गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति है। सनातन संस्कृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों में गुरु मे गु का अर्थ अन्धकार या अज्ञान और रू का अर्थ प्रकाश (अन्धकार का निरोधक) । अर्थात् अज्ञान को हटा कर प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता हैं। गुरू की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार होता है गुरू की कृपा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है ।[3] आदिगुरु परमेश्वर शिव दक्षिणामूर्ति रूप में समस्त ऋषि मुनि को शिष्यके रूप शिवज्ञान प्रदान किया था। उनके स्मरण रखते हुए गुरुपूर्णिमा मानाया याता है। गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों। इसको भारत, नेपाल और भूटान में हिन्दू, जैन और बोद्ध धर्म के अनुयायी उत्सव के रूप में मनाते हैं। यह पर्व हिन्दू, बौद्ध और जैन अपने आध्यात्मिक शिक्षकों / अधिनायकों के सम्मान और उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के हिन्दू माह आषाढ़ की पूर्णिमा (जून-जुलाई) मनाया जाता है।[4][5] इस उत्सव को महात्मा गांधी ने अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचन्द्र सम्मान देने के लिए पुनर्जीवित किया।[6] ऐसा भी माना जाता है कि व्यास पूर्णिमा वेदव्यास के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
गुरु पूर्णिमा | |
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चित्र:Shukracharya and Kacha.jpg एक शिष्य को आशीर्वाद देते गुरु | |
आधिकारिक नाम | गुरु पूर्णिमा (ग्रीष्मकाल के पूर्ण चाँद के दिन गुरु पूजा) |
अनुयायी | जैन, हिन्दू भक्त & भारत के बौद्ध भिक्षु |
उद्देश्य | आध्यात्मिक गुरु के लिए कृतज्ञता व्यक्त करना[1] |
उत्सव | गुरु पूजा और मंदिर में जाना[2] |
अनुष्ठान | गुरु पूजा |
तिथि | आषाढ़ पूर्णिमा (शुक्ल पक्ष, पूर्ण चाँद का चमकिल चन्द्र पक्ष) (जून–जुलाई) |
आवृत्ति | वार्षिक |
[7] भारत के मध्यप्रदेश राज्य के होशंगाबाद जिले की तहसील सिवनी मालवा में सदी के सबसे महान दार्शनिक अध्यात्म के स्वामी ज्ञान के सागर आचार्य रजनीश का पुनर्जन्म कोरी बुनकर समाज में हुआ है जिनका नाम पूरा नाम ( हरीश कोरी ) प्रोफेसर हनीश ओशो है जिनको अनेकों नाम से जाना जाता है| हरीश, हर्ष, काशी के पंडा, पंडित जी देवानंद, आदि नामों से जाना जाता है |
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरुपूजन का विधान है | शिष्य अपने गुरु की प्रत्यक्ष या उनके चरण पादुका की चन्दन , धूप , दीप , नैवेद्य द्वारा पूजा करते हैं | इस दिन अपने गुरु द्वारा प्रदत मंत्र का जप करने का विधान है |[8]
पर्व
संपादित करेंआषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।[9]
हिंदू सनातन शास्त्र के अनुसार, इस तिथि पर परमेश्वर शिव ने दक्षिणामूर्ति का रूप धारण किया और ब्रह्मा के चार मानसपुत्रों को वेदों का अंतिम ज्ञान प्रदान किया। इसके अलावा,
यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी है। वे संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उनका एक नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्तिकाल के संत घीसादास का भी जन्म इसी दिन हुआ था वे कबीरदास के शिष्य थे।[10]
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का का अर्थ किया गया है- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका से निवारण कर देता है।[11] अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को 'गुरु' कहा जाता है।
- "अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया, चकच्छू: मिलिटम येन तस्मै श्री गुरुवै नमः "
गुरु तथा देवता में समानता के लिए एक श्लोक में कहा गया है कि जैसी भक्ति की आवश्यकता देवता के लिए है वैसी ही गुरु के लिए भी। [क] बल्कि सद्गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार भी संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। [ख]
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है।[12] इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं। ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं। जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।[13]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Guru Purnima India: Date, Story, Quotes, Importance, Special Messages". SA News. अभिगमन तिथि 23 जुलाई 2021.
- ↑ "Guru Purnima 2020: Know Why We Celebrate Guru Purnima". NDTV.com. अभिगमन तिथि 2020-07-03.
- ↑ Bhanwar Singh, Thada (2023-07-16). "गुरू पूर्णिमा 2024 : गुरु के चरणों में सर्वस्व अर्पण से मिलता है गुरु का आशीर्वाद". Sanatan (अंग्रेज़ी में). मूल से 10 जुलाई 2024 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2024-07-10.
- ↑ "गुरु पूर्णिमा - Guru Purnima".
- ↑ "Guru Poornima (Vyas Puja)" [गुरु पूर्णिमा (व्यास पूजा)] (अंग्रेज़ी में). Sanatan.org. मूल से 24 जनवरी 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 जुलाई 2020.
- ↑ थॉमस वेबर (2 दिसम्बर 2004). Gandhi as Disciple and Mentor [गुरु और शिष्य के रूप में गांधी]. कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस. पपृ॰ 34–36. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-139-45657-9.
- ↑ "Guru Purnima 2019: Date, Time and Significance of Vyasa Purnima" [गुरु पूर्णिमा २०१९: व्यास पूर्णिमा का दिन, समय और महत्त्व]. न्यूज़ 18 (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2020-08-03.
- ↑ "Guru Purnima 2024: Meaning , Date , Significance (Importance) , Puja , Vrat , Katha & Vidhi".
- ↑ "गुरु पूर्णिमा पर विशेष". अमर उजाला. मूल (एएसपी) से 27 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2007.
- ↑ "भक्तिकाल के सन्त घीसादास". सृजनगाथा. मूल (एचटीएम) से 16 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2007.
- ↑ "गुरु की महिमा". वेब दुनिया. मूल (एचटीएम) से 8 नवंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2007.
- ↑ "जाने गुरु पूर्णिमा का महत्व, गुरु पूर्णिमा से जुड़े हर सवाल का जवाब". प्रभात खबर. अभिगमन तिथि २२ जुलाई २०२४.
- ↑ "गुरु पूर्णिमा पर विशेष". अमर उजाला. मूल (एएसपी) से 27 सितंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अगस्त 2007.