औरंगाबाद, महाराष्ट्र

(छत्रपति संभाजीनगर से अनुप्रेषित)

ओरंगाबाद (आधिकारिक नाम: छत्रपति संभाजीनगर) भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित एक ऐतिहासिक महानगर है। यह जिले का मुख्यालय भी है और मराठवाड़ा क्षेत्र का सबसे बड़ा नगर है। यह एक महत्वपूर्ण पर्यटक केंद्र है। नगर के बाह्यक्षेत्रों में अजंता गुफाएँएलोरा गुफाएँ हैं, जहाँ 200 ईसा पूर्व से लेकर 650 ई. तक हिंदू-बौद्ध कलाकृतियाँ हैं। ये गुफाएँ 'वेरुल लेणी' नाम के स्थान पर स्थित हैं जिसे जैन मंदिर, कैलाश मंदिर, और बौद्ध विहार भी कहा जाता है। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।[1][2][3]

औरंगाबाद
औरंगाबाद
औरंगाबाद महानगर
छत्रपति संभाजीनगर
ऊपर-से-नीचे, बाएँ-से-दाएँ: घृष्णेश्वर मंदिर, क्रांति चौक, बीबी का मकबरा, अजंता गुफाएँ, दौलताबाद दुर्ग
औरंगाबाद is located in महाराष्ट्र
औरंगाबाद
औरंगाबाद
महाराष्ट्र में स्थिति
निर्देशांक: 20°05′17″N 75°25′05″E / 20.088°N 75.418°E / 20.088; 75.418निर्देशांक: 20°05′17″N 75°25′05″E / 20.088°N 75.418°E / 20.088; 75.418
देश भारत
प्रांतमहाराष्ट्र
जिलाऔरंगाबाद जिला
तालुकाऔरंगाबाद
शासन
 • प्रणालीऔरंगाबाद नगर निगम
 • सभाऔरंगाबाद निगम
क्षेत्रफल
 • औरंगाबाद महानगर139 किमी2 (54 वर्गमील)
ऊँचाई568 मी (1,864 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • औरंगाबाद महानगर11,75,116
 • महानगर11,93,167
मराठी
 • प्रचलितमराठी, हिंदीउर्दू
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)
पिनकोड431001
टेलीफोन कोड0240
वाहन पंजीकरणMH-20

इतिहास

इस क्षेत्र का इतिहास जिसमें औरंगाबाद स्थित है, उसे सातवाहन काल तक वापस खोजा जा सकता है। इस इलाके का उल्लेख राजा विक्रमादित्य के शासनकाल के दौरान भी मिलता है। सातवाहन काल में खाम नदी के किनारे अनेक छोटे-बड़े गाँव थे। उनमें से एक खड़की को आज का औरंगाबाद माना जाता है। 7वीं सदी में इस गाँव के उत्तर में बौद्ध गुफाओं और विहारों की खुदाई की गई थी। बाद की शताब्दी में इस गाँव का उल्लेख राजतलक या राजतड़ाग के रूप में भी मिलता है। 14 वीं शताब्दी तक, इस क्षेत्र पर देवगिरी के महान हिंदू साम्राज्य के सम्राट, राजा कृष्णदेव राय के वंशज यादवों का शासन था। उस दौरान यहाँ काफी समृद्धि थी। देवगिरी इस क्षेत्र का स्वर्ण युग था। मध्‍यकाल में औरंगाबाद भारत में अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखता था। मुगल शासक औरंगजेब ने अपने जीवन का उत्तरार्द्ध यहीं व्‍य‍तीत किया था और यहीं उसकी मौत भी हुई थी। औरंगजेब की पत्‍नी रबिया दुरानी का मकबरा भी यहीं हैं। इस मकबरे का निर्माण ताजमहल की प्रेरणा से किया गया था। इसीलिए इसे 'पश्चिम का ताजमहल' भी कहा जाता है।

पर्यटन स्थल

बी‍बी का मकबरा

इस सुंदर इमारत को स्‍थानीय लोग ताजमहल का जुड़वा रूप मानते हैं। लेकिन बाहर के लोग इसे ताजमहल की फूहड़ नकल मानते हैं। इसे आजमशाह ने रबिया दुर्रानी की याद में बनवाया था। यह इमारत अभी भी पूर्णत: सुरक्षित अवस्‍था में है। इसी शहर में एक और भवन है जिसे सुनहरी महल कहा जाता है। प्रवेश शुल्‍क: भारतीयों के लिए 15 रु. तथा विदेशी पर्यटकों के लिए 100 रु., समय: सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक।

पनचक्‍की

इस पनचक्‍की का निर्माण मलिक अंबर ने करवाया था। इस पनचक्‍की में पानी 6 किलोमीटर की दूरी से मिट्टी के पाइप से आता था। इसके चैंबर में लोहे का पंखा घूमता था जिससे ऊर्जा उत्‍पन्‍न होती थी। इस ऊर्जा का उपयोग आटा के मिल को चलाने में किया जाता था। इस मिल में तीर्थयात्रियों के लिए अनाज पीसा जाता था। इसी स्‍थान पर कुम नदी के बाएँ तट पर बाबा शाह मुसाफिर का मजार है। यह मकबरा लाल रंग के साधारण पत्‍थर का बना हुआ है। यह मकबरा सादगी का प्रतीक है। प्रवेश शुल्‍क: भारतीयों के लिए 5 रु. तथा विदेशियों के लिए 100 रु., समय: सूर्योदय से सूर्यास्‍त तक।

52 दरवाजों का शहर:संभाजीनगर

शहर में बहुत से दरवाजों का अवशेष भी हैं। इन ध्‍वंस अवशेषों में दिल्‍ली, जालना, पैठन तथा मक्‍का ,रोशन दरवाजा शामिल है। इसके अलावा बहुत से भवनों के अवशेष भी हैं। नकोंडा पैलेस, किला अर्क तथा दामरी महल आदि का अवशेष यहाँ है।

भद्रा मारुती (लेटे हुए हनुमान)

 
भद्रा मारुती

यह धार्मिक स्थान खुलदाबाद (मूल नाम भद्रावती) में स्थित है।भक्तो में यह देवस्थान जाग्रत होने की भावना है। हनुमान जयंती के अवसर पर हर साल यहा पर महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है।

पुराने शहर में मस्जिद और दरगाह फैले हैं। जामा मस्जिद के अलावा शाह गंज मस्जिद, चौकी की मस्जिद आदि इमारतें भी देखने के योग्‍य है। शहर के उत्तर में पीर इस्‍लाम की दरगाह है।

बनी बेगम बाग

यह सुंदर बाग शहर से 24 किलोमीटर दूर खुलदाबाद में स्थित है। इसी बाग में बानी बेगम की समाधि बनी हुई है। बानी बेगम औरंगजेब की पत्‍नी थीं। इस मकबरे में भव्‍य गुंबद, पि‍लर तथा फव्‍बारे हैं। यह मकबरा दक्‍कन प्रभावित मुगल वास्‍तुशैली का सुंदर नमूना है।

औरंगाबाद की गुफाएँ

ये गुफाएँ शहर से कई किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित हैं। इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकारी की गई है। यहाँ कुल दस गुफाएँ हैं जो कि पूर्व और पश्चिमी भाग में बटा हुआ है। इन गुफाओं में चौथी गुफा सबसे पुरानी है। इस गुफा की बनावट बौद्ध धर्म के हीनयान संप्रदाय से संबंधित वास्‍तुशैली में की गई है। इन गुफाओं में जातक कथाओं से संबंधित चित्रकारी की गई है। पाँचवी गुफा में बुद्ध को एक जैन तीर्थंकर के रूप में दर्शाया गया है। प्रवेश शुल्‍क: भारतीयों के लिए 10 रु. तथा विदेशियों के लिए 100 रु., समय: सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक।

निकटवर्ती आकर्षण

दौलताबाद

दौलताबाद का किला हमेशा शक्ततिशाली बादशाहों के लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। वास्‍तव में दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्‍वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण भारत के मध्‍य में पड़ता था। यहाँ से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारण वश मुहम्‍मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। उसने दिल्‍ली की समस्‍त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहाँ की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्‍ली लाना पड़ा। इसी कारण कुछ जानकार मुहम्मद बिन तुगलक को पागल सम्राट भी कहते है। दौलताबाद में बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें हैं जिन्‍हें जरुर देखना चाहिए। इन इमारतों में जामा मस्जिद, चाँद मीनार तथा चीनी महल शामिल है। औरंगाबाद से दौलताबाद जाने के लिए प्राइवेट तथा सरकारी बसें मिल जाती हैं। प्रवेश शुल्‍क: भारतीयों के लिए 5 रु. तथा विदेशियों के लिए 5 डॉलर, समय: सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक।

खुलदाबाद

मुगल शासक औरंगजेब ने खुलदाबाद के बाहरी छोर में स्थित राउजा में खुद को गाड़ने की इच्‍छा व्‍य‍क्‍त की थी। यहाँ स्थित औरंगजेब का मूल मकबरा बहुत सादगी के साथ बनाया गया था। इस मकबरे का निर्माण औरंगजेब के खुद के कमाए पैसे से हुआ था। औरंगजेब ने टोपी बनाकर तथा कुरान की हस्‍तलिपि तैयार कर पैसे कमाए थे। मकबरे के बाहर स्थित दुकानों से इस मकबरे की छोटी अनुकृति प्राप्‍त की जा सकती है।

पैठण

पैठण जोकि पहले प्रतिष्‍ठान के नाम से जाना जाता था, मराठवाड़ा का सबसे प्राचीन शहर है। ईसा मसीह के जन्‍म के पूर्व ही एक बार ग्रीक व्‍यापारी यहाँ आए थे। पुराने पैठण शहर की कुछ ऐतिहासिक भवनें अभी भी शेष है। इन भवनों में संत एकनाथ मंदिर तथा मुक्‍तेश्‍वर मंदिर शामिल हैं।

 
संत एकनाथ मंदिर, पैठण

संत एकनाथ मंदिर का गोदावरी नदी के तट पर है। यहाँ आने पर उस कुंड को जरुर देखना चाहिए जहाँ संत एकनाथ ने 1598 ई. में जल समाधि ली थी। पैठण शहर महाराष्ट्रियन साड़ी के लिए भी प्रसिद्ध है। इस साड़ी को बनाने की प्रेरणा अजंता गुफा में की गई चित्रकारी से मिली थी। इस साड़ी के संबंध में एक अनुश्रुति भी है। इस अनुश्रुति के अनुसार एक बार पार्वती को एक अप्‍सरा की शादी में पहनने के लिए नई साड़ी नहीं थी। इस बात को जानकर शिव ने अपने बुनकर को पार्वती के लिए एक नए प्रकार की साड़ी बनाने का आदेश दिया। तभी से इस साड़ी का प्रचलन माना जाता है। अगर आप महाराष्ट्रियन साड़ी खरीदना चाहते हैं तो 'पैठण डिजायन सह प्रदर्शनी केंद्र' जाएं। यहाँ रेडीमेड साड़ियाँ मिलती है और ऑर्डर पर भी साड़ी बनाई जाती है।

अजंता तथा एलोरा गुफाएँ

अजंता (अजिंठा) गुफा की खोज जॉन स्मिथ ने 19वीं शताब्‍दी में की थी। ये गुफाएँ चारकोलिथ पत्‍थरों की बनी हुई हैं। इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकारी की गई है। ये चित्र अभी सुरक्षित अवस्‍था में हैं। एक चित्र में मरणाशन राजकुमारी को चित्रित किया गया है। एक अन्‍य चित्र में लोगों को बुद्ध से दीक्षा लेते हुए दिखाया गया है। कुछ चित्रों में आम लोगों को भी दिखाया गया है। इन चित्रों को देखने से उस समय के समाज को समझने में भी मदद मिलती है। अजंता के समान एलोरा (वेरुल) की गुफाएँ भी महत्‍वपूर्ण हैं। लेकिन इन गुफाओं में बौद्ध धर्म से संबंधित चित्रकारी नहीं मिलती है। इन गुफाओं में मुख्‍यत: हिंदू धर्म से संबंधित चित्रकारी की गई है। यहाँ रामायण और महाभारत से संबंधित चित्र मिलते हैं। एलोरा का संबंध छत्रपती शिवाजी महाराज से भी है। यह छत्रपती शिवाजी महाराज का पैतृक स्‍थान है। छत्रपती शिवाजी महाराज के दादाजी मालोजी भोंसले वेरुल गाँव (जोकि अब एलोरो के नाम से जाना जाता है) में रहते थे। महाराष्‍ट्र पर्यटन विकास निगम प्रति वर्ष मार्च महीने के तीसरे सप्‍ताह में नृत्‍य और संगीत से संबंधित एक उत्‍सव का आयोजन यहाँ करता है।

लोनार झील

माना जाता है कि‍ 50,000 वर्ष पहले आकाश से 20 लाख टन का एक उल्‍कापिंड गिरने से एक विशाल गड्ढा का निर्माण हुआ था। आज यह जगह एक झील का रूप ले चुका है। इस क्षेत्र को स्‍थानीय लोग लोनार देवी का क्षेत्र मानते हैं। स्‍थानीय लोग लोनार देवी की उपासना करते हैं। यहाँ पर कई अन्‍य मंदिर भी है। इनमें गणपति, नरसिम्‍हा तथा रेणुकादेवी मंदिर शामिल है। गायमुख तथा दैत्‍यासुदाना मंदिर लगभग नष्‍ट ही हो गया है। लेकिन इन मंदिरों में अभी भी पूजा की जाती है। अगर आप यहाँ आए तो इन मंदिरों को जरुर देखें। इस झील के कई रहस्‍यमय सवालों का उत्तर खोजा जाना अभी बाकी है। उदाहरणस्‍वरुप, कोई नहीं जानता कि बुलढाना के सुखाग्रस्‍त होने के बावजूद इस झील में कैसे सालोंभर पानी रहता है? माना जाता है किसी स्रोत से इस झील में पानी आता है लेकिन उस स्रोत का अभी तक पता नहीं लगाया जा सका है। इससे भी बड़ा आश्‍चर्य यह है कि इस झील के पानी का पीएच मान एक समान नहीं, बल्कि भिन्न-भिन्न है। अगर आपको विश्‍वास नहीं हो तो आप इसे लिटमस पेपर के माध्‍यम से चेक कर सकते हैं। इस झील के बारें में एक अनुश्रुति भी प्रचलित है। इस अनुश्रुति के अनुसार इस झील की प्रसिद्धि को सुनकर अकबर ने इस झील के हरे पानी से साबुन बनाने का निर्देश दिया था जिससे वह स्‍नान करता था।

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ

सन्दर्भ

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से पुरालेखित 3 जुलाई 2019. अभिगमन तिथि 28 अक्तूबर 2021.सीएस1 रखरखाव: BOT: original-url status unknown (link)," Ashutosh Goyal, Data and Expo India Pvt. Ltd., 2015, ISBN 9789380844831
  2. Mystical, Magical Maharashtra Archived 2019-06-30 at the वेबैक मशीन, Milind Gunaji, Popular Prakashan, 2010, ISBN 9788179914458
  3. Hunter, William Wilson, Sir, et al. (1908). Imperial Gazetteer of India, Volume 18, pp 398–409. 1908-1931; Clarendon Press, Oxford