शत्रुघ्न
शत्रुघ्न, रामायण में लक्ष्मण का जुड़वा भाई था।[1][2] पिता दशरथ व माता सुमित्रा थी। उनके अन्य भाई थे राम और भरत। उनके दो बेटे थे- सुबाहु और शत्रुघाती। शत्रुघ्न की पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति था जो कुशध्वज की बेटी थी। [3] पुराणों के अनुसार शत्रुघ्न भगवान नारायण के प्रमुख अस्त्र सुदर्शन चक्र के अवतार थे।श्रीराम को वनवास हो गया तो लक्ष्मण जी भी उनके साथ हो लिए भरत अपराध बोध से भर उठे और अयोध्या से बाहर नंदीग्राम में कुटी बनाकर तपस्वी का जीवन जीने लगे ,एक मात्र शत्रुघ्न थे जो अयोध्या का उत्तरदायित्व शासन प्रशासन संभाल रहे थे तो दूसरी तरफ माताओं की देखभाल कर रहे थे साथ ही अधिकांश समय भरत की सेवा भी कर रहे थे ऐसे महान त्यागी भाई का रामायण में पर्याप्त उल्लेख नहीं हो पाया क्योंकि 14 साल अयोध्या पूर्णत: सुरक्षित रही लगभग घटना शून्य,पूर्णत: शांत ,यह शत्रुघ्न का पराक्रम ही कहा जायेगा कि अयोध्या पूर्णत सुरक्षित रही।
शत्रुघ्न | |
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रामायण पात्र | |
निर्माता | दशरथ (पिता), सुमित्रा (माता) |
कहानी में जानकारी | |
शीर्षक | शत्रुओं एवं दुरचरियोन के परम वधकर्ता |
संबद्धता | सुदर्शन चक्र के अवतार |
परिवार | राम , लक्ष्मण, भरत और शांता , |
जीवनसाथी | श्रुतकीर्ति |
शत्रुघ्न का काम यहीं नहीं रुका ,राम के वापस आने के लगभग एक साल बाद मथुरा क्षेत्र के साधु संन्यासियों ने राम से शिकायत की मधुपुरी का राजा लवणासुर पूजा पाठ और यज्ञ आदि कर्म नहीं करने देता ,साधु संन्यासियों को क्रूरता पूर्वक मार देता है ।
शत्रुघ्न ने लवणासुर का वध करने का निर्णय लिया भगवान राम ने उन्हें दिव्यास्त्र प्रदान किये और शत्रुघ्न ने योजना बनाकर महाशक्तिशाली लवणासुर का वध कर दिया भगवान शिव के एक वरदान लवणासुर अजेय माना जाता था। वर्तमान में सप्तपुरियों में एक मथुरापुरी की स्थापना राजकुमार शत्रुघ्न ने ही की थी । शत्रुघ्न के पुत्र वर्तमान विदिशा शहर के शासक रहे। अधिक उल्लेख तो नहीं मिलता। शत्रुघ्न लगभग 12 वर्ष तक मथुरा के शासक रहे
इस तरह अयोध्या और मथुरा को मिला कर लगभग 26 साल शासन कार्य देखते रहे बाद में भगवान राम के साथ तपस्या करने के लिए ऋषिकेश चले गये वहां मुनि की रेती नामक स्थान पर तपस्या करते हुये उन्होंने देह का त्याग किया । वर्तमान में देश भर में शत्रुघ्न के अनेक मंदिर हैं इन मंदिरों में लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। भगवान राम के ये अनुज राम के परमभक्त और आदर्शों में में उन्हीं के समान महान चरित्र से संपन्न रहे है।शत्रुघ्न के बारे में भगवान श्री राम के वनवास के दौरान की गतिविधियो का कोई उल्लेख नहीं है।
जन्म
संपादित करेंशत्रुघ्न के जन्म के समय सूर्य ने सुबह कर्क राशि में प्रवेश किया व चंद्रमा ने रात को अश्लेष नक्षत्र में।[4]
नामकरण
संपादित करेंशत्रुघ्न का नामकरण, संत वशिष्ठ ने जन्म के १२वें दिन किया था।[5]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "CANTO XIX.: THE BIRTH OF THE PRINCES". Sacred Texts.
The sun had reached the Crab at morn When Queen Sumitrá's babes were born,
- ↑ Buck, William (2000). Ramayana (अंग्रेज़ी में). Motilal Banarsidass Publ. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788120817203. मूल से 25 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जुलाई 2018.
- ↑ https://books.google.co.in/books?id=hjBiDwAAQBAJ&pg=PT1734&lpg=PT1734&dq=shatrughati+subahu&source=bl&ots=gK8LRoOvSg&sig=ACfU3U0CQR98upbloypDeLJkLDEfq7RADg&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjJhdvNkorjAhUFOisKHTsQAsUQ6AEwCXoECAkQAQ#v=onepage&q=shatrughati%20subahu&f=false
- ↑ "CANTO XIX.: THE BIRTH OF THE PRINCES". Sacred Texts.
The sun had reached the Crab at mornपWhen Queen Sumitrá's babes were born, What time the moon had gone to make His nightly dwelling with the Snake.
- ↑ "CANTO XIX.: THE BIRTH OF THE PRINCES". Sacred Texts.
Soon as each babe was twelve days old 'Twas time the naming rite to hold. When Saint Vas'ishtha, rapt with joy, Assigned a name to every boy.
बाहरी कड़ियाँ
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