उर्स
दक्षिण एशिया में उर्स (अरबी: عرس, शाब्दिक "शादी"), आमतौर पर किसी सूफी संत की पुण्यतिथि पर उसकी दरगाह पर वार्षिक रूप से आयोजित किये जाने वाले उत्सव को कहते हैं। दक्षिण एशियाई सूफी संत मुख्य रूप से चिश्तिया कहे जाते हैं और उन्हें अल्लाह का प्रेमी समझा जाता है। उर्स की रस्मों को आम तौरपर दरगाह के संरक्षक या उस सिलसिला के मौजूदा शेख द्वारा निभाया जाता है। उर्स के उत्सव में हम्द, नाट तथा कव्वाली संगीतों का गायन गायन भी शामिल होता है। अक्सर उर्स के समय दरगाह के आसपास में भोजन, बाज़ार और विभिन्न प्रकार के मेले भी आयोजित करवाये जाते हैं।
समय के साथ, उर्स के अवसर पर दरगाहों में पर श्रद्धालुओं की उपस्थिति में दरवेशों और शेखों के संगीतमय गीतों ने कव्वाली और काफ़ी जैसी संगीत शैलियों को जन्म दिया, जिसमें सूफी काव्यों को संगीत के साथ किसी मुर्शिद को भेंट के रूप में गाया जाता है। आज वे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में संगीत और मनोरंजन का एक लोकप्रिय रूप बन गए हैं।[1][2]
अजमेर में दरगाह शरीफ में मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स पर हर साल 400000 से अधिक श्रद्धालु शिरकत करते हैं।[3]
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सालाना उर्स के लिए सजाई गयी दरगाह
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मोहम्मद अली शाह नियाज़ी के उर्स उत्सव के रस्म
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Kafi Archived 2014-05-14 at the वेबैक मशीन South Asian folklore: an encyclopedia : Afghanistan, Bangladesh, India, Nepal, Pakistan, Sri Lanka, by Peter J. Claus, Sarah Diamond, Margaret Ann Mills. Taylor & Francis, 2003. ISBN 0-415-93919-4. p. 317.
- ↑ Kafi Archived 2014-05-14 at the वेबैक मशीन Crossing boundaries, by Geeti Sen. Orient Blackswan, 1998. ISBN 8125013415. p. 133.
- ↑ "Another entrance for the Ajmer dargah". द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया. 29 January 2012. मूल से 26 जनवरी 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 February 2012.