अगवानपुर
अगवानपुर भारतीय राज्य बिहार के पटना जिले के बाढ प्रखण्ड का एक गाँव है।
अगवानपुर | |||||||
— गाँव — | |||||||
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०) | |||||||
देश | भारत | ||||||
राज्य | बिहार | ||||||
ज़िला | पटना | ||||||
आधिकारिक भाषा(एँ) | हिन्दी, मगही, अंग्रेज़ी | ||||||
विभिन्न कोड
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आधिकारिक जालस्थल: http://patna.bih.nic.in/ |
भूगोल
संपादित करेंअगवानपुर गाँव गंगा नदी से दक्खिन में स्थित है। यह बाढ़ रेलवे स्टेशन से दक्खिन-पश्चिम में 4 किलोमीटर दुरी पर स्थित है। चौहद्दी के हिसाब से उत्तर में राना-बीघा, सादिकपुर और सहरी स्थित है, दक्खिन में बहरावान और हसनचक-१ स्थित है, पूरब में मजरा-बोलौर और पश्चिम में नदवान, पुराई-बाग और बासोबागी स्थित है। अगवानपुर गाँव के दक्खिन में ताल होने के कारण भूमि की ढाल दक्खिन की ओर है।
जनसांख्यिकी
संपादित करेंअगवानपुर गाँव में तिन टोले हैं। क्रमशः अगवानपुर, मोकिमपुर और हसनपुर |
अगवानपुर टोले में कुल मकानों की संख्या 507 है। तथा कुल जनसंख्या 3228 है। पुरुषों की जनसंख्या 1742 तथा महिलाओं की जनसंख्या 1486 है। मोकिमपुर टोले में कुल मकानों की संख्या 192 है। तथा कुल जनसंख्या 1446 है। पुरुषों की जनसंख्या 735 तथा महिलाओं की जनसंख्या 711 है। हसनपुर टोले में कुल मकानों की संख्या 146 है। तथा कुल जनसंख्या 1256 है। पुरुषों की जनसंख्या 645 तथा महिलाओं की जनसंख्या 611 है। पूरे गाँव की जनसँख्या 5930 है। कुल मकानों की संख्या 845 है। जिसमें पुरुषों की जनसंख्या 3122 तथा महिलाओं की जनसंख्या 2808 है।
यातायात
संपादित करेंआदर्श स्थल
संपादित करेंशिक्षा
संपादित करेंअगवानपुर में शिक्षा की स्थिति अच्छी नहीं है। यहाँ एक उच्च विद्यालय, दो माध्यमिक विद्यालय तथा तीन प्राथमिक विद्यालय है। उच्च विद्यालय का नाम अगवानपुर उच्च विद्यालय है। इसकी स्थापना सन 1926 में हुई थी। यह बिहार राज्य के कुछ पुराने विद्यालयों में एक है। यहाँ वारह्वी कक्षा तक पढाई होती है। विद्यालय का प्रांगण काफी बड़ा है। यहाँ आजादी के पहले तथा आजादी के बाद कुछ सालों तक शिक्षा की स्थिति अच्छी थी, लेकिन आज सरकारी उपेक्षा के कारण विद्यालय खंडहर में बदल चूका है, अभी हाल में सन 2007 में बाढ़ के विधायक ज्ञानेंद्र कुमार सिंह के द्वारा दो कमरों का निर्माण कराया गया है। बाकि विद्यालय का सारा प्रांगण जो की काफी विशाल है जर्जर होकर कभी भी गिरने की अवस्था में है। यहाँ के बच्चे छठी तक निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण करते हैं तथा बाकि की शिक्षा के लिए शहरों की ओर रुख करते हैं, क्योंकि उच्च विद्यालय में शिक्षकों की कमी है। कभी यहाँ शिक्षकों की संख्या चालीस से ऊपर हुआ करती थी, लेकिन आज यहाँ उनकी कुल संख्या चार है तथा पढ़ने वाले छात्रों की संख्या हजार है।
पर्व-त्यौहार
संपादित करेंयहाँ की सारी जनसँख्या हिन्दू-धर्मलाम्बी है। इसलिए हिन्दू धार्मिक पर्व-त्यौहार मनाये जाते हैं। यहाँ के प्रमुख पर्व हैं- छठ, काली पूजा, दीपावली, दशहरा, होली, शिवरात्रि, जन्माष्टमी, मकरसंक्रांति, नागपंचमी इत्यादि |
कालीपूजा तथा छठ यहाँ के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। दीपावली की रात काली माँ का पट खुलता है और पांच दिनों तक मेला लगता है। इन दिनों भक्ति जागरण तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। माँ काली की विशाल प्रतिमा बिठाई जाती है। पांचवें दिन माँ की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है तथा इसी दिन से छठ पूजा प्रारंभ होती है।
छठ में सूर्य देव की पूजा होती है। ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य है। इस कारण हिन्दू शास्त्रों में सूर्य को भगवान मानते हैं। सूर्य के बिना कुछ दिन रहने की जरा कल्पना कीजिए। इनका जीवन के लिए इनका रोज उदित होना जरूरी है। कुछ इसी तरह की परिकल्पना के साथ पूर्वोत्तर भारत के लोग छठ महोत्सव के रूप में इनकी आराधना करते हैं।
माना जाता है कि छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती रही है। छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। महाभारत में सूर्य पूजा का एक और वर्णन मिलता है।
यह भी कहा जाता है कि पांडवों की पत्नी द्रौपदी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं। इसका सबसे प्रमुख गीत 'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मे़ड़राय काँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए' है।
ऐसा भी माना है कि यह पूजा मोर्य-काल से ही की जाती है। मगध की धरती पुराने काल से बहुत उपजाऊ है। लोगों की आस्था है कि छठ पूजा के कारण प्राकृतिक आपदा भूकंप इत्यादि नहीं आते हैं। यह पूजा यहाँ के हर घर में होती है। जो व्यक्ति पूजा करता है तथा उपवास रखता है वह वर्ती कहलाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के छट्ठे दिन शाम में और सातवें दिन सुबह में वर्ती सूप डाले में फल पकवान आदि से सूर्य देव की पूजा करते हैं। पूजा किसी नदी, तालाब या किसी शुद्ध जलाशय के समीप की जाती है। वर्ती फल पकवान को सूप में सजाकर सूर्य देव को अर्ध्य देतें हैं। श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की कामना करते हैं। पकवानों में मुख्यतः ठेकुआ (मगही में खमौनी) होती है।
वैसे तो छठ महोत्सव को लेकर तरह-तरह की मान्यताएँ प्रचलित हैं, लेकिन इन सबमें प्रमुख है साक्षात भगवान का स्वरूप। सूर्य से आँखें मिलाने की कोशिश भी कोई नहीं कर सकता। ऐसे में इनके कोप से बचने के लिए छठ के दौरान काफी सावधानी बरती जाती है। इस त्योहार में पवित्रता का सर्वाधिक ध्यान रखा जाता है।
इस अवसर पर छठी माता का पूजन होता है। मान्यता है कि पूजा के दौरान कोई भी मन्नत माँगी जाए, पूरी होती। जिनकी मन्नत पूरी होती है, वे अपने वादे अनुसार पूजा करते हैं। पूजा स्थलों पर लोट लगाकर आते लोगों को देखा जा सकता है।
बाहरी कड़ियाँ
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