गढ़वाल रियासत
गढ़वाल राज्य (अंग्रेज़ी: Garhwal Kingdom)[1] वर्तमान उत्तराखंड, भारत के विस्तार-क्षेत्र के पश्चिमी हिस्से वाले इलाके में पुराने समय में एक राज्य था यह 1358 ई. में स्थापित एक राजसी राज्य था जिस पर गोरखाओं द्वारा 1803 में कब्जा कर लिया गया था। एंग्लो नेपाली युद्ध और 1815 की सुगौली की संधि के बाद एक छोटे टिहरी गढ़वाल राज्य के गठन के साथ गढ़वाल राज्य को बहाल कर दिया गया, जोकि 1949 में भारत में सम्मिलित कर लिया गया।[1]
गढ़वाल का साम्राज्य (688-1804 सीई) टिहरी गढ़वाल की रियासत (1816-1947 सीई) | |||||
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ध्वज | |||||
संयुक्त प्रान्त के मानचित्र पर गढ़वाल का स्थान
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राजधानी |
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भाषाएँ | गढ़वाली, संस्कृत | ||||
शासन | राजशाही रजवाड़ा (1815–1949) | ||||
इतिहास | |||||
- | स्थापित | 888 | |||
- | अंत | 1949 | |||
आज इन देशों का हिस्सा है: | उत्तराखण्ड, भारत | ||||
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इतिहास
संपादित करेंपरंपरागत रूप से इस क्षेत्र का केदारखंड के रूप में विभिन्न हिंदू ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। गढ़वाल राज्य क्षत्रियों का राज था। दूसरी शताब्दी ई.पू. के आसपास कुनिंदा राज्य भी विकसित हुआ। बाद में यह क्षेत्र कत्युरी राजाओं के अधीन रहा, जिन्होंने कत्युर घाटी, बैजनाथ, उत्तराखंड से कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में 6 वीं शताब्दी ई. से 11 वीं शताब्दी ई. तक राज किया, बाद में चंद राजाओं ने कुमाऊं में राज करना शुरू किया, उसी दौरान गढ़वाल कई छोटी रियासतों में बाँट गया, ह्वेनसांग, नामक चीनी यात्री, जिसने 629 ई. के आसपास क्षेत्र का दौरा किया था, ने इस क्षेत्र में ब्रह्मपुर नामक राज्य का उल्लेख किया है।
888 ई से पहले पूरा गढ़वाल क्षेत्र अलग अलग स्वतंत्र राजाओं द्वारा शासित छोटे छोटे गढ़ों में विभाजित था । जिनके शासकों को राणा , राय और ठाकुर कहा जाता था । ऐसा कहा जाता है कि 823 ई. में जब मालवा के राजकुमार कनकपाल श्री बदरीनाथ जी के दर्शन को आये। वहां उनकी भेंट तत्कालीन राजा भानुप्रताप से हुई । राजा भानुप्रताप ने राज कुमार कनक पाल से प्रभावित होकर अपनी एक मात्र पुत्री का विवाह उनके साथ तय कर दिया और अपना सारा राज्य उन्हें सौंप दिया । धीरे धीरे कनक पाल एवं उनके वंशजों ने सरे गढ़ों पर विजय प्राप्त कर साम्राज्य का विस्तार किया। इस प्रकार 1803 तक अर्थात 915 वर्षों तक समस्त गढ़वाल क्षेत्र इनके आधीन रहा।
1794-95 के दौरान गढ़वाल क्षेत्र गंभीर अकाल से ग्रस्त रहा तथा पुनः 1883 में यह क्षेत्र भयानक भूकंप से त्रस्त रहा। तब तक गोरखाओं ने इस क्षेत्र पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था और इस क्षेत्र पर उनके प्रभाव की शुरुवात हुयी । सन 1803 में उन्होंने पुनः गढ़वाल क्षेत्र पर महाराजा प्रद्युम्न शाह के शासन काल में आक्रमण किया । महाराजा प्रद्युम्न शाह देहरादून में गौरखाओं से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए परन्तु उनके एक मात्र नाबालिग पुत्र सुदर्शन शाह को उनके विश्वासपात्र राजदरबारियों ने चालाकी से बचा लिया । इस लड़ाई के पश्चात गोरखाओं की विजय के साथ ही उनका अधिराज्य गढ़वाल क्षेत्र में स्थापित हुआ। इसके पश्चात उनका राज्य कांगड़ा तक फैला और उन्होंने यहाँ 12 वर्षों तक राज्य किया जब तक कि उन्हें महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा कांगड़ा से बाहर नहीं निकाल दिया गया । वहीँ दूसरी ओर सुदर्शन शाह ईस्ट इंडिया कम्पनी से मदद का प्रबंध करने लगे ताकि गोरखाओं से अपने राज्य को मुक्त करा सकें । ईस्ट इंडिया कम्पनी ने कुमाउं, देहरादून एवं पूर्वी गढ़वाल का एक साथ ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर दिया तथा पश्चिमी गढ़वाल को राजा सुदर्शन शाह को सौंप दिया जो टिहरी रियासत के नाम से जाना गया।
महाराजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी टिहरी नगर में स्थापित की तथा इसके पश्चात उनके उत्तराधिकारियों प्रताप शाह, कीर्ति शाह तथा नरेन्द्र शाह ने अपनी राजधानी क्रमशः प्रताप नगर , कीर्ति नगर एवं नरेंद नगर में स्थापित की । इनके वंशजों ने इस क्षेत्र में 1815 से 1949 तक शासन किया। भारत छोड़ो आन्दोलन के समय इस क्षेत्र के लोगों ने सक्रिय रूप से भारत की आजादी के लिए बढ़ चढ़ कर भाग लिया और अन्त में जब देश को 1947 में आजादी मिली टिहरी रियासत के निवासियों ने स्वतंत्र भारत में विलय के लिए आन्दोलन किया। इस आन्दोलन के कारण परिस्थियाँ महाराजा के वश में नहीं रहीं और उनके लिए शासन करना कठिन हो गया जिसके फलस्वरूप पंवार वंश के शासक महाराजा मानवेन्द्र शाह ने भारत सरकार की सम्प्रभुता स्वीकार कर ली। अन्ततः सन 1949 में टिहरी रियासत का भारत में विलय हो गया। इसके पश्चात टिहरी को उत्तर प्रदेश के एक नए जनपद का दर्जा दिया गया।
गढ़वाल के शासक
संपादित करें१८वीं शताब्दी के चित्रकार, कवि, राजनयिक और इतिहासकार मौला राम ने "गढ़राजवंश का इतिहास" लिखा है। गढ़वाल के शासकों के बारे में यही एकमात्र स्रोत है।
क्रमांक | नाम | शासनकाल | क्रमांक | नाम | शासनकाल | क्रमांक | नाम | शासनकाल | ||
1 | कनक पाल | 688–699 | 21 | विक्रम पाल | 1116–1131 | 41 | विजय पाल | 1426–1437 | ||
2 | श्याम पाल | 699–725 | 22 | विचित्र पाल | 1131–1140 | 42 | सहज पाल | 1437–1473 | ||
3 | पाण्डु पाल | 725–756 | 23 | हंस पाल | 1141–1152 | 43 | बहादुर शाह | 1473–1498 | ||
4 | अभिजात पाल | 756–780 | 24 | सोम पाल | 1152–1159 | 44 | मान शाह | 1498–1518 | ||
5 | सौगत पाल | 781–800 | 25 | कादिल पाल | 1159–1164 | 45 | श्याम शाह | 1518–1527 | ||
6 | रत्ना पाल | 800–849 | 26 | कामदेव पाल | 1172–1179 | 46 | महिपत शाह | 1527–1552 | ||
7 | शाली पाल | 850–857 | 27 | सुलक्षण देव | 1179–1197 | 47 | पृथ्वी शाह | 1552–1614 | ||
8 | विधि पाल | 858–877 | 28 | लखन देव | 1197–1220 | 48 | मेदिनी शाह | 1614–1660 | ||
9 | मदन पाल | 788–894 | 29 | आनंद पाल II | 1220–1241 | 49 | फतेह शाह | 1660–1708 | ||
10 | भक्ति पाल | 895–919 | 30 | पूर्वा देव | 1241–1260 | 50 | उपेंद्र शाह | 1708–1709 | ||
11 | जयचंद पाल | 920–948 | 31 | अभय देव | 1260–1267 | 51 | प्रदीप शाह | 1709–1772 | ||
12 | पृथ्वी पाल | 949–971 | 32 | जयराम देव | 1267–1290 | 52 | ललित शाह | 1772–1780 | ||
13 | मेदिनीसेन पाल | 973–995 | 33 | असल देव | 1290–1299 | 53 | जयकृत शाह | 1780–1786 | ||
14 | अगस्ती पाल | 995–1014 | 34 | जगत पाल | 1299–1311 | 54 | प्रद्युम्न शाह | 1786–1804 | ||
15 | सुरती पाल | 1015–1036 | 35 | जित पाल | 1311–1330 | 55 | सुदर्शन शाह | 1815–1859 | ||
16 | जय पाल | 1037–1055 | 36 | अनंत पाल II | 1330–1358 | 56 | भवानी शाह | 1859–1871 | ||
17 | अनंत पाल I | 1056–1072 | 37 | अजय पाल | 1358–1389 | 57 | प्रताप शाह | 1871–1886 | ||
18 | अनंत पाल I | 1072–1083 | 38 | कल्याण शाह | 1389–1398 | 58 | कीर्ति शाह | 1886–1913 | ||
19 | विभोग पाल | 1084–1101 | 39 | सुन्दर पाल | 1398–1413 | 59 | नरेन्द्र शाह | 1913–1946 | ||
20 | सुवायनु पाल | 1102–1115 | 40 | हंसदेव पाल | 1413–1426 | 60 | मानवेन्द्र शाह | 1946–1949 |
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ इ "Garhwal Kingdom", Wikipedia (अंग्रेज़ी में), 2022-05-31, अभिगमन तिथि 2022-05-31