गुलबर्ग किला

बहमनी साम्राज्य
(गुलबर्गा किला से अनुप्रेषित)

गुलबर्ग किला उत्तर कर्नाटक के गुलबर्ग जिले में गुलबर्ग शहर में स्थित है। मूल रूप से इसका निर्माण वारंगल राजवंश के राज में राजा गुलचंद ने करवाया था। इसके बाद सन् 1347 में बहमनी राजवंश के अलाउद्दीन बहमन शाह ने दिल्ली सल्तनत के साथ संबंधों को तोड़ने के बाद इसे काफ़ी बड़ा करवाया था। बाद में किले के भीतर मस्जिदों, महलों, कब्रों जैसे इस्लामी स्मारकों और अन्य संरचनाओं का निर्माण हुआ। 1367 में किले के भीतर बनाया गया सभी ओर से बंद जामा मस्जिद मनोहर गुंबदों और मेहराबदार स्तंभों सहित फ़ारसी वास्तु शैली में निर्मित एक अद्वितीय संरचना है। यह 1327 से 1424 के बीच गुलबर्ग किले पर बहमनी शासन की स्थापना के उपलक्ष्य में बनाया गया था। यह 1424 तक बहमनी राज्य की राजधानी रहा, जिसके बाद बेहतर जलवायु परिस्थितियों के कारण राजधानी बीदर किले में ले जाई गयी।[1][2][3]

गुलबर्ग किला
गुलबर्ग का भाग
गुलबर्ग, भारत
गुलबर्ग किला
गुलबर्ग किले में जामी मस्जिद
गुलबर्ग किला is located in कर्नाटक
गुलबर्ग किला
गुलबर्ग किला
निर्देशांक17°20′26″N 76°49′52″E / 17.3405°N 76.8311°E / 17.3405; 76.8311निर्देशांक: 17°20′26″N 76°49′52″E / 17.3405°N 76.8311°E / 17.3405; 76.8311 [1]
प्रकारकिला
स्थल जानकारी
नियंत्रककर्नाटक सरकार
जनप्रवेशहाँ
दशाखंडहर
स्थल इतिहास
निर्मितचौदहवीं शताब्दी
निर्माताराजा गुलचंद, 1327 में बहमनी सल्तनत के सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह और आदिल शाह
सामग्रीग्रेनाइट और चूने का गारा

इतिहास संपादित करें

छठी शताब्दी में क्षेत्र पर राष्ट्रकूट साम्राज्य का शासन था। इसके बाद चालुक्य साम्राज्य ने क्षेत्र वापस जीत लिया दो शताब्दियों से अधिक समय तक शासन किया। इसके बाद कलचुरि राजवंश ने इसपर कब्ज़ा कर लिया और बारहवीं शताब्दी तक उनका कब्ज़ा रहा। बारहवीं शताब्दी के अंत में यह देवगिरी के यादवों और हालेबिदु के होयसल राजवंश के शासन में रहा। इस समय के दौरान वारंगल के शासक काकतीय वंश भी शक्तिशाली थे और उन्होंने गुलबर्ग जिले और रायचूड़ जिले पर कब्ज़ा का लिया था।[4][5]

सन् 1321 में काकतीय वंश को हराकर उत्तरी दक्खन पर दिल्ली सल्तनत का कब्ज़ा हो गया और इसमें गुलबर्ग भी शामिल था।[4][5]

चौदहवीं सदी की शुरुआत में, गुलबर्ग सहित सम्पूर्ण दक्खन पर दिल्ली सल्तनत के मुहम्मद बिन तुगलक ने कब्जा कर लिया था। दिल्ली से नियुक्त मुस्लिम अधिकारियों के बगावत करने पर 1347 में बहमनी सल्तनत की स्थापना हुई। सल्तनत के प्रथम राजा हसन गंगू ने गुलबर्ग (तत्कालीन 'अहसानाबाद') को अपनी राजधानी चुना। गुलबर्ग 1347 से 1424 तक बहमनी साम्राज्य की राजधानी था और गुलबर्ग किला राजधानी का मुख्यालय था। 1424 में राजधानी बीदर ले जायी गयी। कहा जाता है कि बहमनी राज्य की स्थापना के साथ मुस्लिम शासन ने दक्खन में जड़ें बना लीं। अहमद शाह वली बहमनी ने इराक, ईरान और मध्य एशिया से प्रवासियों को दक्खन में स्थापित किया। इससे दक्खन के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन में बदलाव आये। फिर भी वे हिन्दू परम्पराओं के साथ घुल-मिल गये।[1][4][5][6][7]

गुलबर्ग किला विजयनगर सम्राट द्वारा नष्ट कर दिया गया था। बाद में यूसुफ़ आदिल शाह ने विजयनगर सम्राट को युद्ध में हरा कर जब बीजापुर सल्तनत की स्थापना की तो इस किले का पुनर्निर्माण कराया था। विजयनगर साम्राज्य को लूट कर जो मिला था उस से इस किले को पुनर्निर्मित किया गया था।[उद्धरण चाहिए]

पंद्रहवीं शताब्दी के अंत और सोलहवीं शताब्दी की शुरुआत तक दक्खन पर मुख्यतः बहमनी साम्राज्य का राज था, जिसके बाद राज्य पाँच राज्यों में बँट गया।[5][7][8]

सन् 1687 में मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने किले पर कब्ज़ा किया और दक्खन को निज़ाम-उल-मुल्क के शासन के अंतर्गत छोड़ा। अट्ठारहवीं शताब्दी की शुरुआत में मुग़ल साम्राज्य के पतन के दौरान निज़ाम-उल-मुल्क आसफजाह ने 1724 में मुग़ल साम्राज्य से स्वतंत्रता घोषित कर के हैदराबाद स्टेट की स्थापना की। गुलबर्ग का एक बड़ा क्षेत्र भी इस साम्राज्य का हिस्सा था। इस तरह से आसफ़जाही राजवंश की स्थापना हुई, जो बाद में चलकर हैदराबाद के निज़ाम बने।[4][5][8]

निज़ाम शासन के दौरान गुलबर्ग ज़िला और किला दोनों हैदराबाद राज्य के अंतर्गत आते थे। अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात 1948 में हैदराबाद स्टेट भारत का हिस्सा बन गया। 1956 में भाषा के आधार पर हैदराबाद राज्य को भारत के राज्यों में बाँटा गया। आंध्र प्रदेश को दिये गये दो तालुकों के अतिरिक्त बाकी गुलबर्ग ज़िला मैसूर राज्य का हिस्सा बना, जो बाद में कर्नाटक बना।

भूगोल संपादित करें

यह कर्नाटक के पूर्वोत्तर भाग में एक पठार भूमि पर स्थित है। कृष्णा नदी और भीमा नदी जिले से गुज़रती हैं और भीमा नदी किले के करीब बहती है। क्षेत्र में मृदा मुख्य रूप से काली मिट्टी की है।[3][4][9]

किला जिले के उस भाग में है जहाँ सूखा पड़ने की संभावना रहती है और सामान्यतः यहाँ साल में कुल 46 दिन वर्षा होती है जिसमें 777 मिलीमीटर (30.6 इंच) बरसात होती है।[4]

जलवायु सर्दियों में शुष्क और ठंडा है, लेकिन गर्मियों में गर्म है। दक्षिण पश्चिमी मानसून से वर्षा आती है। गर्मी में उच्चतम तापमान 45 °से. (113 °फ़ै) है और सर्दी में न्यूनतम 5 °से. (41 °फ़ै) है।[3][4][9]

संरचनाएँ संपादित करें

1347 ईसवी में बहमनी साम्राज्य की स्थापना के साथ फ़ारसी वास्तुकला का प्रभाव पड़ा जो गुलबर्ग किले में देखा जा सकता है। किले के अन्दर की इमारतें भारतीय-फ़ारसी वास्तुशैली में बनी हैं और उनकी वास्तुकला प्रभावशाली है। प्रोफ़ देसाई का कहना है:

1347 में बहमनी राजवंश की स्थापना के साथ दक्खन में एक नई भारतीय-फ़ारसी वास्तुकला शैली का जन्म हुआ।

कुछ प्रमुख संरचनाओं का विवरण निम्न है:[10]

किला संपादित करें

किले को बहमनी राजवंश के अलाउद्दीन हसन बमन शाह ने बाद में पश्चिम एशियाई और यूरोपीय सैनिक शैली के वास्तुशिल्प का प्रयोग करते हुए किलाबंद करवाया था। किला के केंद्र में एक गढ़ी भी जोड़ी गयी थी।

किले का कुल क्षेत्रफल 0.5 एकड़ (0.20 हे॰) है और इसकी परिधि की लम्बाई 3 किलोमीटर (1.9 मील) है। इसमें दुगुनी किलाबंदी का प्रयोग किया गया है, अर्थात् किला दोहरी दीवारों से सुरक्षित है। किले के चारों ओर एक 30 फीट (9.1 मी॰) चौड़ी खाई है।

किले में 15 बुर्ज हैं जिनमें 26 बंदूकें रखी हुई हैं। हर बन्दूक 8 मीटर (26 फीट) लम्बी है और अब भी अच्छी तरह संरक्षित है।[1][7][11]

कहा जाता है कि बहमनी सल्तनत सासानी राजवंश के वंशज होने का दावा करती थी। उनकी बनायी इमारतों का रूपांकन, विशिष्ट रूप से उनके द्वारा बनाए गये मेहराबों के शीर्ष बालचंद्र दर्शाते थे और कभी-कभी साथ में चक्र आकार का भी प्रयोग करते थे, जो कि काफ़ी हद तक सासानी साम्राज्य द्वारा बनवाये गये शीर्षों से मेल खाते थे। किले के क्षेत्र में कई धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष इमारतें इस प्रतीक का प्रयोग करती हैं।[12]

जामी मस्जिद संपादित करें

 
जामी मस्जिद के उत्तर मुख का प्रवेशद्वार

जामी मस्जिद दक्षिण भारत की पहली मस्जिदों में से एक है। इसका निर्माण गुलबर्ग के बहमनी साम्राज्य की राजधानी बनने पर किया गया था। यद्यपि मस्जिद की रूपरेखा सरल है, इसमें सममिति है और इसके भाग अच्छी तरह से आयोजित हैं। यह मस्जिद भारत में अद्वितीय है और इसका आकार 216 फीट (66 मी॰)x176 फीट (54 मी॰) है। इसका निर्माण स्पेन के कोरदोबा के मस्जिद के तर्ज पर हुआ है। मस्जिद पहले खंडहर की अवस्था में था, परन्तु अब इसकी भली-भाँति देख-भाल की जा रही है।[13][14]

मस्जिद में खुला आंगन नहीं है। प्रार्थना कक्ष के तीन ओर मेहराबदार गलियारे हैं। गलियारे आयत के आकार में हैं। उत्तर और दक्षिण दिशा में गलियारे मेहराब स्तंभों द्वारा दस खण्डों में विभाजित है और पूर्व में सात खंडों में। आयत आकार के कोनों के खंडक कक्ष चौकोर हैं और उनके ऊपर गुम्बज़ हैं। अन्दर के खंडक कक्षों के ऊपर चापांतर त्रिभुजों के उपयोग से बनायी गयी नीची गुम्बज़ें हैं। काबा-मुखी दीवार के आगे के बरामदे में नौ खण्ड कक्ष हैं और उसके ऊपर एक बड़ा गुम्बज़ है। गुम्बज़ के निचले हिस्से की मेहराबों पर त्रिदली (तिपतिया आकर के) चाप और लम्बी पालियाँ हैं। गुम्बज़ मुख्य छत के ऊपर एक चौकोर उद्गत खण्ड पर आधारित है। गलियारे पहले लकड़ी की ओट में थे पर समय के साथ लकड़ी हटा दी गयी है। उनकी जगह उत्तरी मुख पर एक मेहराबदार प्रवेशद्वार बना दिया गया है। कुल मिलाकर, मस्जिद पाँच बड़ी गुम्बदों (एक मुख्य गुम्बद और चार कोने की गुम्बदें), 75 छोटी गुम्बदों और 250 मेहराबों के साथ विशिष्ट फ़ारसी वास्तुशैली में है।[3][11][15]

ख़्वाजा बंदे नवाज़ का मक़बरा संपादित करें

उपरोक्त के अतिरिक्त रुचि की इमारत है ख़्वाजा बंदे नवाज़ नाम से प्रचलित सूफ़ी सन्त सय्यद मुहम्मद गेसू दराज़ का मकबरा, जो भारतीय-मुस्लिम वास्तुशैली में बना है। यह एक बड़ा भवन-समूह है जहाँ सूफ़ी सन्त की कब्र मौजूद है। ये सन्त सन् 1413 में गुलबर्ग आये थे। दरगाह के मेहराब बहमनी वास्तुशैली में हैं और कब्र की दीवारों और छत पर तुर्की और ईरानी प्रभाव वाले चित्र हैं। मुग़लों ने भी इस मकबरे के निकट एक मस्जिद बनवाया था। यहाँ हर वर्ष नवम्बर में उर्स होती है, जिसमें सभी धर्मों के अनेक श्रद्धालू आते हैं।[5][16][17]

पहुँचना संपादित करें

गुलबर्ग रेल और सड़क मार्गों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।[3] गुलबर्ग मध्य दक्षिणी रेल पर एक मुख्य स्टेशन है और रेल से बंगलौर, दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद से जुड़ा है।

यह बंगलौर और हैदराबाद से राष्ट्रीय राजमार्गों से अच्छी तरह जुड़ा है, जो गुलबर्ग से 610 किलोमीटर (380 मील) और 225 किलोमीटर (140 मील) किलोमीटर दूर हैं। राज्य में अन्य शहरों से सड़क मार्ग द्वारा दूरियाँ हैं: बसवकल्याण - 80 किलोमीटर (50 मील), बीदर -120 किलोमीटर (75 मील) और बीजापुर - 160 किलोमीटर (99 मील).[3]

हैदराबाद हवाई अड्डा गुलबर्ग से निकटतम हवाई अड्डा है और गुलबर्ग से 225 किलोमीटर (140 मील) दूर है।[3]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Gulbarga". मूल से 4 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-10-02.
  2. "Gulbarga Fort". मूल से 27 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-10-02.
  3. "Gulbarga". Karnataka Online. मूल से 13 नवंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-04.
  4. "Gulbarga". History (link page). राष्ट्रीय सूचना-विज्ञान केन्द्र, Gulbarga. मूल से 18 फ़रवरी 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-10.
  5. "Gulbaraga". मूल से 22 अक्तूबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-10.
  6. Joshi p.35-36
  7. "Gulbarga Fort". British Library On Line gallery. मूल से 18 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-07.
  8. "Asuf Gunj, Gulbarga". British Library On Line gallery. मूल से 20 अक्तूबर 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-10.
  9. "Heritage Areas". National Informatics centre, Karnataka. मूल से 20 अगस्त 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-10.
  10. Joshi, P. M.; M. A. Nayeem and Teotonio R. De Souza (1996). Mediaeval Deccan history: commemoration volume in honour of Purshottam ... Art and Architecture of Bidar. Popular Prakashan. पपृ॰ 44–45. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7154-579-3, 9788171545797 |isbn= के मान की जाँच करें: invalid character (मदद). मूल से 28 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-07.
  11. "Gulbarga". Karnataka Tourism. मूल से 1 अक्तूबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-10.
  12. "Sasanian Royal Emblems and their Reemergence in the Fourteenth-Century Deccan" (PDF). मूल से पुरालेखित 5 सितंबर 2004. अभिगमन तिथि 2009-11-04.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)
  13. Cumming, Sir John (2006). Revealing India's Past. Gulbarga Fort. Read Books. पृ॰ 424. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 1-4067-0408-3, 9781406704082 |isbn= के मान की जाँच करें: invalid character (मदद). मूल से 28 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-08.
  14. Sathyan, B. N. Sri (1965). Karnataka State Gazetteer: Gulbarga. Gulbarga fort. The Director of Print., Stationery and Publications at the Govt. Press, Government of Karnataka. पपृ॰ 218 and 462. मूल से 28 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-10.
  15. Michell, George (1999). Architecture and art of the Deccan sultanates, Volume 1. Solah Khmaba Mosque. Cambridge University Press. पपृ॰ 66–67. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-521-56321-6, 9780521563215 |isbn= के मान की जाँच करें: invalid character (मदद). मूल से 28 जून 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-07. नामालूम प्राचल |coauthor= की उपेक्षा की गयी (|author= सुझावित है) (मदद)
  16. "Gulbarga travel". Kerala and South India Tourism. मूल से 10 फ़रवरी 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-10.
  17. "Gulbarga". मूल से 6 दिसंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-11-10.