अद्भुत रामायण संस्कृत भाषा में रचित 27 सर्गों का काव्यविशेष है। कहा जाता है, इस ग्रंथ के प्रणेता बाल्मीकि थे। किंतु इसकी भाषा और रचना से लगता है, किसी बहुत परवर्ती कवि ने इसका प्रणयन किया है।

सर्ग संपादित करें

  • १ - वाल्मिकी द्वारा राम और सीता का ब्रह्मरुपी प्रतिपादन करना।
  • २ - नारायण द्वारा अम्बरीष को सुरक्षा का वर देना।
  • ३ - नारद और पर्वत का श्रीमती पर अनुरक्त होना और विष्णु द्वारा उन्हें बन्दर बनाना।
  • ४ - नारद का विष्णु को पृथ्वी पर जन्म लेना का शाप।
  • ५ - कौशिक की कथा
  • ६ - नारद का लक्ष्मी को पृथ्वी पर जन्म लेना का शाप।
  • ७ - नारद को गानविघा की प्राप्ति
  • ८ - रावण द्वारा दण्डकारण्य के ऋषियों का रक्त जमा करना और उससे सीता का जन्म, लोकलाज के भय से मन्दोदरी द्वारा सीता का कुरुक्षेत्र में त्याग, जनक द्वारा सीता को अपनाना।
  • ९ - परशुराम का विश्वरुप देखना
  • १० - हनुमान द्वारा चतृभुजरुप का दर्शन
  • ११ से १५ - राम का हनुमान को सांख्य योग, भक्ति और उपनिषद का ज्ञान देना।
  • १६ - लंकाविजय और अयोध्या आगमन
  • १७ - सीता का अपने बचपन की कथा कहना की चातुर्मास करने आए ऋषि ने उन्हें सहस्त्ररावण के बारे में बताया था।
  • १८ से २२ - राम का पुष्कर द्वीप जाकर सहस्त्ररावण से युद्ध और उनका मूर्छित होना।
  • २३ - सीता का काली बनकर सहस्त्ररावण को मारना।
  • २४ - देवताओं द्वारा राम को आश्वासित करना।
  • २५ - जानकी सहस्त्रनाम
  • २६ - काली का सीता बनना
  • २७ - अयोध्या आगमन

कथानक संपादित करें

कथानक इसका सचमुच अद्भुत है। राज्याभिषेक होने के उपरांत मुनिगण राम के शौर्य की प्रशस्ति गाने लगे तो सीता जी मुस्कुरा उठीं। हँसने का कारण पूछने पर उन्होंने राम को बताया कि आपने केवल दशानन का वध किया है, लेकिन उसी का भाई सहस्रानन अभी जीवित है। उसके पराभव के बाद ही आपकी शौर्यगाथा का औचित्य सिद्ध हो सकेगा। राम ने, इस पर, चतुरंग सेना सजाई और विभीषण, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, हनुमान आदि के साथ समुद्र पार करके सहस्रस्कंध पर चढ़ाई की। सीता भी साथ थीं। परंतु युद्ध स्थल में सहस्रानन ने मात्र एक बाण से राम की समस्त सेना एवं वीरों को अयोध्या में फेंक दिया। रणभूमि में केवल राम और सीता रह गए। राम अचेत थे; सीता ने असिता अर्थात् काली का रूप धारण कर सहस्रमुख का वध किया।

हिन्दी में अद्भुत रामायण संपादित करें

हिंदी में भी इस कथानक को लेकर कई काव्यग्रंथों की रचना हुई है जिनका नाम या तो अद्भुत रामायण है या जानकीविजय। 1773 ई. में पं॰ शिवप्रसाद ने, 1786 ई. में राम जी भट्ट ने, 18वीं शताब्दी में बेनीराम ने, 1800 ई. में भवानीलाल ने तथा 1834 ई. में नवलसिंह ने अलग-अलग अद्भुत रामायण की रचना की। 1756 ई. में प्रसिद्ध कवि और 1834 ई. में बलदेवदास ने जानकीविजय नाम से इस कथानक को अपनी-अपनी रचना का आधार बनाया।