कांजी
कांजी उत्तर भारत का वसंत ऋतु का सर्वाधिक लोकप्रिय पेय है। यह एक किण्वित पेय है जो प्राय: गाजर (लाल या काली) और चुकन्दर से बनाया जाता है। यह स्वाद में चटपटा होता है और पेट के लिए स्वास्थ्यवर्धक समझा जाता है। यह उत्तर भारत में होली के अवसर पर बनाया जाने वाला एक विशेष व्यंजन है। कुछ लोग इसमें दाल के बड़े डालकर भी बनाते हैं। गाजर की कांजी बहुत ही स्वादिष्ट और पाचक होती है। यह खाने से पहले भूख को बढ़ा देती है। इसका उपयोग गर्मी और सर्दी दोनों मौसम में कर सकते हैं।[1] कांजी कई रुपों में पी जाती है पर बनाने का ढंग एक सा ही है। इसका पानी तैयार करने के लिए पानी के अतिरिक्त राई, नमक और लाल मिर्च की आवश्यकता होती है। इसके अलावा आधा किलो धुली और छिली हुई काली या लाल गाजर के टुकड़े चाहिए होते हैं।[2] इसको बनाने के लिए पानी को उबाल कर ठंडा कर लिया जाता है और एक बड़े मुँह के बर्तन में रखा जाता है। राई के दानों को सूखा पीस कर इसमें मिला दिया जाता है। स्वाद के लिए नमक और मिर्च भी मिलाए जाते हैं। फिर उसमें गाजर को छीलकर उसके टुकड़े काट कर डाल दिया जाता है। बर्तन का मुंह किसी महीन कपड़े से बंद करके उसे चार पाँच दिन के लिए धूप में रख दिया जाता है जिससे इस मिश्रण में हल्का खमीर आ जाता है।
कांजी | |
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गाजर की कांजी | |
उद्भव | |
संबंधित देश | भारत |
देश का क्षेत्र | उत्तरी भारत |
व्यंजन का ब्यौरा | |
मुख्य सामग्री | गाजर, हींग, बड़े |
अन्य प्रकार | गाजर या बड़े की कांजी |
इसका स्वाद हल्का खट्टा हो जाता है और गाजर नर्म हो जाती है। कांजी का तैयार होना बनना तब माना जाता है, जब उसका पानी बहुत ही स्वादिष्ट खट्टा हो जाये। इसके बन जाने के बाद उसे ठंडक (प्रशीतन) में रख सकते हैं, जिससे वह और अधिक खट्टी नहीं होगी। इसके बाद लगभग १५ दिनों तक यह चलेगी। गाजर की जगह चुकंदर, मूली या बड़े भी डाले जाते हैं, या लाल गाजर की कांजी में धुली मूँग की दाल के मगोड़े (पकौड़े) डालकर भी खाए जाते हैं, जिन्हें कांजी के बड़े/मगौड़े कहा जाता है।
मानव शरीर में अच्छे और बुरे दोनो तरह के जीवाणु होते हैं। कांजी तथा अन्य किण्वित खाद्य पदार्थ शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करते हैं। इससे पाचन शक्ति में लाभ होता है और साथ ही रोगों से लड़नें की क्षमता प्राप्त होती है।[3] चुकन्दर की कांजी से यकृत को साफ रखनें में मदद मिलती है। १० ग्राम सौंफ का रस निकाल कर काँजी में मिलाकर पीने से गठिया यानी घुटनों का दर्द कम होता है।[4] सुबह, शाम कांजी पीना अति लाभदायक बताया गया है।
सन्दर्भ
- ↑ गाजर की कांजी Archived 2010-04-03 at the वेबैक मशीन। निश मधुलिका
- ↑ Archive for the ‘देसी खान-पान’ Category।
- ↑ कांजी – एक स्वास्थ्यवर्धक पेय[मृत कड़ियाँ]। कर्मभूमि। १ अप्रैल २००९
- ↑ गठिया का रोग[मृत कड़ियाँ]
बाहरी कड़ियाँ
- गाजर की कांजी इंडियाकरी.कॉम पर Archived 2008-10-16 at the वेबैक मशीन
- निशामधुलिका की:
- गाजर की कांजी Archived 2010-04-03 at the वेबैक मशीन रेसिपी
- बड़े की कांजी Archived 2010-03-29 at the वेबैक मशीन-रेसिपी