कार्तवीर्य अर्जुन

यदुकुलीन हैहैयवंश साम्राज्य का चक्रवर्ती सम्राट कार्तवीर्य अर्जुन

कार्तवीर्य अर्जुन (English:Kartavirya Arjuna), सहस्रबाहु अर्जुन या सहस्रार्जुन के रूप में भी जाने जाते है, हिंदू धर्म में विष्णु के मानस प्रपुत्र तथा सुदर्शन के अवतार और धन और खोए कीर्ति, बल के देवता है।[4][5] पुराणों के अनुसार उन्होंने सात महाद्वीपों एवं ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त कर धर्मपूर्वक 85 हजार वर्षों तक शासन किया।[6][7][8] उन्हें एक हजार हाथ वाले देवता और भगवान दत्तात्रेय नारायण के एक महान भक्त के रूप में वर्णित किया गया है जिनके सामने राक्षस राजा रावण चींटी के समान था।

कार्तवीर्य अर्जुन
पापांतक, खोई हुई वस्तु व धन, वीरता, सुरक्षा के देवता[1]
Member of विष्णु के आवेध, वैकुंठ

सहस्त्रबाहु कार्तविर्य अर्जुन की काल्पनिक छवि।
अन्य नाम अर्जुन, सहस्त्रबाहु अर्जुन, सहस्त्रादित्य, सुदर्शन सहस्रार्जुन।
संबंध स्वयं सुदर्शन चक्र, वैष्णव धर्म
मंत्र ॐ कार्तवीर्याय विद्महे महा-वीर्याय धीमहि तन्नोऽ चक्रअर्जुनः प्रचोदयात्:।।.[2]
अस्त्र धनुष, तलवार, चक्र, त्रिशूल और 996 अन्य
दिवस शुक्रवार
जीवनसाथी मनोरमा (इक्ष्वाकुवंशी राजकुमारी)[3]
माता-पिता
  • महाराज कृतवीर्य (पिता)
  • महारानी पद्मिनी (इक्ष्वकुवंशी राजा हरिशचंद्र की पुत्री) (माता)
संतान
सवारी सूर्य समान रथ।
शास्त्र नारद पुराण, महाभारत, आदि
त्यौहार कार्तिक शुक्ल सप्तमी
हैहय या माहिष्मती साम्राज्य के शासक
पूर्ववर्तीकृतवीर्य
उत्तरवर्ती
  • हैहय साम्राज्य नष्ट हो गया, महर्षि जमदग्नि की हत्या के कारण धरती के सभी अधर्मी क्षत्रिय और कार्तवीर्य अर्जुन के 995 पुत्र भगवान परशुराम द्वारा मारे गए।
  • बाद में आर्यावर्त पर अर्जुन के छोटे बेटे तलंजंग ने विजय प्राप्त की (जो 995 में से परशुराम द्वारा छोड़े गए थे।

[9] हैहयवंशी यदुवंश (अहीर) की ही एक शाखा है||

श्रीमद्भागवत पुराण। 9.23.25 में कहा गया है: "पृथ्वी के अन्य शासक बलिदान, उदार दान, तपस्या, योगिक शक्तियों, विद्वानों के प्रदर्शन के मामले में कार्तवीर्य अर्जुन की बराबरी नहीं कर सकते न भूत न भविष्य।[10] सम्राट अर्जुन की राजधानी माहिष्मति नर्मदा नदी के तट पर थी, जहां पर उन्होंने रावण के अलावा नागों के राजा कार्कोटक नाग को भी हराकर बंदी बना रखा था।

नाम संपादित करें

कार्तवीर्य अर्जुन का मूल नाम अर्जुन था, कार्तवीर्य इन्हें राजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण कहा गया। अन्य नामों में, सहस्रबाहु अर्जुन, सहस्रबाहु कार्तवीर्य या सहस्रार्जुन इन्हें हज़ार हाथों के वरदान के कारण; हैहय वंशाधिपति, हैहय वंश में श्रेष्ठ राजा होने के कारण; माहिष्मति नरेश, माहिष्मति नगरी के राजा; सप्त द्वीपेश्वर, सातों महाद्वीपों के राजा होने के कारण; दशग्रीव जयी, रावण को हराने के कारण और राजराजेश्वर, राजाओं के राजा होने के कारण कहा गया।[उद्धरण चाहिए]

सेना संपादित करें

अर्जुन के पास एक हजार अक्षौहिणी सेनाएं थी। यह भी एक कारण है कि उनका नाम सहस्रबाहु था अर्थात् जिसके पास सहस्त्रबाहु अर्थात सहस्त्र सेनाएं (अक्षौहिणी वर्ग) में हों।[उद्धरण चाहिए]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. VASHISTH, Dr M. H. K. SHASTRI and Pt LAXMI KANT. Remedies through Mantras (अंग्रेज़ी में). Sagar Publications.
  2. VASHISTH, Dr M. H. K. SHASTRI and Pt LAXMI KANT. Remedies through Mantras (अंग्रेज़ी में). Sagar Publications.
  3. Brahmavaivarta Purana Ganesha Khanda (Third Canto) Chapter 34.Verses 6-7, English translation by Shantilal Nagar Parimal Publications Page 643 Link: https://archive.org/details/brahma-vaivarta-puran-gita-press-gorakhpur
  4. Shastri, J. L.; Tagare, Dr G. V. (1 जनवरी 2004). The Narada-Purana Part 1: Ancient Indian Tradition and Mythology Volume 15 (अंग्रेज़ी में). Motilal Banarsidass. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-3882-6.
  5. Books, Kausiki (24 अक्टूबर 2021). Narada Purana Part 3: English Translation only without Slokas (अंग्रेज़ी में). Kausiki Books.
  6. Books, Kausiki (24 अक्टूबर 2021). Padma Purana Srishti Khanda Part 1: English Translation only without Slokas (अंग्रेज़ी में). Kausiki Books.
  7. Söhnen, Renate; Söhnen-Thieme, Renate; Schreiner, Peter (1989). Brahmapurāṇa: Summary of Contents, with Index of Names and Motifs (अंग्रेज़ी में). Otto Harrassowitz Verlag. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-3-447-02960-5.
  8. Vinay, Dr. Matsaya Puran. Diamond Pocket Books (P) Ltd. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-288-0678-0.
  9. Frawley, David (2001). The Rig Veda and the History of India: Rig Veda Bharata Itihasa (अंग्रेज़ी में). Aditya Prakashan. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7742-039-5.
  10. Shastri, J. L.; Tagare, Dr G. V. (1 जनवरी 2004). The Narada-Purana Part 1: Ancient Indian Tradition and Mythology Volume 15 (अंग्रेज़ी में). Motilal Banarsidass. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-208-3882-6.