चारण बड़ी अमोलक चीज
चारण बड़ी अमोलक चीज 19वीं सदी के उत्तरार्ध में मारवाड़ के महाराजा मान सिंह द्वारा रचित डिंगल ( मारवाड़ी ) भाषा की कविता है। इस कविता को 5 छंदों में विभाजित किया गया है जिसमें मध्यकालीन भारत के राज दरबारों में चारणों के महत्व और गुणों को दर्शाते हुए उनकी प्रशंसा की गई है। [1] [2]
कविता
संपादित करेंडिंगल(स्रोत: [3]) | अनुवाद
अंग्रेज़ी अनुवाद: कैलाश दान उज्ज्वल; स्रोत: [4] |
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अकल विद्या चित उजला, अधको धरमाचार । |
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आछा गुण कहण बाण पण आछी, मोख बुध में न को मणा । |
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भूपालां बातां हद भावे, |
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राजी सख सभा ने राखे, |
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आखे मान सुणों अधपतिया, खत्रियों कोई न करजों खीज । |
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अग्रिम पठन
संपादित करें- Cāraṇa baḍī amolaka cīja (in Hindi). Cāraṇa Sāhitya Śodha Saṃsthāna. 1989.
संदर्भ
संपादित करें- ↑ Cāraṇa baḍī amolaka cīja. Cāraṇa Sāhitya Śodha Saṃsthāna. 1989.
- ↑ Ujwal, Kailash Dan S. (1985). Bhagwati Shri Karniji Maharaj: A Biography (अंग्रेज़ी में). [s.n.]].
- ↑ Cāraṇa baḍī amolaka cīja. Cāraṇa Sāhitya Śodha Saṃsthāna. 1989.
- ↑ Tambs-Lyche, Harald (1996-12-31). Power, Profit, and Poetry: Traditional Society in Kathiawar, Western India (अंग्रेज़ी में). Manohar Publishers & Distributors. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-7304-176-1.