हिन्दू धर्म और सिख धर्म
हिन्दू धर्म और सिख धर्म दोनों मूलतः भारत की धरती से निकले धर्म हैं। हिन्दू धर्म एक अति प्राचीन (अनादि) धर्म है जो कई हजार वर्षों के विकास का मार्ग तय करके आया है। सिख धर्म की स्थापना १५वीं शताब्दी में गुरु नानक ने की। उस समय भारत पर मुगलों का शासन था।
दोनों धर्मों में बहुत सी बातें और दर्शन समान हैं, जैसे कर्म, धर्म, मुक्ति, माया, संसार आदि। जब मुगल काल में शासकों के तलवार के बल से हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बनाया जा रहा था, उस समय सिख धर्म उनके इस अत्याचार के विरोध में खड़ा हुआ। गुरु नानक पहले व्यक्ति थे जिन्होने बाबर के विरुद्ध आवाज उठायी थी। सिख धर्म अत्याचार के प्रतिकार, ईश्वर-भक्ति, और सबकी समानता का अनूठा संगम है। भारत में अंग्रेजों का शासन जड़ पकड़ने तक सिख धर्म को हिन्दू धर्म का अभिन्न अंग माना जाता था।[1] दसवें और अंतिम गुरु गोबिन्द सिंह कहते हैं कि "सकल जगत में खालसा पंथ गाजे, जगे धर्म हिंदू सकल भंड भाजे।"[2]
गुरु ग्रंथ साहिब में भारत भर के 25 भक्त कवियों द्वारा लिखी गई बाणियां हैं, जिनमें से 15 गुरु नानक जी के समय के भक्तिमार्ग के कवियों की हैं।[3]
हिन्दू धर्म और सिख धर्म को जोड़नेवाली कड़ी खत्री है। सिख धर्म प्रचारक गुरू नानक लाहौर जिले के तलवंडी (ननकाना साहिब) के वेदी खत्री थे। उनके उत्तराधिकारी गुरू अंगद टिहुन खत्री थे। हिन्दू और सिक्ख खत्रियों का संबंध तो पूरी तरह रोटी-बेटी का रहा है। दोनो का खान-पान, विवाह संस्कार और अन्य प्रथाएं भी एक जैसी रही हैं। एक समय में खत्री परिवार में पैदा होनेवाला पहला बालक संस्कार करके सिख बनाया जाता था। अरदास और भोग हिन्दु खत्रियों में भी समान रूप से प्रचलित था।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- सिख धर्म को हिन्दुओं से कोई खतरा नहीं (पंजाब केसरी ; मई २०१७)
- हम क्यों भूल जाते हैं कि सिख हिन्दुओं से ही आए हैं? - तरलोचन सिंह अध्यक्ष, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग