चम्बा, हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश राज्य, भारत का एक नगर
(चंबा से अनुप्रेषित)

चंबा भारत के हिमाचल प्रदेश प्रान्त का एक नगर है। हिमाचल प्रदेश का चंबा अपने रमणीय मंदिरों और हैंडीक्राफ्ट के लिए सर्वविख्यात है। रवि नदी के किनारे 996 मीटर की ऊँचाई पर स्थित चंबा पहाड़ी राजाओं की प्राचीन राजधानी थी। चंबा को राजा साहिल वर्मन ने 920 ई. में स्थापित किया था। इस नगर का नाम उन्होंने अपनी प्रिय पुत्री चंपावती के नाम पर रखा। चारों ओर से ऊंची पहाड़ियों से घिरे चंबा ने प्राचीन संस्कृति और विरासत को संजो कर रखा है। प्राचीन काल की अनेक निशानियां चंबा में देखी जा सकती हैं।

चंबा
—  नगर  —
चंबा का लक्ष्मीनारायण मंदिर
चंबा का लक्ष्मीनारायण मंदिर
चंबा का लक्ष्मीनारायण मंदिर
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देश  भारत
राज्य हिमाचल प्रदेश
महापौर
जनसंख्या
घनत्व
२०,३१२ (5,18,844) (२००१ के अनुसार )
• 80/किमी2 (207/मील2)
क्षेत्रफल
ऊँचाई (AMSL)

• ९९६ मीटर

निर्देशांक: 32°20′N 76°42′E / 32.34°N 76.7°E / 32.34; 76.7

जाब 'जाब', चंबा का अरबी नाम है। इसके जाफ, हाब, आब और गाँव नाम भी हैं। इसकी प्राचीन राजधानी ब्रह्मपुर (वयराटपट्टन) थी। हुएनत्सांग ने इसका वर्णन करते हुए लिखा है कि यह अलखनंदा और करनाली नदियों के बीच बसा है। कुछ काल बाद इस प्रदेश की राजधानी चंबा हो गई। 15 अप्रैल 1948 में इसका विलयन भारत सरकार द्वारा शासित हिमाचल प्रदेश में हो गया।

अरब लेखकों ने सामान्यत: चंबा के सूर्यवंशी राजपूत शासकों को 'जाब' की उपाधि के साथ लिखा है। हब्न रुस्ता का मत है कि यह शासन सालुकि वंश के थे परंतु राजवंश की उत्पत्ति के संबंध में विद्वानों में मतभेद है। ८४६ ई. में सर्वप्रथम हब्न खुर्रदद्बी ने 'जाब' का प्रयोग किया, पर ऐसा लगता है कि इस शब्द की उत्पत्ति अरब साहित्य में इससे पूर्व हो चुकी थी। इस प्रकार यह प्रामाणिक माना जाता है कि चंबा नगर ९ वीं शताब्दी के प्रथम दशक में विद्यमान था। इब्न रुस्ता ने लिखा है कि चंबा के शासक प्राय: गुर्जरों और प्रतिहारों से शत्रुता रखते थे।

मुख्य आकर्षण-

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चंपावती मंदिर

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यह मंदिर राजा साहिल वर्मन की पुत्री को समर्पित है। यह मंदिर शहर की पुलिस चौकी और कोषागार भवन के पीछे स्थित है। कहा जाता है कि चंपावती ने अपने पिता को चंबा नगर स्थापित करने के लिए प्रेरित किया था। मंदिर को शिखर शैली में बनाया गया है। मंदिर में पत्थरों पर खूबसूरत नक्काशी की गई है और छत को पहिएनुमा बनाया गया है।

लक्ष्मीनारायण मंदिर

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यह मंदिर पांरपरिक वास्तुकारी और मूर्तिकला का उत्कृष्‍ट उदाहरण है। चंबा के 9 प्रमुख मंदिरों में यह मंदिर सबसे विशाल और प्राचीन है। कहा जाता है कि सवसे पहले यह मन्दिर चम्बा के चौगान में स्थित था परन्तु बाद में इस मन्दिर को राजमहल (जो वर्तमान में चम्बा जिले का राजकीय महाविद्यालय है) के साथ स्थापित कर दिया गया। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर राजा साहिल वर्मन ने 10 वीं शताब्दी में बनवाया था। यह मंदिर शिखर शैली में निर्मित है। मंदिर में एक विमान और गर्भगृह है। मंदिर का ढांचा मंडप के समान है। मंदिर की छतरियां और पत्थर की छत इसे बर्फबारी से बचाती है।

भूरी सिंह संग्रहालय

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यह संग्रहालय 14 सितंबर 1908 ई. को खुला था। 1904-1919 तक यहां शासन करने वाले राजा भूरी सिंह के नाम पर इस संग्रहालय का नाम पड़ा। भूरी सिंह ने अपनी परिवार की पेंटिग्स का संग्रह संग्रहालय को दान कर दिया था। चंबा की सांस्कृतिक विरासत को संजोए इस संग्रहालय में बसहोली और कांगड़ा आर्ट स्कूल की लघु पेंटिग भी रखी गई हैं।

भांदल घाटी

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यह घाटी वन्य जीव प्रेमियों को काफी लुभाती है। यह खूबसूरत घाटी 6006 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। यह घाटी चंबा से 53 किमी .दूर सलूणी से जुड़ी हुई है। यहां से ट्रैकिंग करते हुए जम्मू-कश्मीर पहुंचा जा सकता है। रास्ते में आपको प्रकृति का मनमोहक नजारा देखने को मिलेगा। जम्मू कश्मीर के रास्ते में आपको पधरी जोत नामक पर्यटक स्थल भी देखने को मिलेगा जन्हा आप प्रकृति की सुंदरता महसूस कर सकते हैं।

चंबा की इस प्राचीन राजधानी को पहले ब्रह्मपुरा नाम से जाना जाता था। 2195 मीटर की ऊँचाई पर स्थित भरमौर घने जंगलों से घिरा है। किवदंतियों के अनुसार 10 वीं शताब्दी में यहां 84 संत आए थे। उन्होंने यहां के राजा को 10 पुत्र और एक पुत्री चंपावती का आशीर्वाद दिया था। यहां बने मंदिर को चौरासी नाम से जाना जाता है। लक्ष्मी देवी, गणेश और नरसिंह मंदिर चौरासी मंदिर के अन्तर्गत ही आतें हैं। भरमौर से कुगती पास और कलीचो पास की ओर जाने के लिए उत्तम ट्रैकिंग रूट है। तथा विश्व में केवल भरमौर में धर्मराज जी का मंदिर मौजूद है जिन्हे हम यमराज के नाम से भी जानते। किवदंतियों के अनुसार माना जाता है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म,समुदाय,देश से सम्बन्ध रखता हो मृत्यु के बाद उसे इस मन्दिर में आना ही होगा इसी मंदिर में हर आत्मा के कर्मों का हिसाब होगा और उसके कर्मानुसार उसे स्वर्ग या नरक की प्राप्ति होगी

यह खुला घास का मैदान है। लगभग 1 किलोमीटर लंबा और 75 मीटर चौड़ा यह मैदान चंबा के बीचों बीच स्थित है। चौगान में प्रतिवर्ष मिंजर मेले का आयोजन किया जाता है। एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में स्थानीय निवासी रंग बिरंगी वेशभूषा में आते हैं। इस अवसर पर यहां बड़ी संख्या में सांस्कृतिक और खेलकूद की गतिविधियां आयोजित की जाती हैं। लेकिन अब चौगान तीन चार हिसों में बंट चूका है

वजरेश्वरी मंदिर

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यह प्राचीन मंदिर एक हजार साल पुराना माना जाता है। प्रकाश की देवी वजरेश्वरी को समर्पित यह मंदिर नगर के उत्तरी हिस्से में स्थित जनसाली बाजार के अंत में स्थित है। शिखर शैली में निर्मित इस मंदिर का छत लकड़ी से बना है और एक चबूतरे पर स्थित है। मंदिर के शिखर पर बेहतरीन नक्काशी की गई है।

सूई माता मंदिर

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चंबा के निवासियों के लिए अपना जीवन त्यागने वाली यहां की राजकुमारी सूई को यह मंदिर समर्पित है। यह मंदिर शाह मदार हिल की चोटी पर स्थित है। यहाँ सूई माता नें कुछ समय के लिए विश्राम किया था। यहाँ सूई माता की याद में यहां हर साल सूई माता का मेला चैत महीने से शुरू होकर बैसाख महीने तक चलता है। यह मेला महिलाओं और बच्चों द्वारा मनाया जाता है। मेले में रानी के गीत गाए जाते हैं और रानी के बलिदान को श्रद्धांजलि‍ देने के लिए लोग सूई मन्दिर से रानी के वलिदान स्थल मलूना तक जाते हैं।

चामुन्डा देवी मंदिर

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यह मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है जहां से चंबा की स्लेट निर्मित छतों और रावी नदी व उसके आसपास का सुन्दर नजारा देखा जा सकता है। मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना हुआ है और देवी दुर्गा को समर्पित है। मंदिर के दरवाजों के ऊपर, स्तम्भों और छत पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। मंदिर के पीछे शिव का एक छोटा मंदिर है। मंदिर चंबा से तीन किलोमीटर दूर चंबा-जम्मुहार रोड़ के दायीं ओर है। भारतीय पुरातत्व विभाग मंदिर की देखभाल करता है।

हरीराय मंदिर

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भगवान विष्णु का यह मंदिर 11 शताब्दी में बना था। कहा जाता है कि यह मंदिर सालबाहन ने बनवाया था। मंदिर चौगान के उत्तर पश्चिम किनारे पर स्थित है। मंदिर के शिखर पर बेहतरीन नक्काशी की गई है।

हरीराय मंदिर में चतुमूर्ति आकार में भगवान विष्णु की कांसे की बनी अदभुत मूर्ति स्थापित है। केसरिया रंग का यह मंदिर चंबा के प्राचीनतम मंदिरों में एक है।

लखन मंदिर भरमौर... यह हिमाचल प्रदेश का शिखर शैली में बना बहुत पुराना मंदिर है। देवी लक्ष्मी को यहां महिसासुरमर्दिनी रूप में दिखाया गया है। मंदिर में स्थापित देवी की पीतल की प्रतिमा राजा मेरू वर्मन के उस्ताद कारीगर मुग्गा ने बनाई थी। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश का प्रमुख और पवित्र तीर्थ स्थल है। यहां हर साल मणिमहेश यात्रा का आयोजन होता है।

यह प्राचीन और विशाल महल सुराड़ा मोहल्ले में स्थित है। महल में अब हिमाचल एम्पोरियम बना दिया गया है। इस महल की नींव राजा उमेद सिंह ने (1748-1768) डाली थी। महल का दक्षिणी हिस्सा राज श्री सिंह ने 1860 में बनवाया था। यह महल मुगल और ब्रिटिश शैली का मिश्रित उदाहरण है। यह महल यहां के शासकों का निवास स्थल था।

अखंड चंडी महल

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चंबा के शाही परिवारों का यह निवास स्थल राजा उमेद सिंह ने 1748 से 1764 के बीच बनवाया था। महल का पुनरोद्धार राजा शाम सिंह के कार्यकाल में ब्रिटिश इंजीनियरों की मदद से किया गया। 1879 में कैप्टन मार्शल ने महल में दरबार हॉल बनवाया। बाद में राजा भूरी सिंह के कार्यकाल में इसमें जनाना महल जोड़ा गया। महल की बनावट में ब्रिटिश और मुगलों का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। 1958 में शाही परिवारों के उत्तराधिकारियों ने हिमाचल सरकार को यह महल बेच दिया। बाद में यह महल सरकारी कॉलेज और जिला पुस्तकालय के लिए शिक्षा विभाग को सौंप दिया गया।

खजियार चम्बा की सबसे खूबसूरत जगह है।यह चम्बा से 22 कि. मी की दूरी पर है। लाखो की तादाद में हर वर्ष लोग यहाँ घूमने के लिए आते है। यहाँ एक झील है जो की काफी पुरानी है। और जिसका दृश्य लोगों के मन को भाता है। इस झील पर लगी हुए घास इतनी उपजाओ है। की लोग इस घास को उखाड़ के अपने घर के अगन में उगते है। मशहूर चौगान चम्बा की घास भी यही से लायी गयी है और हर साल खजियार की इस घास को चम्बा के चौगान में उगाया जाता है।

ज़िला मुख्यालय से 53 किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ है। उक्त गाँव में भी गद्दी समुदाय के लोग रहते हैं। बताया जाता है कि महभारत काल के दौरान जब कौरवों ने पांडवों की वनवास दिया था तो इस दौरान पांडवों ने माता कुन्ती के साथ दोपहर का भोजन किया था, जिनके नाम पर ही उक्त गाँव का नाम पहले कुन्तापुरी पड़ा था जिसको लोगों ने धीरे धीरे अपनी सहजता के हिसाब के बोलने के लिए कूंरा का नाम दे दिया। कूंरा पंचायत की करीब 1400 जनसँख्या है। यहां पांडवों का बनाया हुआ एक शिव मंदिर है। इसके साथ है पांडवों द्वारा बनाई गई पत्थरों की कई मूर्तियां मौजूद हैं।

सड़क के माध्यम से चंबा से 45 किलोमीटर दूर छतराड़ी के इस प्रसिद्ध गांव है। गांव के ज्यादातर गद्दी लोगों का निवास है। भेड़ और बकरियों के पालन में लगे हुए बहुत हैं। इस गांव में 6000 फीट (1,800 मीटर) की ऊँचाई पर स्थित है, यह शक्ति देवी की अपनी उल्लेखनीय पहाड़ी शैली के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।

वायुमार्ग-

चंबा जाने के लिए नजदीकी एयरपोर्ट पंजाब के अमृतसर में है जो चंबा से 240 किलोमीटर दूर है। अमृतसर से चंबा जाने के लिए बस या टैक्सी की सेवाएं ली जा सकती हैं।

दिल्ली से गगल एयरपोर्ट पहुंचा जा सकता है जहां से नूरपुर या सिहुंता से होकर लाहड़ू नामक स्थान पर पहुंचते हैं। यहां से हम वाया बनीखेत या फिर वाया जोत सड़क से होते हुए चम्बा आसानी से पहुंच सकते हैं। यहां से मात्र हमें 180 किलोमीटर वाया रोड़ जाना है।

रेलमार्ग-

चंबा से 140 किलोमीटर दूर पठानकोट नजदीकी रेलवे स्टेशन है। पठानकोट दिल्ली और मुम्बई से नियमित ट्रैनों के माध्यम से जुड़ा हुआ है। यहां से बस या टैक्सी के द्वारा चंबा पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग-

चंबा सड़क मार्ग से हिमाचल के प्रमुख शहरों व दिल्ली, धर्मशाला और चंडीगढ़ से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन निगम की बसें चंबा के लिए नियमित रूप से चलती हैं।