जयपुर सामंत/ जमींदार रजवाड़ा (अन्य नाम: जयपुर स्टेट) १६३० से १९४७ अवधि का भारत का एक सामंत जमींदार रजवाड़ा था। इनके पूर्वज कुशवाहा जाति से स्वयं को परिवर्तित करके राजपूत बने थे। कालांतर में राजपूतों की वंशावली में कुशवाहा जाति नाम को "कछवाहा" नाम से स्वीकर कर लिया गया। इस परिवार के लोग आज भी स्वयं को "कुशवाहा जाति वंश" से जोड़कर गौरवान्वित महसूस करते हैं। यहां का केन्द्र जयपुर नगर था। यह सोलहवी शताब्दी में मुगल शासन के दौरान मुगल साम्राज्य के सामंत के रूप में अस्तित्त्व में आया एवं १९४७ तक रहा। जयपुर के सभी सामंत मुगल शासकों के प्रति वफादार रहें थे। जयपुर का सामंत परिवार बाद में जयपुर रजवाड़े के रूप में जाना जाने लगा। जयपुर के सामंत परिवार को मुगल शासक हुमायूं के समय में राजा की उपाधि मिली। जयपुर के इसी सामंत परिवार के सामंत भारमल ने अपनी बेटी हरखा बाई का विवाह मुगल बादशाह अकबर के साथ किया था। इस विवाह के बाद इस परिवार को आगरा में एक बड़ी जागीर मिली थी जिसके अंतर्गत आनेवाली जमीन पर मुगल बादशाह शाहजहां ने ताजमहल का निर्माण करवाया। मुगल दौर में यह परिवार राजस्थान के सबसे शक्तिशाली रजवाड़े के रूप में जाना जाता था क्योंकि यहां के शासको ने मुगल सेनापतियो के रूप में लड़ाई करके मुगल शासन को काबुल तक फैला दिया था,, यहां के शासक राजा मानसिंह ने मुगल सेनापति के रूप में 105 युद्ध लड़े और किसी भी युद्ध में नही हारा,,राजा मानसिंह ने पूरी के जगन्नाथ मंदिर,की रक्षा कर उसका पुनर्निर्माण भी करवाया था,,इसके अलावा काशी विश्वनाथ के मंदिर का पुनर्निर्माण,बनारस का गोविंददेव जी का मंदिर, हरिद्वार के घाटों का निर्माण भी करवाया था,साथ ही मानसिंह में अकबर के दीन ए इलाही धर्म को भी स्वीकार नही किया था।१५७६ इस्वी में हल्दी घाटी के युद्ध में जयपुर रजवाड़े के सामंत मानसिंह ने मेवाड़ के स्वाभिमानी शासक महाराणा प्रताप सिंह के खिलाफ मुगल सेना का नेतृत्व किया था सामंत मिर्जा राजा जयसिंह ने औरंगजेब के आदेश पर हिन्दूशाही शासक छत्रपति शिवाजी को बंदी बनाकर पुरंदर की संधि के लिए बाध्य किया था इस कार्य के लिए उसे औरंगजेब के द्वारा इनाम के तौर पर आपार धन मिला था। जयपुर का राजपरिवार 16 वी सदी में अस्तित्व में आया था ।मुगलों के समय यहां का शासक सवाई जयसिंह बड़ा प्रसिद्ध हुआ जिसने ज्योतिष ज्ञान पर आधारित 5 बड़ी वेदशालाओ का निर्माण करवाया जिसमे से जयपुर जंतर मंतर को विश्व विरासत का दर्जा हासिल है,,,जयपुर के शासक जगत सिंह ने अंग्रेजो से संधि कर ली थी,, सन 1947 में भारत की आजादी के बाद यहां के शासक सवाई मानसिंह द्वितीय ने भारत संघ में मिलने का निर्णय लिया और जयपुर रियासत भारत देश का एक अंग बन गया,।इसके बाद भी सवाई मानसिंह के पुत्र ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने देश के लिए सिर्फ नाममात्र की तनख्वाह लेकर पाकिस्तान से युद्ध लड़ा और पाकिस्तान के छाछरो पर कब्जा कर लिया था इसी कारण उनको भारत के युदकाल के दूसरे सबसे बड़े वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से नवाजा गया था, भारतीय स्वाधीनता उपरान्त भारतीय संघ में विलय हो गया। इतिहास के भिन्न कालों में इसे भिन्न भिन्न नामों से जाना गया जैसे: जयपुर राज्य, आम्बेर राज्य, ढूंढाड़ राज्य एवं कछवाहा राज्य, आदि।

जयपुर रजवाड़ा
११२८–१९४७
ध्वज कुलांक
जयपुर स्टेट का मानचित्र में स्थान
भारत के इम्पीरियल गैज़ेटियर का जयपुर राज्य
राजधानी जयपुर
भाषाएँ हिन्दुस्तानी भाषा (हिन्दी-उर्दु) तथा संस्कृत बहुल की ढूंढारी-राजस्थानी बोली
शासन ब्रिटिश राज का रजवाड़ा (१८१८-१९४७)
राजतंत्र (११२८-१८१८)
महाराजा सवाई
 -  ११२८ - ११३३ दूल्हेराय
 -  १९२२ - १९४८ मान सिंह द्वितीय (अन्तिम)
इतिहास
 -  स्थापित ११२८
 -  भारत में विलय १९४७
क्षेत्रफल
 -  1931 40,407 किमी ² (15,601 वर्ग मील)
जनसंख्या
 -  1931 est. 26,31,775 
     


घनत्व

65.1 /किमी ²  (168.7 /वर्ग मील)
मुद्रा भारतीय रुपया
आज इन देशों का हिस्सा है: राजस्थान, भारत
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The City Palace, Jaipur.

जयपुर के सामंत/ जमींदारो की सूची संपादित करें

सन्दर्भ History of Rajputana by historian British Col James Tod (published 1810) संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

  • सिंह, चन्द्रमणि (२००८). जयपुर राज्य का इतिहास (प्रथम संस्करण). जोधपुर : राजस्थानी ग्रन्थागार. पपृ॰ १७६. ISBN 9788190042505 [8190042505]. मूल से 4 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 फ़रवरी 2018.