पश्चिम में 80 मील (130 किमी) में स्थित है। यह हिंगोल नदी के पश्चिमी तट पर, मकरान रेगिस्तान के खेरथार पहाड़ियों की एक शृंखला के अंन्त में बना हुआ है।[3][4]

 
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यह क्षेत्र हिंगोल राष्ट्रीय उद्यान के अन्तर्गत आता है।[5]
 
हिंगलाज भवानी की गुफा

मंदिर एक छोटी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है। जहाँ एक मिट्टी की वेदी बनी हुई है। देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है। बल्कि एक छोटे आकार के शिला की हिंगलाज माता के प्रतिरूप के रूप में पूजा की जाती है। शिला सिंदूर (वर्मीमिलियन), जिसे संस्कृत में हिंगुला कहते है, से पुता हुआ है, जो संभवतया इसके आज के नाम हिंगलाज का स्रोत हो सकता है।[4]

 
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हिंगलाज के आस-पास, गणेश देव, माता काली, गुरुगोरख नाथ दूनी, ब्रह्म कुध, तिर कुण्ड, गुरुनानक खाराओ, रामझरोखा बेठक, चोरसी पर्वत पर अनिल कुंड, चंद्र गोप, खारिवर और अघोर पूजा जैसे कई अन्य पूज्य स्थल हैं।[5]

 
माता हिंगोल नदी के तट स्थित होने के कारण ही हिंगलाज कहलाई

लोककथा और महत्ता

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यह डोडिया राजपूत की प्रथम कुलदेवी हिंगलाज माता पूजनीय है। यह मनणा जागीरदारो, सैफाऊ, सिद्धपजागीरदार (राजपुरोहितो) की कुलदेवी है | एक लोक गाथानुसार चारणों तथा राजपुरोहित की कुलदेवी हिंगलाज है, जिसका निवास स्थान पाकिस्तान के बलुचिस्थान प्रान्त में था। हिंगलाज नाम के अतिरिक्त हिंगलाज देवी का चरित्र या इसका इतिहास अभी तक अप्राप्य है। हिंगलाज देवी से सम्बन्धित छंद गीत अवश्य मिलती है।

 
हिंगलाज माता के दर्शन को जाते श्रद्धालु
सातो द्वीप शक्ति सब रात को रचात रास।
प्रात:आप तिहु मात हिंगलाज गिर में॥

अर्थात: सातो द्वीपों में सब शक्तियां रात्रि में रास रचाती है और प्रात:काल सब शक्तियां भगवती हिंगलाज के गिर में आ जाती है।

 
जय माँ हिंगलाज भवानी

उत्पत्ति की एक और कथा के अनुसार सती के वियोग मे क्षुब्ध शिव जब सती की पार्थिव देह को लेकर तीनों लोको का भ्रमण करने लगे तो भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 खंडों मे विभक्त कर दिया जहाँ जहाँ सती के अंग- प्रत्यंग गिरे स्थान शक्तिपीठ कहलाये । केश गिरने से महाकाली,नैन गिरने से नैना देवी, कुरूक्षेत्र मे गुल्फ गिरने से भद्रकाली,सहारनपुर के पास शिवालिक पर्वत पर शीश गिरने से शाकम्भरीआदि शक्तिपीठ बन गये सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था।[6]

 
मंदिर की वार्षिक 'तीर्थयात्रा'
 
नवरात्रि के दौरान रानी हिंगलाज मंदिर में यज्ञ

हिंगलाज माता को एक शक्तिशाली देवी माना जाता है जो अपने सभी भक्तों के लिए मनोकामना पूर्ण करती है। जबकि हिंगलाज उनका मुख्य मंदिर है, मंदिरों के पड़ोसी भारतीय राज्य गुजरात और राजस्थान में भी उनके लिए समर्पित मंदिर बने हुए हैं।[7] मंदिर को विशेष रूप से संस्कृत में हिंदू शास्त्रों में हिंगुला, हिंगलाजा, हिंगलाजा और हिंगुलता के नाम से जाना जाता है।[8] देवी को हिंगलाज माता (मां हिंगलाज), हिंगलाज देवी (देवी हिंगलाज), हिंगुला देवी (लाल देवी या हिंगुला की देवी)[4] और कोट्टारी या कोटवी के रूप में भी जाना जाता है।[9]

 
माँ हिंगलाज का प्रतीक
 
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स्थानीय मुस्लिम भी हिंगलाज माता पर आस्था रखते हैं और मंदिर को सुरक्षा प्रदान करते हैं। उन्होंने मंदिर को "नानी का मंदिर" कहते है।[10] देवी को बीबी नानी (सम्मानित मातृ दादी) कहा जाता है। बीबी नानी, नाना के समान हो सकती है, जो कुशान सिक्कों पर दिखाई देने वाले एक पूज्य देव थे और पश्चिम और मध्य एशिया में व्यापक रूप से उनकी पूजा की जाती थी।[9][11] एक प्राचीन परंपरा का पालन करते हुए स्थानीय मुस्लिम जनजातियां, तीर्थयात्रा समूह में शामिल होती हैं और तीर्थयात्रा को "नानी की हज" कहते हैं।[12]

 
हिंगलाज माता मंदिर में स्थित शिव मंदिर
  1. Dalal 2011, pp. 158–59.
  2. Schaflechner, Jürgen, (2018). Hinglaj Devi : identity, change, and solidification at a Hindu temple in Pakistan. New York, NY: Oxford University Press. ISBN 9780190850555. ओसीएलसी 1008771979.{{cite book}}: CS1 maint: extra punctuation (link) CS1 maint: multiple names: authors list (link)
  3. "In pictures: Hindus in Pakistan". Prayers offered. British Broadcasting Corporation. 7 नवंबर 2016 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 26 November 2012.
  4. Kapoor 2002, pp. 2988–90.
  5. "Socio - Ecological and Economic Impacts of Hinglaj Mata Festival on Hingol National Park and its Resources". Scribd.com. 4 नवंबर 2012 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 27 November 2012.
  6. "हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान". मूल से से 4 जून 2010 को पुरालेखित।. अभिगमन तिथि: 30 मई 2010.
  7. Dalal 2011, pp. 158–9.
  8. Sircar 1998, p. 113.
  9. Sircar 1998, p. 43.
  10. "In pictures: Hindus in Pakistan". Priests. British Broadcasting Corporation. 4 सितंबर 2012 को मूल से पुरालेखित. अभिगमन तिथि: 26 November 2012.
  11. Kapoor 2002, pp. 2989–90.
  12. Raja 2000, p. 186.

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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