हिल्सा (बांग्ला: ইলিশ, इलिश) बंगाली लोगों में सबसे लोकप्रिय मछली है। यह बांग्लादेश का राष्ट्रीय मछली है और पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा, ओड़िशा आदि में भी अत्यधिक लोकप्रिय है।

हिल्सा मछलियाँ
बांग्लादेश में हिल्सा की प्राप्ति के क्षेत्र

हिल्सा भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और बर्मा समेत दुनिया भर के 11 देशों में पाई जाती है। भारत में यह महानदी, चिल्का, गोदावरी, रूपनारायण, हुगली और नर्मदा नदियों में पाई जाती है। लेकिन विश्व की 86 प्रतिशत हिल्सा मछली बांग्लादेश में ही होती है। हिल्सा बांग्लादेश की राष्ट्रीय मछली भी है और देश के सकल घरेलू उत्पाद में 1 प्रतिशत योगदान हिलसा उत्पादन का है।

बंगाल में हिल्सा को धार्मिक अनुष्ठानों और महोत्सवों के दौरान परोसा जाता है। विवाह के रीति-रिवाजों में भी इसका महत्व रहा है। 'गाए होलुद' के बाद दूल्हे पक्ष की तरफ से दुल्हन को हिल्सा भेंट देने की परम्परा थी। लेकिन चूंकि अब भारत में हिल्सा का उत्पादन न केवल कम हुआ है बल्कि यह बहुत महंगी भी हो गयी है, इसलिए अब रोहू मछली को उपहार में देने का चलन हो गया है, हालांकि बांग्लादेश में अब भी इस अनुष्ठान में हिल्सा को ही भेंट स्वरूप दिया जाता है।

भारत के पश्चिम बंगाल सरकार ने 2018 में हिल्सा के लगातार गिरते उत्पादन के बीच छोटी हिल्सा मछली को पकड़ने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था ताकि ये मछली बढ़ सके।

यद्यपि हिल्सा समुद्री मछली है किन्तु ये अपना अधिकांश जीवन नदियों और खाड़ी के मीठे पानी में बिताती है। इसलिए इस मछली में समुद्र और नदी दोनों के पानी का खास स्वाद होता है। तभी तो इसे 'माछेर राजा' (मछलियों का राजा) कहा जाता है। सिंधी लोगों की रसोई में भी हिलसा एक खास जगह रखती है। सिंधी में इसे 'पल्लो माछी' कहा जाता है। सिंध में इसे आलू, प्याज़ और स्थानीय मसालों के साथ पकाया जाता है।

आंध्र प्रदेश में हिल्सा को 'पुलसा' कहा जाता है और यह गोदावरी नदी में बस बारिश के कुछ ही दिनों के लिए आती है। आंध्र प्रदेश के भोजन में इसकी महत्ता का इस बात से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि इस प्रदेश में कहावत प्रसिद्ध है – ‘पुस्तेलु अम्मि आयीन पुलसा तिनोच्चु’ यानी पुलसा खाने के लिए अगर मंगलसूत्र भी बेचना पड़े तो भी ठीक![1]

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