अहमद फ़राज़
अहमद फ़राज़ (१४ जनवरी १९३१- २५ अगस्त २००८), असली नाम सैयद अहमद शाह, का जन्म पाकिस्तान के नौशेरां शहर में हुआ था। वे आधुनिक उर्दू के सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में गिने जाते हैं।
अहमद फ़राज़ | |
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अहमद फ़राज़ 2005 में | |
जन्म | सैयद अहमद शाह अली १४ जनवरी १९३१ कोहाट, उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत, पाकिस्तान |
मृत्यु | २५ अगस्त २००८ (७७ वर्ष)[1] इस्लामाबाद, पाकिस्तान |
उपनाम | फ़राज़ |
व्यवसाय | उर्दु कवि, व्याख्याता |
राष्ट्रीयता | पाकिस्तानी |
नृजातियता | पश्तून सैयद |
नागरिकता | पाकिस्तानी |
शिक्षा | स्नातकोत्तर (कला-उर्दु), स्नातकोत्तर (कला-फारसी) |
अल्मा माटेर | पेशावर विश्वविद्यालय |
लेखन काल | १९५० - २००८ |
शैली | उर्दु ग़ज़ल |
विषय | प्रेम |
साहित्यिक आन्दोलन | प्रगतिवादी लेखक आंदोलन, जनतांत्रिक आंदोलन |
उल्लेखनीय कार्य | कई |
संतान | पुत्र:सादी, शिबली एवं सरमाद फ़राज़ |
संबंधी | सैयद मु.शाह बार्क (पिता) सैयद मसूद कौसर (भाई) |
लेखन पर प्रभाव
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प्रभावित किया
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जीवनी
संपादित करेंउन्होंने पेशावर विश्वविद्यालय में फ़ारसी और उर्दू विषय का अध्ययन किया था। बाद में वे वहीं प्राध्यापक भी हो गए थे। फ़राज़ बचपन में पायलट बनना चाहते थे । अपने एक इंटरवियु में उन्होंने बताया था कि उन्हें बचपन में पायलट बनने का शौक था पर उनकी माँ ने इसके लिए मना कर दिया। फिर उनका शेरो शायरी में मन लगने लगा और हमे इतना बेहतरीन शायर मिल गया।
वे अंत्याक्षरी की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया करते थे। लेखन के प्रारंभिक काल में वे इक़बाल की रचनाओं से प्रभावित रहे। फिर धीरे धीरे प्रगतिवादी कविता को पसंद करने लगे। अली सरदार जाफरी और फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के पदचिह्नों पर चलते हुए उन्होंने जियाउल हक के शासन के समय कुछ ऐसी गज़लें लिखकर मुशायरों में पढ़ीं जिनके कारण उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। इसी समय वे कई साल पाकिस्तान से दूर यूनाइटेड किंगडम और कनाडा देशों में रहे।
अहमद फ़राज़ ने रेडियो पाकिस्तान में भी नौकरी की और फिर अध्यापन से भी जुड़े। उनकी प्रसिद्धि के साथ-साथ उनके पद में भी वृद्धि होती रही। वे १९७६ में पाकिस्तान एकेडमी ऑफ लेटर्स के डायरेक्टर जनरल और फिर उसी एकेडमी के चेयरमैन भी बने। २००४ में पाकिस्तान सरकार ने उन्हें हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार से अलंकृत किया। लेकिन २००६ में उन्होंने यह पुरस्कार इसलिए वापस कर दिया कि वे सरकार की नीति से सहमत और संतुष्ट नहीं थे। उन्हें क्रिकेट खेलने का भी शौक था। लेकिन शायरी का शौक उन पर ऐसा छाया कि वे अपने समय के ग़ालिब कहलाए। उनकी शायरी के कई संग्रह प्रकाशित हुए। ग़ज़लों के साथ ही उन्होंने नज़्में भी लिखी। लेकिन लोग उनकी ग़ज़लों के दीवाने हैं।[2]
25 अगस्त 2008 को किडनी फेल होने के कारण उनका निधन हो गया।
साहित्य
संपादित करेंउनकी ग़ज़लों और नज़्मों के कई संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिनमें खानाबदोश, ज़िंदगी! ऐ ज़िंदगी और दर्द आशोब (ग़ज़ल संग्रह) और ये मेरी ग़ज़लें ये मेरी नज़्में (ग़ज़ल और नज़्म संग्रह) शामिल हैं।
फ़राज़ की शायरी में आपको दर्द और मोहब्बत दोनों ही देखने को मिलती है जैसे ये शेर देखिये
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं
इस शेर में फ़राज़ ने मोह्हबत ज़ाहिर की है और यही पर एक और शेर देखिये कि
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
फ़राज़ अपने समय के बड़े शायरों में से एक थे। मीर तकी मीर साहब से बहुत प्रभावित थे ये बात आप उनके इस शेर में देख सकते हैं
आशिक़ी में 'मीर' जैसे ख़्वाब मत देखा करो
बावले हो जाओगे महताब मत देखा करो
फ़राज़ जिस तरह से इश्क़ को बताते है वैसे शायद ही कोई शायर बता सकता है और और भी कई नज़्मे है गज़ले है जिसमें फ़राज़ ने फ़िराक और विशाल दोनों का ही ज़िक्र किया है यहाँ
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ http://timesofindia.indiatimes.com/India/Pak_poet_Ahmed_Faraz_dies_at_77/articleshow/3409068.cms%7C Pak poet Ahmed Faraz dies at 77
- ↑ "सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते". वेबदुनिया. अभिगमन तिथि 1 सितंबर 2008.[मृत कड़ियाँ]