खाद्य शृंखला

पारिस्थितिक तन्त्र का पहलू

खाद्य शृंखला या आहार शृंखला स्वपोषित जीवों (जैसे घास या शैवाल जो प्रकाश-संश्लेषण के माध्यम से अपने स्वयं के लिए भोजन उत्पादित करते हैं) से आरम्भ होने वाले और एक शीर्ष परभक्षियों (जैसे भूरा भालू या हत्यारा तिमि) पर समाप्त होने वाले आहार जाल में कड़ियों का एक रैखिक संजाल है। भूकृमि या काष्ठोत्कुण, या अपघटक प्रजातियाँ (जैसे कवक या जीवाणु)। खाद्य शृंखला का प्रत्येक चरण अथवा कड़ी एक पोषी स्तर बनाते हैं। स्वपोषी अथवा उत्पादक प्रथम पोषी स्तर हैं तथा सौर ऊर्जा का स्थिरीकरण करके उसे परपोषियों अथवा उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कराते हैं। शाकाहारी अथवा प्राथमिक उपभोक्ता द्वितीय पोषी स्तर; लघु मांसाहारी अथवा द्वितीय उपभोक्ता तृतीय पोषी स्तर; तथा शीर्ष मांसाहारी अथवा तृतीय उपभोक्ता चतुर्थ पोषी स्तर निर्मित करते हैं।

खाद्य शृंखला को प्रदर्शित करता एक चित्र
खाद्य शृंखला: क्लोरोगोनियम यूक्लोरम, एनास्पिड्स तस्मानिया, एल्बर्नस अल्बर्नस, पर्च, एसोक्स ल्यूसियस, पांडियन हलियेटस

सभी प्रकाश संश्लेषण करने वाले पौधे उत्पादक की श्रेणी में आते हैं। ऐसे पौधे प्रकाश, कार्बन डाइ-ऑक्साइड और जल की सहायता से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया हेतु पौधों का क्लोरोफिल (हरित लवक) पाया जाता है। क्लोरोफिल पौधों के हरे रंग के लिए भी उत्तरदायी होता है।

उपभोक्ता

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सभी जन्तु उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर निर्भर होने के कारण इन्हें उपभोक्ता कहा जाता है। भोज्य निर्भरता के आधार पर इन्हें आगे श्रेणियों में बाँटा गया है।

प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता

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सभी शाकाहारी जन्तु प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता होते हैं। शाकाहारी जन्तु वनस्पतियों का भोजन के रूप में प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए - खरगोश, गाय, भैस, बकरी, हिरण, चूहा, बन्दर, हाथी, जिराफ, नीलगाय आदि।

द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता

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वे सभी जन्तु जो भोजन के लिए प्रथम श्रेणी के उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं उन्हें द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं के वर्ग में रखते हैं। ये मांसाहारी होते हैं। उदारण के लिए - मेढक, मछलियाँ, कीट पतंगों को खाने वाले पक्षी और जन्तु, छिपकली इत्यादि।

तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता

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वे सभी जन्तु जो भोजन के लिए द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं पर निर्भर होते हैं उन्हें शीर्ष श्रेणी के उपभोक्ता कहते हैं। जैसे - बाज, गिद्ध, शेर, भालू इत्यादि।

अपघटक सूक्ष्म जीव होते हैं जो कि सभी मृत जीवों (वनस्पतियों और जन्तुओं) को उनके पार्थिव अवयवों में तोड़ देते हैं। अपघटन की प्रक्रिया मृत्यु के बाद शुरू हो जाती है जिसे सामान्य तौर पर सड़ने के तौर पर देखा जाता है।

 

वाह्य कड़ियाँ

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