शतपथ ब्राह्मण

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शतपथ ब्राह्मण शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मणग्रन्थ है परंतु यह हर जाति व वर्णों के लिए है । समस्त ब्राह्मण-ग्रन्थों के मध्य शतपथ ब्राह्मण सर्वाधिक बृहत्काय है। ब्राह्मण ग्रन्थों में इसे सर्वाधिक प्रमाणिक माना जाता है।

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शतपथ ब्राह्मण के आदि उपदेष्टा महर्षि याज्ञवल्क्य थे। इसमें सौ अध्याय तथा १४ काण्ड हैं। सौ अध्याय होने से ही सम्भवतः इसका शतपथ नाम पड़ा है। इसमें दर्शपौर्ण मास आदि सभी श्रौत यज्ञों के विधि विधानों की विस्तृत व्याख्या की गई है तथा यजुर्वेद को इस ब्राह्मण के ज्ञान के बिना समझना असम्भव ही है। इसके अन्तिम भाग का नाम ही वृहदारण्यक उपनिषद है जिसमें ब्रह्म विद्या का विशद् वर्णन है। यह यजुर्वेद का एक प्रकार का प्राचीन भाष्य है जो ज्ञान विज्ञान की सभी विधाओं को अपने अन्दर समेटे हुए है।

तैत्तिरीय ब्राह्मण की ही तरह शतपथ ब्राह्मण भी स्वराङ्कित है जिसे अनेक विद्वान इसकी प्राचीनता का द्योतक मानते हैं। भाषाई रूप से, शतपथ ब्राह्मण वैदिक संस्कृत की ब्राह्मण काल के बाद के हिस्से से संबंधित है (यानी लगभग 8 वीं से 6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व, आयरन एज इंडिया)।

sanrachna संपादित करें

शतपथ ब्राह्मण, शुक्लयजुर्वेद की दोनों शाखाओं (माध्यान्दिन तथा काण्व) में उपलब्ध है। दोनों ही शाखाओं ही प्रतिपाद्य विषय-वस्तु समान है, केवल क्रम में कुछ भिन्नता है। विषय की एकरूपता की दृष्टि से माध्यन्दिन-शतपथ अधिक व्यवस्थित है। इसका एक अन्य वैशिष्ट्य यह है कि वाजसनेयि-संहिता के अठाहरवें अध्यायों की क्रमबद्ध व्याख्या इसके प्रथम नौ अध्यायों में मिल जाती है। केवल पिण्ड-पितृयज्ञ का वर्णन संहिता में दर्शपूर्णमास के अनन्तर है।

माध्यन्दिन-शतपथ संपादित करें

माध्यन्दिन शतपथ-ब्राह्मण में १४ काण्ड, १०० अध्याय, ४३८ ब्राह्मण तथा ७६२४ कण्डिकाएँ हैं।

  1. हविर्यज्ञम् -- इस काण्ड में दर्श और पूर्णमास इष्टियों का प्रतिपादन है।
  2. एकपदिप -- इस काण्ड में अग्न्याधान, पुनराधान, अग्निहोत्र, उपस्थान, प्रवत्स्यदुपस्थान, आगतोपस्थान, पिण्डपितृयज्ञ, आग्रयण, दाक्षायण तथा चातुर्मास्यादि यार्गो की मीमांसा की गई है।
  3. अध्वरम् -- इस काण्ड में दीक्षाभिषवपर्यन्त सोमयाग का वर्णन है।
  4. ग्रहनाम -- इस काण्ड में सोमयोग के तीनों सवनों के अन्तर्गत किये जाने वाले कर्मों का, षोडशीसदृश सोमसंस्था, द्वादशाहयाग तथा सत्रादियागों का प्रतिपादन हुआ है।
  5. सवम् -- इस काण्ड में वाजपेय तथा राजसूय यागों का वर्णन है।
  6. उपासम्भरणम् -- इस काण्ड में उषासम्भरण तथा विष्णुक्रम का विवेचन हुआ है।
  7. हस्तिघटक -- इस में चयन याग, गार्हपत्य चयन, अग्निक्षेत्र-संस्कार तथा दर्भस्तम्बादि के दूर करने तक के कार्यों विवेचन हुआ है।
  8. चिति: -- इस काण्ड में प्राणभृत् प्रभुति इष्टकाओं की स्थापनाविधि वर्णित है।
  9. संचिति: -- इस काण्ड में शत्रुद्रिय होम, धिष्ण्य चयन, पुनश्चिति: तथा चित्युपस्थान का निरूपण हैं।
  10. अग्निरहस्यम् -- इस काण्ड में चिति-सम्पत्ति, चयनयाग स्तुति, चित्यपक्षपुच्छ-विचार, चित्याग्निवेदि का परिमाण, उसकी सम्पत्ति, चयनकाल, चित्याग्नि के छन्दों का अवयवरूप, यजुष्मती और लोकम्पृणा आदि इष्टकाओं की संस्था, उपनिषदरूप से अग्नि की उपासना, मन की सृष्टि, लोकादिरूप से अग्नि की उपासना, अग्नि की सर्वतोमुखता तथा सम्प्रदायप्रवर्तक ॠषिवंश प्रभृति का विवेचन हुआ है।
  11. अष्टाध्यायी(संग्रह) -- इस काण्ड में आधान-काल, दर्शपूर्णमास तथा दाक्षायणयज्ञों की अवधि, दाक्षायण यज्ञ, पथिकृदिष्टि, अभ्युदितेष्टि, दर्शपूर्णमासीय द्रव्यों का अर्थवाद, अग्निहोत्रीय अर्थवाद, ब्रह्मचारी के कर्त्तव्य, मित्रविन्देष्टि, हवि:-समृद्धि, चातुर्मास्यार्थवाद, पंच महायज्ञ, स्वाध्याय-प्रशंसा, प्रायश्चित्त, अंशु और अदाभ्यग्र्ह, अध्यात्मविद्या, पशुबन्ध-प्रशंसा तथा हविर्याग के अवशिष्ट विधानों पर विचार किया गया है।
  12. मध्यमम्(सौत्रामणी) -- इस काण्ड में सत्रगत दीक्षा-क्रम, महाव्रत, गवामयनसत्र, अग्निहोत्र-प्रायश्चित्त, सौत्रामणीयाग, मृतकाग्निहोत्र तथा मृतकदाह प्रभृति विषयों का निरूपण है।
  13. अश्वमेधम् -- इस काण्ड में अश्वमेध, तदगत प्रायश्चित्त, पुरुषमेध, सर्वमेध तथा पितृमेध का विवरण है।
  14. बृहदारण्यकम् -- इस काण्ड में प्रवर्ग्यकर्म, धर्म-विधि महावीरपात्र, प्रवर्ग्योत्सादन, प्रवर्ग्यकर्तृक नियम, ब्रह्मविद्या, मन्थ तथा वंश इत्यादि का प्रतिपादन हुआ है। इसी काण्ड में बृहदारण्यक उपनिषद भी है।

काण्व-शतपथ संपादित करें

काण्व-शतपथ में १७ काण्ड, १०४ अध्याय, ४३५ ब्राह्मण तथा ६८०६ कण्डिकाएं हैं।

  1. एकपात्-काण्डम् -- इस काण्ड में आधान-पुनराधान, अग्निहोत्र, आग्रयण, पिण्डपितृयज्ञ, दाक्षायण यज्ञ, उपस्थान तथा चातुर्मास्य संज्ञक यागों का विवेचन है।
  2. हविर्यज्ञ काण्डम् -- इस काण्ड में पूर्णमास तथा दर्शयागों का प्रतिपादन है।
  3. उद्धारि काण्डम् -- इस काण्ड में अग्निहोत्रीय अर्थवाद तथा दर्शपूर्णमासीय अर्थवाद विवेचित हैं।
  4. अध्वरम् -- इस काण्ड में सोमयागजन्य दीक्षा का वर्णन है।
  5. ग्रहनाम -- इस काण्ड में सोमयाग, सवनत्रयाग कर्म, षोडशी प्रभृति सोमसंस्था, द्वादशाहयाग, त्रिरात्रहीन दक्षिणा, चतुस्त्रिंशद्धोम और सत्रधर्म का निरूपण है।
  6. वाजपेय काण्डम् -- इस काण्ड में वाजपेययाग का विवेचन है।
  7. राजसूय काण्डम् -- इस काण्ड में राजसूय का विवेचन है।
  8. उखासम्भरणम् -- इस में उखा-सम्भरण का विवेचन है।
  9. हस्तिघट काण्डम् -- इस काण्ड से लेकर १२वें काण्ड तक विभिन्न चयन-याग निरुपित हैं।
  10. चिति काण्डम् --
  11. साग्निचिति --
  12. अग्निरहस्यम् --
  13. अष्टाध्यायी -- इस काण्ड में आधान काल, पथिकृत इष्टि, प्रयाजानुयामन्त्रण, शंयुवाक्, पत्नीसंयाज, ब्रह्मचर्य, दर्शपूर्णमास की शेष विधियों तथा पशुबन्ध का निरूपण है।
  14. मध्यमम् -- इस काण्ड में दीक्षा-क्रम, पृष्ठयाभिप्लवादि, सौत्रामणीयाग, अग्निहोत्र-प्रायश्चित्त, मृतकाग्निहोत्र आदि का वर्णन हुआ है।
  15. अश्वमेध काण्डम् -- इस काण्ड में अश्वमेध
  16. प्रवर्ग्य काण्डम् -- इसमें सांगोपाङ्ग प्रवर्ग्यकर्म
  17. बृहदारण्यकम् -- इसमें ब्रह्मविद्या का विवेचन किया गया है।

शतपथ ब्राह्मण में गणित संपादित करें

शुल्बसूत्रों की तरह शतपथ ब्राह्मण में भी यज्ञ की वेदियाँ तथा अन्य ज्यामितीय रचनाएँ बनाने की विधियाँ दी गयीं हैं।और यह समाज मे

सथपथ ब्राह्मण में शुक्ल यजर्वेद की बहुत सारी बातें बताई गई है जिसमें से यज्ञ हवन विधि , ज्ञानवर्धक बातें , पूजा विधि और जीवन जीने के भी उपाय बताए गए हैं। मनुष्य के जीवन में बहुत सारी समस्याओं का समाधान इस ग्रंथ में बताया गया है जिसको एक साधारण मनुष्य भी अपनाकर अपनी जीवन शैली बदलकर केवल इस भवसागर से मुक्ति पा सकता है, साथ ही साथ मोक्ष का भी उत्तराधिकारी बन सकता है।

सन्दर्भ संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें