अजिंक्यतारा

फोर्ट आफ मराठा

अजिंक्यतारा (Ajinkyatara) भारत के महाराष्ट्र राज्य के सतारा ज़िले में स्थित एक दुर्ग है। मराठा साम्राज्य के काल का यह दुर्ग 1,356 मीटर (4,449 फीट) ऊँची अजिंक्यतारा पहाड़ी पर स्थित है, और यह दुर्ग सातारा नगर के इर्द-गिर्द स्थित सात पहाड़ी दुर्गों में से एक है। अजिंक्यतारा दुर्ग का दक्षिणोत्तर विस्तार 600 मीटर (2,000 फीट) मीटर है। आज इस किले पर वृक्षारोपण जैसे अनेक सामाजिक कार्यक्रम लिए जाते हैं।[1][2]

अजिंक्यतारा
Ajinkyatara
पहले मराठा साम्राज्य , अब महाराष्ट्र का भाग
सतारा ज़िला, महाराष्ट्र
(सातारा के पास )
Main Gateway, Ajinkyatara 02.jpg
अजिंक्यतारा दुर्ग का प्रवेशद्वार
अजिंक्यतारा is located in महाराष्ट्र
अजिंक्यतारा
अजिंक्यतारा
महाराष्ट्र में अवस्थिति
निर्देशांक17°40′19″N 73°59′24″E / 17.672°N 73.990°E / 17.672; 73.990
प्रकारपहाड़ी दुर्ग
ऊँचाई1,356 मीटर (4,400 फीट) ASL
स्थल जानकारी
स्वामित्वभारत सरकार
जनप्रवेशहाँ
स्थल इतिहास
निर्मित16वीं शताब्दी
निर्मातामराठा साम्राज्य
सामग्रीपत्थर, सीसा
दुर्गरक्षक जानकारी
पूर्व
अध्यक्ष
शिवाजी, शाहु

नामार्थसंपादित करें

"अजिंक्यतारा" का अर्थ "अजेय तारा" है। सातारा नगर का नाम "सात तारा" के संक्षिप्तिकरण से हुआ है, जिसमें तारों का तात्पर्य नगर को घेरने वाले सात पहाड़ी दुर्ग हैं।

आवागमनसंपादित करें

अजिंक्‍यतारा किला सातारा शहर में ही होने से शहरासे अनेक मार्ग द्वारा किले पर जाया जा सकता है। सातारा एस.टी. स्थानक से अदालत बाजार मार्ग से जानेवाली कोई भी गाडीसे अदालत बाडे पर उतरकर किलेपर जा सकते हैं। दुपहिया से भी अजिंक्यातारा पर जा सकते हैं। सातारा से राजवाडा एेसी बससेवा हर १०-१५ मिनिट में उपलब्ध है।’राजवाडा’ बस स्थानक से अदालत बाड्डा तक चलते हुए आने के लिए १० मिनिट लगते हैं। अदालत बाडे के बाजूसे जो मार्ग है वही पर किले पर जानेवाली गाडी रस्तेपर लगती है। उस रस्ते से १ कि.मी. चलते हुए जाने पर व्यक्ति दरवाजे के पास पहुँचता है। अजिंक्‍यतारा किले पर जाने के लिए सीधा गाडी रस्ता भी है।सुद्धा आहे. गोडोली नाका परिसर से भी कोई भी मार्ग से किलेपर जा सकते हैं। कही से भी जाने पर लगभग एक घन्टा समय लगता है। किलेपर सुबह चढकर जाना स्वास्थ की दृष्टी से अच्छा है।

इतिहाससंपादित करें

सातारा का किला (अजिंक्‍यतारा) मतलब मराठो की चौथी राजधानी। पहली राजगड फिर रायगड उसके बाद जिंजी और चौथी अजिंक्‍यतारा। शिलाहार वंश के दुसरे भोजराजाने इ.स. ११९० में बांधा। आगे यह किला बहामनी सत्ता के पास और फिर बिजापूर के आदिलशाह के पास गया।इ.स.१५८० में पहले आदिलशहा की पत्‍नी चांदबिबी यहाँ कैद में थी। शिवाजी के राज्य का विस्तार होते समय २७ जुलाई १६७३ में यह किला शिवाजी महाराज के हाथ आया इस किलेपर शिवराया को ज्वर आने के कारण दो महिने विश्रांती लेनी पडी। शिवाजी महाराज की मृत्यु के पश्चात १६८२ में औरंगजेब महाराष्ट्र में आयी। इ.स. १६९९ में औरंगजेब ने सातारा के दुर्ग को घेरा। उस समय किले के किलेदार प्रयागजी प्रभू थे। १३ अप्रैल १७०० की सुबह मुघलाे ने सुरुंग लगाने के कारण दाे सुरंग खोदी और बत्ती देते ही क्षणभर में मंगलाई का बुरूज आकाश में गया। तट पर के कुछ मराठे मारे गए इतने में दूसरा स्फोट हुआ। बड़ा तट आगे घुसनेवाले मुगलो पर गिरा व देढ हजार मुघल सैनिक मारे गए। किले पर सब बारूद, खाद्यपदार्थ खत्म हुए और २१ अप्रे को किला सुभानजीने जिता। किले पर मोगली निशाण लहराने के लिए साडेचार महिने लगे।

इन्हें भी देखेंसंपादित करें

सन्दर्भसंपादित करें

  1. "RBS Visitors Guide India: Maharashtra Travel Guide Archived 2019-07-03 at the Wayback Machine," Ashutosh Goyal, Data and Expo India Pvt. Ltd., 2015, ISBN 9789380844831
  2. "Mystical, Magical Maharashtra Archived 2019-06-30 at the Wayback Machine," Milind Gunaji, Popular Prakashan, 2010, ISBN 9788179914458