कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन कार्यकर्ता, राजनेता, लेखक और शिक्षाविद
(गुजरातनो नाथ से अनुप्रेषित)

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी (२९ दिसंबर, १८८७ - ८ फरवरी, १९७१) भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, राजनेता, गुजराती एवं हिन्दी के ख्यातनाम साहित्यकार तथा शिक्षाविद थे। उन्होने भारतीय विद्या भवन की स्थापना की।

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी

६० के दशक के आरम्भिक काल में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
जन्म 30 दिसम्बर 1887
भरूच
मौत 8 फ़रवरी 1971(1971-02-08) (उम्र 83 वर्ष)
मुम्बई
शिक्षा की जगह बडोदरा कॉलेज[1]
पेशा स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, वकील, लेखक
प्रसिद्धि का कारण भारतीय विद्या भवन के संस्थापक(1938)
बॉम्बे स्टेट के गृहमंत्री (1937–40)
हैदराबाद राज्य के एजेन्ट-जनरल (1948)
भारतीय संविधान सभा के सदस्य
संसद सदस्य
कृषि एवं खाद्य मंत्री (1952–53)
राजनैतिक पार्टी स्वराज पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, स्वतंत्र पार्टी, जन संघ
जीवनसाथी अतिलक्ष्मी पाठक (वि॰ 1900; her death 1924), लीलावती सेठ (वि॰ 1926)
बच्चे जगदीश मुंशी, सरला सेठ, उषा रघुपति, लता मुंशी, गिरीश मुंशी

कन्हैयालाल मुंशी का जन्म बॉम्बे राज्य, (वर्तमान में गुजरात) राज्य के उच्च सुशिक्षित भागर्व ब्राह्मण परिवार में हुआ था। एक प्रतिभावान विद्यार्थी के तौर पर मुंशी ने कानून की पढ़ाई की। विधि स्नातक के पश्चात उन्होंने मुंबई में वकालत की। एक पत्रकार के रूप में भी वे सफल रहे। गांधी जी के साथ १९१५ में यंग इंडिया के सह-संपादक बने। कई अन्य मासिक पत्रिकाओं का संपादन किया। उन्होंने गुजराती साहित्य परिषद में प्रमुख स्थान पाया और अपने कुछ मित्रों के साथ १९३८ के अंत में भारतीय विद्या भवन की स्थापना की।[2] वे हिन्दी में ऐतिहासिक और पौराणिक उपन्यास व कहानी लेखक के रूप में तो प्रसिद्ध हैं ही, उन्होंने प्रेमचंद के साथ हंस का संपादन दायित्व भी संभाला। १९५२ से १९५७ तक वे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे। वकील, मंत्री, कुलपति और राज्यपाल जैसे प्रमुख पदों पर कार्य करते हुए भी उन्होंने ५० से अधिक पुस्तकें लिखीं। इनमें उपन्यास, कहानी, नाटक, इतिहास, ललित कलाएँ आदि विषय शामिल हैं। १९५६ में उन्होंने अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता भी की।

कन्हैयालाल जी स्वतंत्राता सेनानी थे, बंबई प्रांत और केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री थे, राज्यपाल रहे, अधिवक्ता थे, लेकिन उनका नाम सर्वोपरि भारतीय विद्या भवन के संस्थापक के रूप में ख्यात है। 7 नवंबर, 1938 को भारतीय विद्या भवन की स्थापना के समय उन्होंने एक ऐसे स्वप्न की चर्चा की थी जिसका प्रतिफल यह भा.वि.भ. होता- यह स्वप्न था वैसे केन्द्र की स्थापना का, ‘जहाँ इस देश का प्राचीन ज्ञान और आधुनिक बौद्धिक आकांक्षाएँ मिलकर एक नए साहित्य, नए इतिहास और नई संस्कृति को जन्म दे सकें।’ कन्हैयालाल जी जड़ता के विरोधी और नवीनता के पोषक थे। उनकी नजर में ‘भारतीय संस्कृति कोई जड़ वस्तु नहीं थी।’ वे भारतीय संस्कृति को ‘चिंतन का एक सतत प्रवाह’ मानते थे। वे इस विचार के पोषक थे कि अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी हमें बाहर की हवा का निषेध नहीं करना चाहिए। वे अपनी लेखनी में भी सांस्कृतिक पुनर्जागरण की बात कहते रहते थे।

वे गुजराती और अँग्रेजी के अच्छे लेखक थे, लेकिन राष्ट्रीय हित में हमेशा हिंदी के पक्षधर रहे। उन्होंने ‘हंस’ पत्रिका के संपादन में प्रेमचंद का सहयोग किया। वे राष्ट्रीय शिक्षा के समर्थक थे। वे पश्चिमी शिक्षा के अंधानुकरण का विरोध करते थे। मंत्री के रूप में उनका एक महत्वपूर्ण कार्य रहा - वन महोत्सव आरंभ करना। वृक्षारोपण के प्रति वे काफी गंभीर थे। मुन्शी जी वस्तुतः और मूलतः भारतीय संस्कृति के दूत थे। सांस्कृतिक एकीकरण के बिना उनकी नजर में किसी भी सामाजिक-राजनीतिक कार्यक्रम का कोई महत्व नहीं था।

प्रमुख कार्य

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भारतीय डाक टिकट पर कनैयालाल मुंशी

साहित्यिक कृतियाँ

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उनकी कुछ प्रमुख रचनाएँ नीचे दी गयीं हैं-


इनके अतिरिक्त निम्नलिखित कृतियाँ अंग्रेजी में हैं-

  1. "IndianPost – KANHAIYALAL M MUNSHI". indianpost.com. indianpost.com. मूल से 1 अप्रैल 2023 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अक्टूबर 2018.
  2. "Kulapati K.M. Munshi" (अंग्रेज़ी में). लाइव इंडिया.कॉम. मूल (एचटीएमएल) से 17 जून 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 मार्च 2008. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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