इंदिरा गांधी की हत्या

1984 में नई दिल्ली,भारत का एक हत्या कांड

प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या 31 अक्टूबर, 1984 को नई दिल्ली के सफदरगंज रोड स्थित उनके आवास पर सुबह 9:30 बजे की गई थी।[1][2] ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उनके अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मार कर उनकी हत्या की थी।[3] ऑपरेशन ब्लूस्टार एक भारतीय सैन्य अभियान था, जो 1 से 8 जून, 1984 के बीच किया गया था। यह आदेश पंजाब के अमृतसर में हरमंदिर साहिब परिसर की इमारतों से सिख उग्रवादी नेता जरनैल सिंह भिंडरावाले और उनके सशस्त्र अनुयायियों को हटाने के लिए इंदिरा गाँधी ने दिया था।[4] संपार्श्विक क्षति में कई तीर्थयात्रियों की मृत्यु हुई थी, जिन्हें उग्रवादियों द्वारा मंदिर में मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था, साथ ही इस मुठभेड़ में सिख धर्म के प्रमुख तख़्त, अकाल तख़्त को भी नुक़सान पहुँचा था। पवित्र मंदिर पर सैन्य कार्यवाही की दुनिया भर के सिखों ने आलोचना की थी।[5]

इंदिरा गांधी की हत्या

The spot where Gandhi was shot down is marked by a glass opening in the crystal pathway at the Indira Gandhi Memorial
स्थान प्रधानमंत्री आवास, Safdarjung Road, नई दिल्ली
तिथि 31 October 1984
9:30 a.m.
हमले का प्रकार Gun violence
हथियार .38 (9.1 mm) revolver and Sterling submachine gun
पीड़ित इंदिरा गाँधी
इंदिरा गाँधी, १९७७
नई दिल्ली के इंदिरा गाँधी मेमोरियल में इंदिरा गाँधी की हत्या के स्थान को क्रिस्टल से सजे रास्ते पर एक खाली शीशे की पट्टी से चिह्नित किया गया है।

ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद प्रधानमंत्री गाँधी के जीवन पर खतरे की धारणा बढ़ गई थी। तद्नुसार, हत्या-प्रयास के डर से आसूचना ब्यूरो द्वारा सिखों को उसके निजी अंगरक्षक टुकड़ी से हटा दिया गया था। हालाँकि, गाँधी की राय थी कि इससे उनकी सिख विरोधी छवि जनता के बीच मज़बूत होगी और उनके राजनीतिक विरोधियों को मज़बूती मिलेगी। अतः उन्होंने विशेष सुरक्षा दल को अपने सिख अंगरक्षकों को फिर से बहाल करने का आदेश दिया, जिसमें बेअंत सिंह भी शामिल थे।[6]

पृष्ठभूमि

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ऑपरेशन ब्लूस्टार

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भारतीय सेना द्वारा 03 से 06 जून, 1984 को अमृतसर (पंजाब, भारत) स्थित हरिमंदिर साहिब परिसर को ख़ालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए चलाया गया अभियान था।[7] पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें सशक्त हो रही थीं, जिन्हें पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा था। तीन जून को भारतीय सेना ने अमृतसर पहुँचकर स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर लिया। शाम में शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया। चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरु कर दी ताकि मंदिर में मौजूद मोर्चाबंद चरमपंथियों के हथियारों और असलहों का अंदाज़ा लगाया जा सके। चरमपंथियों की ओर से इसका इतना तीखा जवाब मिला कि पाँच जून को बख़तरबंद गाड़ियों और टैंकों को इस्तेमाल करने का निर्णय किया गया। पाँच जून की रात को सेना और सिख लड़ाकों के बीच असली भिड़ंत शुरु हुई।

इस सैन्य कार्रवाही में भीषण जान माल का नुक़सान हुआ। अकाल तख़्त के भवन को, जोकि धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण था। गंभीर रूप से नुक़सान हुआ एवं कार्रवाही के पश्चात् भारत सरकार द्वारा पुनःनिर्मित किया गया। रिपोर्टों के अनुसार, स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ चलीं। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सिख पुस्तकालय जल गया। भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए। 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1,592 को गिरफ़्तार किया गया। इस कार्यवाही की कई कारणों से निंदा भी की गयी थी, विशेषकर सिख धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए।

इंदिरा गाँधी की निंदा और विरोध

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मरम्मत के बाद, अकाल तख़्त की आज की तस्वीर

ऑपरेशन ब्लूस्टार में अपनी भूमिका के कारण इंदिरा गाँधी, जिसने अकाल तख्त के कुछ हिस्सों को नुकसान पहुंचाया था और हताहतों की संख्या हुई थी। सिखों के बीच अत्यंत अलोकप्रिय हो गईं। स्वर्ण मंदिर परिसर में जूतों के साथ सेना के जवानों के कथित प्रवेश और मंदिर के पुस्तकालय में सिख धर्मग्रंथों और पांडुलिपियों के कथित रूप से नष्ट होने के कारण सिख संवेदनाएँ आहत हुई थीं। इस तरह की कार्रवाइयों से सरकार के प्रति अविश्वास का माहौल पैदा होने लगा। स्वर्ण मंदिर पर हमला करने को बहुत से सिक्खों ने अपने धर्म पर हमला करने के समान माना एवं कई प्रमुख सिखों ने या तो अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया या फिर विरोध में सरकार द्वारा दिए गए सम्मान लौटा दिए।[8]

इस कार्रवाही की अनुमति देने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की भी काफी निंदा की गयी। यह अविश्वास का माहौल गाँधी की हत्या की साजिश में समाप्त हुआ गया, जोकि ऑपरेशन के समापन के पाँच महीने के भीतर हुआ। ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद प्रधानमंत्री गाँधी के जीवन पर खतरे की धारणा बढ़ गई थी। तद्नुसार, हत्या-प्रयास के डर से आसूचना ब्यूरो द्वारा सिखों को उसके निजी अंगरक्षक टुकड़ी से हटा दिया गया था। हालाँकि, गाँधी की राय थी कि इससे उनकी सिख विरोधी छवि जनता के बीच मजबूत होगी और उनके राजनीतिक विरोधियों को मजबूती मिलेगी। अतः उन्होंने विशेष सुरक्षा दल को अपने सिख अंगरक्षकों को फिर से बहाल करने का आदेश दिया, जिसमें बेअंत सिंह भी शामिल थे।[6]

हत्या और मृत्यु

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इंदिरा गाँधी मेमोरियल, नयी दिल्ली में रखे, इंदिरा गाँधी की खून से सने कपड़े

उनके दो सिख अंगरक्षक, सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने 31 अक्टूबर 1984 को नई दिल्ली के सफदरजंग रोड स्थित उनके आवास पर सुबह 9:30 बजे गोली मार कर उनकी हत्या की थी,[1] उसमें से एक, बेअंत सिंह के वहीं पर सुरक्षा कर्मियों द्वारा मार गिराया गया था, जबकि सतवंत सिंह, जोकि उस समय 22 वर्ष के थे, को गिरफ़्तार कर लिया गया।[9] वो ब्रिटिश अभिनेता पीटर उस्तीनोव को आयरिश टेलीविजन के लिए एक वृत्तचित्र फिल्माने के दौरान साक्षात्कार देने के लिए सतवंत और बेअन्त द्वारा प्रहरारत एक छोटा गेट पार करते हुए आगे बढ़ी थीं। इस घटना के तत्काल बाद, उपलब्ध सूचना के अनुसार, बेअंत सिंह ने अपने बगलवाले शस्त्र का उपयोग कर उनपर तीन बार गोली चलाई और सतवंत सिंह एक स्टेन कारबाईन का उपयोग कर उनपर बाईस चक्कर गोली दागे।

गाँधी को उनके सरकारी कार में अस्पताल पहुँचाते–पहुँचाते रास्ते में ही दम तोड़ दीं थी, लेकिन घंटों तक उनकी मृत्यु घोषित नहीं की गई। उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में लाया गया, जहाँ डॉक्टरों ने उनका ऑपरेशन किया। उस वक्त के सरकारी हिसाब 29 प्रवेश और निकास घावों को दर्शाती है तथा कुछ बयाने 31 बुलेटों के उनके शरीर से निकाला जाना बताती है, उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली ले जाया गया। जहाँ डॉक्टरों ने उनका ऑपरेशन किया। उन्हें 2:20 बजे मृत घोषित कर दिया गया। उनके शव को 01 नवंबर की सुबह दिल्ली के रास्तों से होते हुए तीन मूर्ति भवन ले जाया गया जहां उनके शव को सम्मान और जनता के दर्शन के लिए रखा गया। 03 नवंबर को राज घाट के पास उनका अंतिम संस्कार किया गया और इस स्थान का नाम शक्तिस्थल रखा गया। उनके बड़े बेटे और उत्तराधिकारी राजीव गाँधी ने चिता को अग्नि दी थी।[1]

हत्या के बाद की घटनाएँ

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इंदिरा गाँधी के हत्या के बाद भारत के कई इलाकों में सिखों के विरुद्ध दंगे हुए थे, जिनमें करीब 3,000 से ज़्यादा मौतें हुई थीं।[10][11][12]

इन्हें भी देखें

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  1. "25 years after Indira Gandhi's assassination". CNN-IBN. 30 अक्टूबर 2009. मूल से 4 नवम्बर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 सितम्बर 2011.
  2. "Assassination in India: A Leader of Will and Force; Indira Gandhi, Born to Politics, Left Her Own Imprint on India". The New York Times. 1 नवम्बर 1984. मूल से 15 अक्टूबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 जनवरी 2009.
  3. "1984: Assassination and revenge". BBC News. 31 October 1984. मूल से 15 February 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 January 2009.
  4. Swami, Praveen (16 January 2014). "RAW chief consulted MI6 in build-up to Operation Bluestar". The Hindu. Chennai, India. मूल से 4 जून 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अप्रैल 2020.
  5. "1984: Indian prime minister shot dead". BBC News  . 31 October 1984. मूल से 17 January 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 January 2009.
  6. "Operation Blue Star: India's first tryst with militant extremism - Latest News & Updates at Daily News & Analysis". Dnaindia.com. 5 नवम्बर 2016. मूल से 3 नवम्बर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 अक्टूबर 2017.
  7. "जरनैल सिंह भिंडरावाले का सफ़र". मूल से 27 अगस्त 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अप्रैल 2020.
  8. Sandhu, Kanwar (15 May 1990). "Sikh Army deserters are paying the price for their action". India Today. मूल से 19 June 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 June 2018.
  9. Smith, William E. (12 नवम्बर 1984). "Indira Gandhi's assassination sparks a fearful round of sectarian violence". Time. मूल से 3 नवम्बर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 जनवरी 2013.
  10. Bedi, Rahul (1 November 2009). "Indira Gandhi's death remembered". BBC. मूल से 2 November 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2 November 2009. The 25th anniversary of Indira Gandhi's assassination revives stark memories of some 3,000 Sikhs killed brutally in the orderly pogrom that followed her killing
  11. "1984 anti-Sikh riots 'wrong', says Rahul Gandhi". Hindustan Times. 18 November 2008. मूल से 12 October 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 May 2012.
  12. Singh, Pritam (2008). Federalism, Nationalism and Development: India and the Punjab Economy. Routledge. पृ॰ 45. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-415-45666-1. मूल से 30 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अप 2020. |access-date= में 6 स्थान पर line feed character (मदद); |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)

बाहरी कड़ियाँ

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