गौरीशंकर हीराचंद ओझा
डॉ गौरीशंकर हीराचंद ओझा (1863-1947)[2] भारत के इतिहासकार एवं हिन्दी लेखक थे। डॉ॰ ओझा राजस्थान क्षेत्र के मार्गशोधक इतिहास लेखकों में गिने जाते हैं।[3] इन्होंने राजस्थान तथा भारत के इतिहास सम्बन्धी अनेक पुस्तकें लिखी थी। कविराज श्यामलदास ने इनको उदयपुर के इतिहास विभाग में नियुक्त किया था। ओझाजी कविराज श्यामलदास को अपना गुरु मानते थे। 17 अप्रैल, 1947 ई० को अपनी जन्मभूमि रोहिड़ा में ही ओझा जी का देहावसान हो गया।
गौरीशंकर हीराचंद ओझा | |
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जन्म |
5 april 15 सितंबर 1863[1]chaksu |
मौत |
17 अप्रैल 1947[1] |
पेशा | इतिहासकार, लेखक |
जीवन परिचय
संपादित करेंपण्डित गौरीशंकर हीराचंद ओझा का जन्म 15 सितम्बर, 1863 ई. को मेवाड़ और सिरोही राज्य की सीमा पर स्थित 'रोहिड़ा' नामक छोटे से गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।[4]उनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव में ही हुई। संस्कृत का अध्ययन इन्होंने अपने पिता के पास रहकर किया। बाद में 1877 में मात्र 14 वर्ष की आयु में उच्च शिक्षा के लिये वे मुम्बई गये, जहां 1885 में 'एलफिंस्टन हाईस्कूल' से मेट्रिक्यूलेशन की परीक्षा उत्तीर्ण की। रोगग्रस्त हो जाने के कारण वे इन्टरमीडिएट की परीक्षा न दे सके और गांव लौट आये।
व्यवसाय
संपादित करें1888 ई० में ओझा जी उदयपुर पहुँचे थे। कविराज श्यामलदास इनसे इतना प्रभावित हुए थे कि उन्होंने इन्हें अपने इतिहास कार्यालय में सहायक मंत्री बना दिया था, जिससे इन्हें मेवाड़ के भिन्न-भिन्न ऐतिहासिक स्थानों को देखने और ऐतिहासिक सामग्री संकलित करने का अवसर मिला। बाद में इन्हें उदयपुर के विक्टोरिया हाल के पुस्तकालय एवं म्यूजियम का अध्यक्ष बनाया गया। वहाँ पुरातत्व विभाग के लिए इन्हें शिलालेखों, सिक्कों, मूर्तियों आदि ऐतिहासिक सामग्री संग्रह करने का अवसर मिला। यहाँ रहते हुए ही ओझा जी ने भारतीय प्राचीन लिपिमाला नामक ग्रंथ लिख कर पुरातत्व जगत में विशिष्ट ख्याति प्राप्त की।[5] यह पुस्तक 1894 ई० में प्रकाशित हुई थी। भारतीय अभिलेखों के अध्ययन की यह प्रथम प्रामाणिक पुस्तक थी। इसका संशोधित संस्करण 1918 ई० में प्रकाशित हुआ। पुस्तक में देवनागरी अक्षरों का ब्राह्मी लिपि से उद्भव का अत्यंत सुन्दर प्रदर्शन है।
लार्ड कर्जन के संपर्क में आने पर ओझा जी की विद्वता से प्रभावित होकर कर्जन ने इन्हें अजमेर में म्यूजियम का अध्यक्ष बना दिया। उस समय अनेक राजपूत राज्यों में भ्रमण करने का अवसर इन्हें मिला। वहीं रहते हुए 1911 ई० में इन्होंने 'सिरोही राज्य का इतिहास' लिखा था।[5] सोलंकियों का इतिहास 1907 ई० में प्रकाशित हो चुका था। इस पुस्तक की समीक्षा जर्नल ऑफ़ दी रॉयल एशियाटिक सोसाइटी में प्रकाशित हुई थी[6]। हिस्ट्री ऑफ़ राजपुताना शृंखला का प्रारंभ 1926 ई० में हुआ। पंद्रह वर्षों की अवधि में उदयपुर (मेवाड़), जोधपुर, बीकानेर, डूंगरपुर, बांसवाडा तथा प्रतापगढ़ के इतिहास प्रकाशित हुए। मध्यकालीन भारतीय संस्कृति नामक पुस्तक में भारतीय संस्कृति पर शोधपूर्ण प्रकाश डाला गया है।[7]
शिलालेख, दानपत्र, सिक्के, हस्तलिखित ख्यातें, बातें, राव-भाटों की बहियें, राजस्थानी व संस्कृत के काव्य, गुजराती व मराठी भाषाओं के ग्रंथ, फारसी ग्रंथों का अनुवाद और विदेशी यात्रियों के विवरण ओझा जी के इतिहास लेखन के आधार स्रोत रहे हैं। इन्होंने प्रत्येक घटना के वर्णन में प्राप्त सभी आधार स्रोतों का उपयोग करते हुए उनकी सत्यता को प्रमाणित करने का यथासंभव प्रयास किया और संदर्भ सामग्री का सुस्पष्ट उल्लेख पाद टिप्पणी में किया। आधार स्रोतों का पाद टिप्पणी में उल्लेख करने की परंपरा ओझा जी ने ही डाली थी।[5]
प्रकाशित पुस्तकें
संपादित करेंराजस्थान से सम्बद्ध इतिहास ग्रंथ
संपादित करें- सोलंकियों का प्राचीन इतिहास (1907, नवीन संस्करण- राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर से प्रकाशित)
- सिरोही राज्य का इतिहास (1911, नवीन संस्करण- राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर से)
- राजपूताने का प्राचीन इतिहास ( राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर; यह पुस्तक राजपूताने के प्राचीन इतिहास से सम्बद्ध है। राजपूताने का इतिहास शीर्षक सुप्रसिद्ध शृंखला की पुस्तकों का प्रकाशन 1927 से आरंभ हुआ। इसके प्रथम एवं द्वितीय भाग में 'उदयपुर राज्य का इतिहास' था। इसके अनेक खंडों के अंतर्गत ही राजस्थान के विभिन्न राज्यों के इतिहास प्रकाशित होते रहे, जो बाद में स्वतंत्र ग्रंथों के रूप में प्रकाशित हुए हैं।
- उदयपुर राज्य का इतिहास (दो भागों में, 1928-1932, नवीन संस्करण- राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर से, 1999-2006)
- डूंगरपुर राज्य का इतिहास (1936, राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर -2000)
- बाँसवाड़ा राज्य का इतिहास (1937, नवीन संस्करण- राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर से)
- बीकानेर राज्य का इतिहास (दो भागों में, 1937-1940, नवीन संस्करण- राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर से)
- जोधपुर राज्य का इतिहास (दो भागों में, 1938-1941, नवीन संस्करण- राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर से)
- प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास (1940, नवीन संस्करण- राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर से)
- वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह (सचित्र) [1928, नवीन संस्करण- राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर; यह पुस्तक 'उदयपुर राज्य का इतिहास' के ही महाराणा प्रताप से सम्बद्ध अंश का यथावत् पुस्तकीय रूप है।]
अन्य विषयक पुस्तकें
संपादित करें- भारतीय प्राचीन लिपि माला (1894, मुंशीराम मनोहरलाल नयी दिल्ली से तृतीय संस्करण 1971, नवीन संस्करण- राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर से)
- अशोककालीन धार्मिक अभिलेख
- मध्यकालीन भारतीय संस्कृति (1945, हिंदुस्तानी एकेडमी इलाहाबाद)
- भारतीय साहित्य की रूपरेखा (1956, भारतीय ग्रंथागार, लखनऊ)
- प्राचीन भारतीय अभिलेख (भारतीय कला प्रकाशन, 2006)
- सुप्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड का जीवनचरित (राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर, 2002)
- ओझा निबंध संग्रह (तीन खंडों में, 1954, उदयपुर साहित्य संस्थान, राजस्थान, नवीन संस्करण- शब्द महिमा प्रकाशन, जयपुर, 2010)
- नागरी अंक और अक्षर (सह लेखक- केशव देव मिश्र, दशम संस्करण- 1949, हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग)
संपादित पुस्तकें
संपादित करें- मुहणोत नैणसी की ख्यात (रामनारायण दूगड़ कृत हिंदी अनुवाद सहित, राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर)
- पृथ्वीराज विजय महाकाव्यम् (1941, राजस्थानी ग्रंथागार जोधपुर, 1997, चंद्रधर शर्मा गुलेरी के साथ संपादन, मदन मोहन शर्मा कृत हिंदी अनुवाद सहित)
- कोशोत्सव-स्मारक-संग्रह (1928, नवीन संस्करण-1999, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी)
- प्राचीन मुद्रा (लेखक- राखालदास बनर्जी, अनुवादक- रामचंद्र वर्मा, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी)
अभिनंदन ग्रंथ
संपादित करेंभारतीय अनुशीलन ग्रंथ (1933, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग)
प्रमुख सम्मान
संपादित करें- 1914 ई० में रायबहादुर का खिताब मिला।
- 1927 ई० में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन के अधिवेशन ने आपको महामहोपाध्याय की उपाधि से सम्मानित किया।
- 1933 ई० में ओरियण्टल कॉन्फ्रेंस, बड़ौदा में इतिहास विभाग का अध्यक्ष बने।
- 1935 ई० में साहित्यवाचस्पति की पदवी से इन्हें विभूषित किया गया।
- 1935 ई० में ही काशी विश्वविद्यालय से डि०लिट० की उपाधि मिली।
- ओझाजी के सत्तरवें जन्मदिवस समारोह में हिंदी साहित्य सम्मलेन ने इनके सम्मान में भारतीय अनुशीलन ग्रन्थ प्रस्तुत किया।
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करेंविकिस्रोत पर इस लेख से संबंधित मूल पाठ उपलब्ध है: - 'नागरी अंक और अक्षर' डिजिटल साउथ एशिया लाइब्रेरी में
- यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो पुस्तकालय संग्रह में गौरीशंकर हीराचंद ओझा लिखित पुस्तकों की सूची
- Early Chauhan Dynasties at google books [1]
- Cultural contours of India at google books [2]
- Nagari Anka aur Akshara at Digital South Asia Library [3]
- University of Chicago Library catalogue [4] Archived 2011-07-17 at the वेबैक मशीन
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ Error: Unable to display the reference properly. See the documentation for details.
- ↑ लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस संग्रह सूची
- ↑ दशरथ शर्मा (१९७०) लेक्चर्स ऑन राजपूत हिस्टरी एंड कल्चर, प्रकाशक: मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली पृष्ठ १ ISBN 0-8426-0262-3
- ↑ पांड्य ए. के. (१९५२) आबु इन बॉम्बे स्टेट पृष्ठ ४०, प्रकाशक: चारुतर विद्या मंडल, बम्बई
- ↑ अ आ इ राजस्थान : इतिहास एवं संस्कृति एन्साइक्लपीडिया, डॉ० हुकमचंद जैन एवं नारायण माली, जैन प्रकाशन मंदिर, जयपुर, संस्करण-2010, पृ०-336.
- ↑ जर्नल ऑफ़ दी रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड १९०८ ई. , पृष्ठ २८३
- ↑ श्रीवास्तव, विजय शंकर (१९८१) कल्चरल कोंटूर्स ऑफ़ इंडिया पृष्ठ ३७ अभिनव प्रकाशन दिल्ली ISBN 978-0-391-02358-1