हिन्दू मन्दिर वास्तुकला
भारतीय स्थापत्य में हिन्दू मन्दिर का विशेष स्थान है। हिन्दू मंदिर में अन्दर एक गर्भगृह होता है जिसमें मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। गर्भगृह के ऊपर टॉवर-नुमा रचना होती है जिसे शिखर (या, विमान) कहते हैं। मन्दिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा के लिये स्थान होता है। इसके अलावा मंदिर में सभा के लिये कक्ष हो सकता है।
इतिहास
संपादित करेंमन्दिर शब्द संस्कृत वाङ्मय में अधिक प्राचीन नहीं है। महाकाव्य और सूत्रग्रन्थों में मंदिर की अपेक्षा देवालय, देवायतन, देवकुल, देवगृह आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। मंदिर का सर्वप्रथम उल्लेख शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। शाखांयन स्त्रोत सूत्र में प्रासाद को दीवारों, छत, तथा खिड़कियों से युक्त कहा गया है। वैदिक युग में प्रकृति देवों की पूजा का विधान था। इसमें दार्शनिक विचारों के साथ रूद्र तथा विष्णु का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में रूद्र प्रकृति, वनस्पति, पशुचारण के देवता तथा विष्णु यज्ञ के देवता माने गये हैं। बाद में, उत्तरवर्ती वैदिक साहित्य में विष्णु देवताओं में श्रेष्ठतम माने गए। ( विष्णु परमः तदन्तरेण सर्वा अव्या देवताः।)
भारत की प्राचीन स्थापत्य कला में मंदिरों का विशिष्ट स्थान है। भारतीय संस्कृति में मंदिर निर्माण के पीछे यह सत्य छुपा था कि ऐसा धर्म स्थापित हो जो जनता को सहजता व व्यवहारिकता से प्राप्त हो सके। इसकी पूर्ति के लिए मंदिर स्थापत्य का प्रार्दुभाव हुआ। इससे पूर्व भारत में बौद्ध एवं जैन धर्म द्वारा गुहा, स्तूपों एवं चैत्यों का निर्माण किया जाने लगा था। कुषाणकाल के बाद गुप्त काल में देवताओं की पूजा के साथ ही देवालयों का निर्माण भी प्रारंभ हुआ।
प्रारंभिक मंदिरों का वास्तु विन्यास बौद्ध बिहारों से प्रभावित था। इनकी छत चपटी तथा इनमें गर्भगृह होता था। मंदिरों में रूप विधान की कल्पना की गई और कलाकारों ने मंदिरों को साकार रूप प्रदान करने के साथ ही देहरूप में स्थापित किया। चौथी सदी में भागवत धर्म के अभ्युदय के पश्चात (इष्टदेव) भगवान की प्रतिमा स्थापित करने की आवश्यकता प्रतीत हुई। अतएव वैष्णव मतानुयायी मंदिर निर्माण की योजना करने लगे। साँची का दो स्तम्भयुक्त कमरे वाला मंदिर गुप्तमंदिर के प्रथम चरण का माना जाता है। बाद में गुप्त काल में वृहदस्तर पर मंदिरों का निमार्ण किया गया जिनमें वैष्णव तथा शैव दोनों धर्मो के मंदिर हैं। प्रारम्भ में ये मंदिर सादा थे और इनमें स्तंभ अलंकृत नही थे। शिखरों के स्थान पर छत सपाट होती थी तथा गर्भगृह में भगवान की प्रतिमा, ऊँची जगती आदि होते थे। गर्भगृह के समक्ष स्तंभों पर आश्रित एक छोटा अथवा बड़ा बरामदा भी मिलने लगा। यही परम्परा बाद के कालों में प्राप्त होती है।
मन्दिर शब्दावली
संपादित करेंशैलियाँ
संपादित करेंभारतीय उपमहाद्वीप तथा विश्व के अन्य भागों में स्थित मन्दिर विभिन्न शैलियों में निर्मित हुए हैं। मंदिरों की कुछ शैलियाँ निम्नलिखित हैं-
नागर शैली
संपादित करेंनागर शैली का प्रसार हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत माला तक देखा जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार नागर शैली के मंदिरों की पहचान आधार से लेकर सर्वोच्च अंश तक इसका चतुष्कोण होना है। विकसित नागर मंदिर में गर्भगृह, उसके समक्ष क्रमशः अन्तराल, मण्डप तथा अर्द्धमण्डप प्राप्त होते हैं। एक ही अक्ष पर एक दूसरे से संलग्न इन भागों का निर्माण किया जाता है।.
द्रविड़ शैली
संपादित करेंयह शैली दक्षिण भारत में विकसित होने के कारण द्रविण शैली कहलाती है। इसमें मंदिर का आधार भाग वर्गाकार होता है तथा गर्भगृह के उपर का भाग पिरामिडनुमा सीधा होता है, जिसमें अनेक मंजिलें होती हैं। इस शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषता यह हे कि ये काफी ऊॅंचे तथा विशाल प्रांगण से घिरे होते हैं। प्रांगण में छोटे-बड़े अनेक मंदिर, कक्ष तथा जलकुण्ड होते हैं। प्रागंण का मुख्य प्रवेश द्वार 'गोपुरम्' कहलाता है।चोल काल के मंदिर द्रविड़ शैली के सर्वश्रेष्ठ प्रमाण है.
बेसर का शाब्दिक अर्थ है मिश्रित अतएव नागर और द्रविड़ शैली के मिश्रित रूप को बेसर की संज्ञा दी गई है यह विन्यास में द्रविड़ शैली का तथा रूप में नागर शैली का होता है दो विभिन्न शैलियों के कारण उत्तर और दक्षिण के विस्तृत क्षेत्र के बीच सतह एक क्षेत्र बन गया जहां इनके मिश्रित रूप में बेसर शैली हुई इस शैली के मंदिर विंध्य पर्वतमाला से कृष्णा नदी तक निर्मित है लेकिन कला का क्षेत्र असीम है
पगोडा शैली
संपादित करेंपैगोडा शैली नेपाल और इण्डोनेशिया का बाली टापू में प्रचलित हिन्दू मंदिर स्थापत्य है। यह शैली में छतौं का शृंखला अनुलम्बित रूप में एक के ऊपर दूसरा रहता है। अधिकांश गर्भगृह भूतल स्तर में रहता है। परन्तु कुछ मन्दिर (उदाहरण: काठमांडौ का आकाश भैरव और भीमसेनस्थान मन्दिर) में गर्भगृह दुसरा मंजिल में स्थापित है। कुछ मन्दिर का गर्भगृह सम्मुचित स्थल में निर्मित होते है (उदाहरण: भक्तपुर का न्यातपोल मन्दिर), जो भूस्थल से करिबन ३-४ मंजिल के उचाइ पर स्थित होते है। इस शैली में निर्मित प्रसिद्ध मन्दिर में नेपाल का पशुपतिनाथ, बाली का पुरा बेसाकि आदि प्रमुख है।
अन्य शैलियां
संपादित करेंस्तूपों के निर्माण के साथ ही हिन्दू मन्दिरों का मुक्त ढांचों के रूप में निर्माण भी आरम्भ हो गया। हिन्दू मन्दिरों में देवताओ की विषय वस्तु के रूप में पौराणिक कथाएँ हुआ करती थीं। मन्दिरों में प्रदक्षिणा पथ एवं प्रवेश के आधार पर तीन मन्दिर निर्माण शैलियाँ हुआ करती थीं[1]:
- सन्धार: इस शैली के मन्दिरों में वर्गाकार गर्भ गृह को घेरे हुए एक स्तंभों वाली वीथिका (गैलरी) होती थी। इस वीथिका का उद्देश्य गर्भ गृह की प्रदक्षिणा था। इस प्रकार सन्धार शैली में प्रदक्षिणा पथ हुआ करता है।
- निरन्धार: इस शैली के मन्दिरों में प्रद्क्षिणा पथ नहीं होता है।
- सर्वतोभद्र: इस शैली के मन्दिरों में चार प्रवेशद्वार होते हैं जो चारों मुख्य दिशाओ में होते हैं। इसको घेरे हुए १२ स्तंभों वाला प्रदक्षिणापथ भी होता है। इस प्रकार के मन्दिरों में सभी दिशाओ से प्रवेश मिलता है।
कुछ मंदिरों की वास्तु
संपादित करें-
Nashik Maharashtra temple, cross section and plan (1910 sketch)
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Vrindavan Uttar Pradesh temple plan
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Khajuraho Madhya Pradesh temple plan
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Puri Odisha temple complex plan
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Bhubneshwar Odisha, a smaller temple plan
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Halebidu Karnataka temple plan
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Chidambaram Tamil Nadu temple plan
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A Tamil Hindu temple complex
इन्हें भी देखें
संपादित करें- नागर शैली : उत्तर भारतीय हिन्दू स्थापत्य शैली
- वेसर शैली : मिश्रित भारतीय शैली
- द्रविड़ शैली : दक्षिण भारतीय शैली
- भारतीय वास्तु
- भारतीय दुर्ग
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- भारत में मंदिर निर्माण शैली और प्रमुख मंदिर (लक्ष्य)
- प्रासादों के आठ शिखर (डॉ एस के जुगनू)
- A Visual Glossary of Hindu Architecture
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ सन्धार, निरन्धार, सर्वतोभद्र शैली मन्दिर Archived 2018-04-27 at the वेबैक मशीन। आई.ए.एस पाइण्ट, ६ सितम्बर २०१४