गजानन माधव मुक्तिबोध
गजानन माधव मुक्तिबोध (१३ नवंबर १९१७ - ११ सितंबर १९६४) हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, निबंधकार, कहानीकार तथा उपन्यासकार थे। उन्हें प्रगतिशील कविता और नयी कविता के बीच का एक सेतु भी माना जाता है।
गजानन माधव मुक्तिबोध | |
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जन्म | 13 नवम्बर 1917 श्योपुर, मध्य प्रांत और बरार (present-day चंबल संभाग, मध्य प्रदेश) |
मौत | 11 सितम्बर 1964 भोपाल, भारत | (उम्र 46 वर्ष)
पेशा | लेखक, कवि, निबंधकार, साहित्यिक आलोचक, राजनीतिक आलोचक |
जीवन परिचय
संपादित करेंपूर्वज
संपादित करेंमुक्तिबोध के पूर्वज महाराष्ट्र के जलगाँव (खानदेश) के निवासी थे। उनके परदादा वासुदेवजी उन्नीसवीं सदी के आरंभ में महाराष्ट्र छोड़कर ग्वालियर (मध्यप्रदेश) के मुरैना जिला में पड़ने वाले श्योपुर नामक कस्बे में आ बसे थे।[1] वासुदेव के पुत्र गोपालराव वासुदेव ग्वालियर राज्य के टोंक (राजस्थान) जिला में कार्यालय अधीक्षक थे। उन्हें फारसी की अच्छी जानकारी थी, इस कारण लोग उन्हें ‘मुंशी’ कहकर भी बुलाते थे। उनकी नौकरी जिस गाँव में होती, वे महीना दो महीना वहाँ रह आते और मेवा-मिठाई से अपना सत्कार कराए बिना प्रसन्न न होते थे। गोपालराव के इकलौते पुत्र थे- माधवराव मुक्तिबोध। माधवरावजी केवल मिडिल तक शिक्षित थे, लेकिन पिता की तरह वे भी अच्छी फारसी जानते थे। धर्म और दर्शन में भी उनकी गहरी रुचि थी। वे कोतवाल थे। उज्जैन की सेंट्रल कोतवाली, जिसकी दूसरी मंजिल पर माधवरावजी का आवास था, सर सेठ हुकुमचंद का महल था। वहाँ सुख सुविधा की कोई कमी नहीं थी। माधवरावजी कर्तव्यपरायण और न्यायनिष्ठ व्यक्ति थे। पुलिस विभाग में रहकर भी उन्होंने हमेशा परले दर्जे की ईमानदारी का ही परिचय दिया। वे महात्मा गाँधी के प्रसंशक थे और लोकमान्य तिलक के पत्र 'केसरी' के ग्राहक थे। वे बहुत अच्छे कथावाचक और दैनिन्दनी लेखक भी थे। उनका निधन मुक्तिबोध की मृत्यु के दिन ही हुआ।[2]
- माधवराव की पत्नी एवं मुक्तिबोध की माँ पार्वतीबाई ईसागढ़ (बुंदेलखंड, शिवपुरी) के एक समृद्ध किसान-परिवार की थीं। वे छठी कक्षा तक शिक्षित थीं। वे भावुक और स्वाभिमानी थीं। हिंदी के प्रेमचंद और मराठी के हरिनारायण आप्टे उनके प्रिय लेखक थे। मुक्तिबोध के निधन के कुछ ही समय बाद इनका भी देहांत हो गया था।
आरंभिक जीवन
संपादित करेंमुक्तिबोध का जन्म 13 नवम्बर, 1917 को रात २ बजे श्योपुर में माधवराव-पार्वती दंपत्ति के घर हुआ। शिशु का पूरा नाम रखा गया- गजानन माधव मुक्तिबोध। वे माता-पिता की तीसरी संतान थे। उनसे पहले के दोनों सिशु अधिक जीवित नहीं रह सके थे। इस कारण मुक्तिबोध के लालन-पालन और देख-भाल पर अधिक ध्यान दिया गया। उन्हें खूब स्नेह और ठाठ मिला। शाम को उन्हें बाबागाड़ी में हवा खिलाने के लिए बाहर ले जाता। सात-आठ की उम्र तक अर्दली ही उन्हें कपड़े पहनाते थे। उनकी सभी ज़रूरतो का ध्यान रखा जाता रहा, उनकी हर माँग पूरी की जाती रही। उन्हें घर में ‘बाबूसाहब’ कहकर पुकारा जाता था। वे परीक्षा में सफल होते तो घर में उत्सव मनाया जाता था। इस अतिरिक्त लाड़-प्यार और राजसी ठाट-बाट में पला बालक हठी और जिद्दी हो गया।[3]
शिक्षा
संपादित करेंइनके पिता पुलिस विभाग के इंस्पेक्टर थे। अक्सर उनका तबादला होता रहता था। इसीलिए मुक्तिबोध की पढाई में बाधा पड़ती रहती थी। सन १९३० में मुक्तिबोध ने मिडिल की परीक्षा, उज्जैन से दी और फेल हो गए। कवि ने इस असफलता को अपने जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने १९५३ में साहित्य रचना का कार्य प्रारम्भ किया और सन १९३९ में इन्होने शांता जी से प्रेम विवाह किया। १९४२ के आस-पास वे वामपंथी विचारधारा की ओर झुके तथा शुजालपुर में रहते हुए उनकी वामपंथी चेतना मजबूत हुई।[4] मुक्तिबोध अस्तित्ववादी विचारधारा के समर्थक थे।
साहित्यिक जीवन
संपादित करेंमुक्तिबोध तारसप्तक के पहले कवि थे। मनुष्य की अस्मिता, आत्मसंघर्ष और प्रखर राजनैतिक चेतना से समृद्ध उनकी कविता पहली बार 'तार सप्तक' के माध्यम से सामने आई, लेकिन उनका कोई स्वतंत्र काव्य-संग्रह उनके जीवनकाल में प्रकाशित नहीं हो पाया। मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा ने उनकी केवल 'एक साहित्यिक की डायरी' प्रकाशित की थी, जिसका दूसरा संस्करण भारतीय ज्ञानपीठ से उनकी मृत्यु के दो महीने बाद प्रकाशित हुआ। ज्ञानपीठ ने ही 'चाँद का मुँह टेढ़ा है' प्रकाशित किया था। इसी वर्ष नवंबर १९६४ में नागपुर के विश्वभारती प्रकाशन ने मुक्तिबोध द्वारा १९६३ में ही तैयार कर दिये गये निबंधों के संकलन नयी कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध' को प्रकाशित किया था। परवर्ती वर्षो में भारतीय ज्ञानपीठ से मुक्तिबोध के अन्य संकलन 'काठ का सपना', तथा 'विपात्र' (लघु उपन्यास) प्रकाशित हुए। पहले कविता संकलन के १५ वर्ष बाद, १९८० में उनकी कविताओं का दूसरा संकलन 'भूरी भूर खाक धूल' प्रकाशित हुआ और १९८५ में 'राजकमल' से पेपरबैक में छ: खंडों में 'मुक्तिबोध रचनावली' प्रकाशित हुई, वह हिंदी के इधर के लेखकों की सबसे तेजी से बिकने वाली रचनावली मानी जाती है। कविता के साथ-साथ, कविता विषयक चिंतन और आलोचना पद्धति को विकसित और समृद्ध करने में भी मुक्तिबोध का योगदान अन्यतम है। उनके चिंतन परक ग्रंथ हैं- एक साहित्यिक की डायरी, नयी कविता का आत्मसंघर्ष और नये साहित्य का सौंदर्य शास्त्र। भारत का इतिहास और संस्कृति इतिहास लिखी गई उनकी पुस्तक है। काठ का सपना तथा सतह से उठता आदमी उनके कहानी संग्रह हैं तथा विपात्रा उपन्यास है। उन्होंने 'वसुधा', 'नया खून' आदि पत्रों में संपादन-सहयोग भी किया।
ग्रंथानुक्रमणिका
संपादित करें- चाँद का मुँह टेढ़ा है – (कविता संग्रह), 1964, भारतीय ज्ञानपीठ.
- नई कविता का आत्मसंघर्ष तथा अन्य निबंध (निबंध संग्रह), 1964, विश्वभारती प्रकाशन.
- एक साहित्यिक की डायरी (निबंध संग्रह), 1964, भारतीय ज्ञानपीठ.
- काठ का सपना (कहानी संग्रह), 1967, भारतीय ज्ञानपीठ.
- विपात्र (उपन्यास), 1970, भारतीय ज्ञानपीठ.
- नये साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, 1971, राधाकृष्ण प्रकाशन.
- सतह से उठता आदमी (कहानी संग्रह), 1971, भारतीय ज्ञानपीठ
- कामायनी: एक पुनर्विचार, 1973, साहित्य भारती.
- भूरी-भूरी खाक धूल – (कविता संग्रह), 1980, नई दिल्ली, राजकमल प्रकाशन.
- मुक्तिबोध रचनावली, नेमिचंद्र जैन द्वारा संपादित, (6 खंड), 1980, राजकमल प्रकाशन.
- समीक्षा की समस्याएं, 1982, राजकमल प्रकाशन.
प्रमुख कहानियां
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ (नंद किशोर नवल २००८, p. ९) नवल, नंद किशोर (२००८). मुक्तिबोध. नयी दिल्ली: साहित्य अकादमी.
- ↑ (नंद किशोर नवल २००८, p. १०)
- ↑ (नंद किशोर नवल २००८, p. ११)
- ↑ मुक्तिबोध, गजानन माधव (2004 संस्करण). चांद का मुंह टेढ़ा है. नयी दिल्ली: भारतीय ज्ञानपीठ. पपृ॰ 16–17. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8126308239
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