कुंभेश्वर मंदिर
कुंभेश्वर मंदिर नेपाल में स्थित सबसे पुराने हिंदू मंदिरों में से एक है, जो पाटन दरबार क्षेत्र के उत्तरी भाग से 200 मीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर 14 वीं शताब्दी में राजा जयस्थति मल्ल द्वारा बनाया गया था। यह पाटन का सबसे पुराना मंदिर है। यह नेपाल के दो स्वतंत्र पांच मंजिला मंदिरों में से एक है, दूसरा मंदिर भक्तपुर का प्रसिद्ध न्यातापोला मंदिर है। यह मंदिर अपने सुंदर बनावट और लकड़ी की नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है और भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के द्वार के समक्ष ही भगवान शिव के वाहन नंदी की प्रतीमा है।[1]
कुंभेश्वर मंदिर | |
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कुम्भेश्वर मन्दिर | |
धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | शिव |
त्यौहार | पूर्णिमा, शिवरात्रि, तीज, बाला चतुर्दशी आदि |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | काठमांडू |
ज़िला | ललितपुर जिला (नेपाल) |
राज्य | बागमती |
देश | नेपाल |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | पगोडा |
निर्माता | जयस्थिति मल्ल |
निर्माण पूर्ण | 1392 |
आयाम विवरण | |
मंदिर संख्या | 3 |
स्मारक संख्या | 5 |
मंदिर परिसर
संपादित करेंकुंभेश्वर मंदिर कुंभेश्वर मंदिर परिसर में स्थित है, जहाँ कई अन्य मंदिर भी बने हुए हैं, जिनमें प्रमुख है: बगलामुखी माता को समर्पित मंदिर, उल्मान्त भैरव को समर्पित मंदिर और दो उल्लेखनीय तालाब भी यहाँ स्थित है। यह एक लोकप्रिय धारणा है कि तालाबों को भरने वाला पानी का झरना गोसाईकुंडा से निकलता है, जो काठमांडू से 43 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। इसलिए यहाँ के लोकप्रिय जनै पूर्णिमा के त्योहार के दौरान तालाब में डुबकी लगाने की प्रथा है, ऐसा करना गोसाईकुंडा में डुबकी लगाने के बराबर माना जाता है। लकड़ी की छत के ऊपर बने ऊंचे टीयर को देखने से ऐसा लगता है कि जैसे वे इस पांच मंजिला इमारत पर गिर सकते हैं।[2]
ललितपुर का नाम और कुंभेश्वर के बीच सम्बन्ध
संपादित करेंयहाँ के लोगों के बीच ये कहानी प्रचलित है कि काठमांडू से कुष्ठ रोग से पीड़ित एक किसान यहाँ आया था क्योंकि उसे अपने गाय से बहुत प्रेम था और यहाँ की घास उसकी गाय के लिए लाभकारी थी, ऐसा उसका मानना था। एक दिन उसने अपने लकड़ी के खंभे को जमीन से टकराया, जिससे वहाँ एक जल स्रोत उभर आया। उस शाम को वापस घर जाते समय उसने राजा को वहाँ से गुजरते हुए देखा। वह सड़क से हट गया जैसा कि कुष्ठ रोगी के लिए उस समय प्रथा थी, हालाँकि राजा ने उसमें बीमारी का कोई निशान नहीं देखा। वास्तव में राजा को वह आदमी इतना सुंदर लगा कि उसने उसे एक नया नाम "ललित" दे दिया, जिसका अर्थ है "सुंदर"। उसी समय राजा को पता चला कि एक चमत्कार हुआ है तब उसने इस संदर्भ में ललित से पूछा। ललित ने राजा को वह जगह दिखाई जहाँ उसे जल स्रोत मिला। इसके बाद राजा ने विचार किया कि एक नल को वहाँ लगाया जाना चाहिए। इस तरह इस स्थान को ललितपुर (अर्थात ललित कलाओं और ललित लोगों की भूमि) कहा जाने लगा। एक और कहानी एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है, जिसने तीर्थ यात्रा पर अपना पानी का बर्तन खो दिया और उसने इसे फिर से कुंभेश्वर में पाया। कुंभेश्वर में "कुंभ" शब्द का अर्थ ही है "जल पात्र"।[3]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Kumbheshwor Temple, Kathmandu - Patan". Radha.name. अभिगमन तिथि 2016-12-31.
- ↑ Water Conduits in the Kathmandu Valley (2 vols.) by Raimund O.A. Becker-Ritterspach, ISBN 9788121506908, Published by Munshiram Manoharlal Publishers Pvt. Ltd., New Delhi, India, 1995
- ↑ "Kumbeshwar Temple Complex in Patan City". Thelongestwayhome.com. 2016-06-20. अभिगमन तिथि 2016-12-31.