गुरु प्रसाद सिंह 'मृगेश' (1910 -1985), अवधी भाषा के कवि थे।

जीवन परिचय

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'मृगेश' का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के रामनगर में 12 जनवरी 1910 को हुआ था।[1] इनके पिता का नाम गुलाब सिंह था। यह क्षत्रिय (रैकवार) परिवार से थे। अवधी भाषा की कविताओं में उल्लेखनीय योगदान के कारण इन्हें कवि गुरु मृगेश भी कहा जाता है। मृगेश जी की कविताओं में तत्कालीन सामाजिक समस्याओं के अतिरिक्त परिहास एवं ठिठोलियों को भी महत्वपूर्ण स्थान मिला है।

आपने 1938 से लेकर 1953 तक लखनऊ के आकाशवाणी केंद्र पर अवधी कार्यक्रमों से सम्बद्ध रहकर भाषा के विकास एवं प्रचार प्रसार में योगदान दिया।

आपके समकालीन कवियों में वंशीधर शुक्ल और चंद्रभूषण त्रिवेदी रमई काका का नाम आता है।

मृगेश ने लगभग १५ पुस्तकों की रचना की जिनमें से इनकी प्रमुख रचनायें निम्नवत हैं[2]

  • पारिजात - इसे आधुनिक अवधी प्रबन्ध-काव्यों में प्रमुख स्थान प्राप्त है[3]
  • गाँव के गीत
  • बरवै व्यंजना
  • चहलारी नरेश
  • चयन

उनकी प्रमुख अवधी रचनाओं में जब बिछुलि परे तौ हर गंगा और बुढ़उनू जुग बदला आदि सरल कविताएं शामिल हैं।

खड़ी बोली (हिन्दी)

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  • दया का दण्ड - प्रबन्ध काव्य
  • मृगेश का महाभारत
  • सुगीत
  • माधव मंगल
  • मृगांक

बृज भाषा काव्य

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  • शबरी शतक
  • मुक्तक चयन
  • राजा की आन
  • बैजू बाँवरा
  • एकलव्य

मृगेश जी को सम्मान देते हुए यूनियन इण्टर कालेज रामनगर में कवि गुरु मृगेश स्मारक पुस्तकालय बनाया गया है।

  1. "बाराबंकी जिले की वेबसाइट पर मृगेश के बारे में". मूल से 30 सितंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्तूबर 2015.
  2. पीयूष, जगदीश (2011). अवधी ग्रंथावली - ४. नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन. पृ॰ 122. मूल से 4 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्टूबर 2015.
  3. पीयूष, जगदीश (2011). बहुत कुछ जैसा कुछ नहीं (अवधी ग्रंथावली - १). नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन. पृ॰ 15. मूल से 4 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्टूबर 2015.