झांसी का किला
हाड़ी पर १६१३ इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। २५ वर्षों तक बुंदेलों ने यहाँ राज्य किया उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों, मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा। मराठा शासक नारुशंकर ने १७२९-३० में इस दुर्ग मर्तन किये जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रस८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।
झाँसी का किला ( महारानी लक्ष्मीबाई का दुर्ग ) | |
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बुंदेलखण्ड का भाग | |
झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत | |
निर्देशांक | 25°27′29″N 78°34′31″E / 25.4581258°N 78.5753775°E |
ऊँचाई | 285 मीटर |
स्थल जानकारी | |
स्वामित्व | भारत सरकार |
जनप्रवेश | हाँ (सुबह 7 से शाम 6 बजे तक) |
दशा | अच्छी हालत में |
स्थल इतिहास | |
सामग्री | पत्तर, चुना |
युद्ध/संग्राम | झाँसी की लड़ाई |
दुर्गरक्षक जानकारी | |
निवासी | पेशवा |
१९३८ में यह किला केन्द्रीय संरक्षण में लिया गया। यह दुर में फैमें २२ बुर्ज और दो तरफ़ रक्षा खाई हैं। नगर की दीवार में १० अलावा ६ खिड़कियाँ भीतर बारादरी, पंचमहल, शंकरगढ़, रानी के नियमित पूजा स्थल ददिर जो मराठा स्थापत्य कला के सुन्दर उदाहरण हैं।
कूदान स्थल, कड़क बिजली तोप पर्यटकों का वि घर को राजा गंगाधर के समय प्रयोग किया जाता था जिसका प्रयोग रानी ने बंद करवा दिया था।
किले के सबस ध्वज स्थल है जहाँ आज तिरंगा लसे शहर का भव्य नज़ारा दिखाई देता है। यह किला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और देखने के लिए लेना होता है
झाँसी नगर की रचना
संपादित करेंझाँसी नगर के 10 द्वार
- 1. ओरछा गेट
सुल्तान मस्जिद नजदीक झांसी नगर का पुराना द्वार ओरछा द्वार है। इसका नाम मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के ओरछा जिले पर रखा गया है।
मार्च १८५८ को ह्यु रोज अपनी विशाल सेना लेकर झांसी राज्य की सीमा पर खडा था। तब महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने सभी विश्वासपात्र सेवकों को झांसी नगर के १० द्वार की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा था। उस समय ओरछा द्वार की जिम्मेदारी राव दुल्हाजू पर थी। इतिहास में लिखा है की, राव दुल्हाजू ने कुछ धन के लिए महारानी लक्ष्मीबाई तथा मातृभूमि से गद्दारी की और ओरछा द्वार खोल दिया। उस समय ह्यूरोज अपनी विशाल सेना के साथ झांसी नगर में दाखिल हुआ। अगले युध्द के बाद रानी लक्ष्मीबाई को झांसी छोडकर जाना पडा। लेकिन राव दुल्हाजू की इस घटना का इतिहास तथा ऐतिहासिक दस्तावेज में कहीं पर भी प्रमाण नहीं मिलता।
- 2. लक्ष्मी गेट
लक्ष्मी तालाब, श्री महालक्ष्मी मंदिर तथा महाराज गंगाधरराव की समाधी के नजदिक झांसी नगर का पुराना द्वार लक्ष्मी द्वार है। इस द्वार के नजदिक झांसी नेवालकर राजपरिवार की कुलदेवी श्री महालक्ष्मी अंबाबाई का मंदिर है। महारानी लक्ष्मीबाई जब भी इस मंदिर में आती तो द्वार के नजदीक खडे सभी गरीबों को टोपी, कम्बल, वस्त्र, मोतीचूर लड्डू तथा धन दान किया करती।
और लोग खुशी से गा उठते थे जिसने सिपाही लोगों को मलाई खिलाई अपने खाई गुड़-घानी अमर रहे झाँसी की रानी।
- 3. भांडेरी गेट
काली माता मंदिर तथा हनुमान मंदिर के नजदिक झांसी नगर का पुराना द्वार भांडेरी द्वार है। ४ अप्रैल १८५८ को महारानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र को पिठपर बांधकर झांसी किले से कुदकर इसी द्वार से झांसी नगर छोडकर कालपी चली गयी थी।
- 4. दतिया गेट
गुलाम गौस खान पार्क के नजदीक झांसी नगर का पुराना द्वार दतिया द्वार है। इसका नाम मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के दतिया जिले पर रखा गया है।
- 5. बडागांव गेट (झरना गेट)
बारी मस्जिद तथा महाकाली मंदिर नजदिक झांसी नगर का पुराना द्वार बडागाव द्वार है।
- 6. उन्नाव गेट
उन्नाव मस्जिद तथा ठाकुर बाबा मंदिर के नजदिक झांसी नगर का पुराना द्वार उन्नाव द्वार है। इसका नाम उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले पर रखा गया है।
- 7. खंडेराव गेट
झांसी किला, इंद्रापुरी नगर, महारानी लक्ष्मीबाई बालिका इंटर कॉलेज, तथा पंचकुईया मंदिर समीप झांसी नगर का पुराना द्वार खंडेराव द्वार है।
- 8. सैंयर गेट
मिनर्वा मार्ग, झोकनबाग नजदीक झांसी नगर का पुराना द्वार सैंयर द्वार है। इस द्वार के नजदीक झोकनबाग है जहां पर ८ जून १८५७ को ६० अंग्रेज़ अफसर तथा उनके परिवार की हत्या हुई थी।
- 9. चाँद गेट
राजा रघुनाथराव महल के नजदीक झांसी नगर का पुराना द्वार चाँद द्वार है। इस द्वार के उपर आफताब बानो बेगम उर्फ महारानी लछ्छोबाई ईद के मौके पर चांद का दीदार किया करती थी। इसलिए इस द्वार का नाम चाँद द्वार रखा गया।
- 10. सागर गेट
हनुमान मंदिर तथा सागर खिडकी मस्जिद के नजदिक झांसी नगर का पुराना द्वार सागर द्वार है। इसका नाम मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड के सागर जिले पर रखा गया है। कुछ लोगों के आधार पर यहा विख्यात डाकू सागर सिंह की दहशत थी। इसलिए इसका नाम सागर सिंह के नाम पर रखा गया है।
यह वही सागर सिंह है जिसे पकडने के लिए महारानी लक्ष्मीबाई सारंगी घोडी पर सवार हुई थी। तब सागर सिंह ने बेतवा नदी में छलांग लगाई। महारानी लक्ष्मीबाई अपनी घोडी सारंगी के साथ उस नदी में कुदी और सागर सिंह को पकडकर ले आयी।
झाँसी नगर की खिडकीयां
- 1. भैरव खिडकी
झांसी नगर के परकोटे में स्थित यह खिडकी, भैरव खिडकी के नाम से जानी जाती है।
- 2. सुजनखान खिडकी
झांसी नगर के परकोटे की यह खिडकी सुजनखान के नाम से विख्यात है। कहा जाता है की सुजनखान महारानी लक्ष्मीबाई की सेना में सैनिक थे। १८५७ के संग्राम में अग्रेजों से इन्होंने ने लोहा लिया था।
- 3. सागर खिडकी
झांसी नगर के परकोटे की यह खिडकी, सागर खिडकी के नाम से विख्यात है। सागर द्वार के नजदीक यह खिडकी है। यहा प्रसिध्द पुरानी मस्जिद मौजूद है। सागर सिंह से भी इतका संबध जोडा जाता है।
- 4. बिल्लयां खिडकी
झांसी नगर के परकोटे में स्थित यह खिडकी, बिल्लयां खिडकी के नाम से जानी जाती है।
- 5. गणपतगिरी खिडकी
झांसी नगर के सुरक्षा रक्षक दिवार में यह खिडकी है। मराठा साम्राज्य का झांसी में विस्तार होने के पुर्व यहां गोसाईं लोग रहा करते थे। इसी गोसाईं समाज के एक व्यक्ती गणपत गोसाईं महारानी लक्ष्मीबाई के सैन्यदल के सैनिक थे। वह इस खिडकी के यहां तैनात रहते थे। उनकी वीरता तथा पराक्रम से प्रभावित होकर महारानी लक्ष्मीबाई ने इस खिडकी का नाम "गणपतगिरी खिडकी" रखा था।
- 6. अलिगोल खिडकी
झांसी नगर के परकोटे में स्थित झोकनबाग के नजदीक यह खिडकी, इसका नाम अलीगोल की खिडकी कहां जाता है। यहां झांसी की पुरानी मजार तथा मस्जिद मौजूद है।
महाराजा रघुनाथराव महल
संपादित करें- रघुनाथराव महल, हाथीखाना, चांद दरवाजा
झांसी के झोकनबाग के नजदीक यह भव्य महल खंडहर के रूप में मौजूद है। यह महल १८ वी शताब्दी में झांसी के राजा रघुनाथराव नेवालकर तृतीय ने अपनी प्रेमिका के लिये बनवाया था। इस महल में मुख्य रूप से हाथीखाना हुआ करता था। बाद में यहां महल बनवाया गया। यह महल दो प्रेमियों के प्रेम की निशानी है।
राजा रामचंद्रराव के समय में महाराज रघुनाथराव नृत्य, मुजरा और महाराज गंगाधरराव नाटक में व्यस्थ रहा करते थे। रामचंद्रराव को झांसी का "महाराजा" घोषित किया गया था। इसलिए महल में एक विशाल समारोह रखा गया था। इस समारोह में मोतीबाई बेगम, गजराबाई बेगम और लछ्छोबाई बेगम ने नृत्य किया था। दरबार में राजा रघुनाथराव लछ्छोबाई के सुंदरता पर मोहित हुऐ। और दोनों के प्यार की कहानी शुरू हुई।
राजा रघुनाथराव नेवालकर की पत्नी महारानी जानकीबाई यह निपुत्रिक थी। तथा वह स्वयं झांसी पर राज करना चाहती थी। सत्ता की लालसा में उसने झांसी के वारीस को भी जनम नहीं दिया था। इसलिए रघुनाथराव की प्रेम कहानी मुस्लिम महिला लछ्छोबाई के साथ शुरू हुई थी। लेकिन झांसी राजपरिवार ने इनके प्यार को तथा लछ्छोबाई को कभी स्वीकार नहीं किया। लछ्छोबाई का सदैव तिरस्कार किया गया।
महाराज रामचंद्रराव के मृत्यु के पश्चात अंग्रेज़ों ने झांसी की गद्दीपर रघुनाथराव को बिठाया। और उन्हे "फिदवी महाराजा इंग्लिशस्तान" की उपाधी दी। रघुनाथराव महाराज बनते ही लछ्छोबाई को सम्मान देने के लिए हाथीखाना में एक विशाल महल बनवाया। इस महल में केवल लछ्छोबाई रहती थी। लछ्छोबाई का महल में प्रवेश करते ही रघुनाथराव ने लछ्छोबाई को महारानी का दर्जा देकर उसका नाम आफताब बानो बेगम नाम रखा था। लेकिन वह लछ्छोबाई नाम से विख्यात हुई। प्रारंभ में यह महल लछ्छोबाई महल या आफताब महल के नाम से जाना जाता था।
इस रानीवास महल में अनेक कक्ष थे। एक समय में यह महल रानी लक्ष्मीबाई के रानी महल से भी अधिक खुबसूरत दिखता था। महल की सुरक्षा हेतू भव्य सुरक्षा दिवार बनाई गयी थी। लछ्छोबाई की सेवा में अनेक दासियां इस महल में रहती थी। रघुनाथराव व लछ्छोबाई ने अपने जीवन का अधिक समय इसी महल में व्यतीत किया था।
ईद के शुभ अवसर पर महारानी लछ्छोबाई इस महल के मुख्य प्रवेश द्वार पर ईद के चाँद का दिदार करने जाती थी। इसलिए इस दरवाजे का नाम "चाँद दरवाजा" रखा गया। इसी महल महल में महारानी लछ्छोबाई ने अली बहादुर, नुसरत और मेहरूनिस्सा नामक बच्चे को जनम दिया था।
महारानी लक्ष्मीबाई के शासन में इस महल में घोडेस्वार सेना और मुस्लिम पठान सेना रहती थी। १८५७-५८ के युध्द में महल का काफी नुकसान हुआ था। आज भी अतिक्रमण की वजह से महल की सुंदरता बिखर रही है।
झाँसी के महाराजा तथा नेवाळकर वंश
संपादित करेंमराठा नेवालकर घराना एवं झाँसी राजवंश
- नाम : नेवालकर घराणा
- साम्राज्य : मराठा साम्राज्य
- कुळ : मराठी कऱ्हाडे ब्राम्हण
- कुलदेवी : श्री महालक्ष्मी अंबाबाई कोल्हापूर
- कुलदेवता : श्री लक्ष्मी पल्लीनाथ रत्नागिरी
- ग्राम देवता : श्री नवलाई माऊली, कोट
- उपासक : महादेव, श्री गणेश
- मुळनिवासी : पावस, राजापूर, रत्नागिरी, महाराष्ट्र
- रहिवासी : कोट रत्नागिरी, पारोला जलगांव, झांसी
- जहागीरदार : पारोला, जलगांव, महाराष्ट्र
- राजगद्दी :- झाँसी, बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश
- शासन काल : १७६९-१८५८
- मुळपुरुष : रघुनाथ हरी नेवालकर प्रथम
- प्रथम सुभेदार : रघुनाथराव हरी हरीपंत नेवालकर द्वि.
- अंतिम सुभेदार : शिवराव हरीपंत नेवालकर
- प्रथम राजा : राजा शिवराव हरीपंत नेवालकर
- अंतिम राजा : राजा रामचंद्रराव नेवालकर
- प्रथम महाराज : महाराज रामचंद्रराव नेवालकर
- अंतिम महाराज : महाराज गंगाधरराव नेवालकर
- प्रसिध्द व्यक्ती :- झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई
"झांसी की रानी" महाश्वेता देवी के उपन्यास पर आधारित नेवालकर वंश
1. प्रथम रघुनाथ हरी नेवालकर (मुलपुरुष घराणे)
नेवालकर परिवार के मुलपुरूष थे। इनके दो पुत्र थे। एक "खंडेराव" दुसरा "दामोदरपंत"
( रघुनाथ हरी नेवालकर के पुत्र खंडेराव का वंश - पारोला, जलगांव के जहागीरदार के रूप में थे। )
खंडेराव का वंश (पारोला, जलगांव)
2. खंडेराव रघुनाथ हरी नेवालकर
यह रघुनाथ हरी के पुत्र थे। इनका पुत्र था रामचंद्र राव।
3. रामचंद्र राव खंडेराव नेवालकर
यह खंडेराव के पुत्र थे। इनका पुत्र था आनंदराव।
4. आनंदराव रामचंद्र राव नेवालकर
यह खंडेराव रामचंद्र राव के पुत्र थे। आनंदराव को दो पुत्र थे। एक हरी भाऊ काशीनाथ, और दुसरे वासुदेव राव।
5. हरी भाऊ काशीनाथ नेवालकर ( लालभाऊ )
१८५२ में इन्हे झांसी अंतर्गत मऊ रानीपूर का तहसीलदार नियुक्त किया था। इनकी पत्नी १८७१ में झांसी से इंदौर रहने गयी थी. इंदौर में स्थित इनकी पत्नी ने बाद में रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव की देखरेख की थी।
6. वासुदेव आनंदराव नेवालकर
यह पारोला, जलगांव के जहागिरदार थे। १५ नवम्बर १८४९ आनंदराव नामक पुत्र हुआ। जो बाद में दामोदर राव नाम से रानी लक्ष्मीबाई का दत्तक पुत्र बना।
रघुनाथ हरी नेवालकर के दूसरे पुत्र दामोदरपंत का वंश
दामोदरपंत का वंश (झांसी राजघराना आरंभ)
7. दामोदरपंत रघुनाथ हरी नेवालकर
यह प्रथम रघुनाथ हरी नेवालकर के दुसरे पुत्र थे। इन्हे दो पुत्र थे। "राघोपंत", "सदाशिवपंत" और "हरीपंत"
8. राघोपंत दामोदरपंत नेवालकर
राघोपंत की एक युध्द में मृत्यु हुई थी।
सदाशिवपंत का वंश ( पारोला, जलगांव)
9. सदाशिवपंत दामोदरपंत नेवालकर
यह प्रथम रघुनाथ हरी नेवालकर के दुसरे बेटे दामोदरपंत के पुत्र थे। यह भी पारोला की जाहगीरदार संभालते थे। इनके पुत्र थे त्र्यंबकराव। इन्होनें १७२६ में पारोला का किला का निर्माण किया था।
10. त्र्यंबकराव सदाशिवपंत नेवालकर
यह सदाशिवपंत के पुत्र थे। इनके पुत्र का नाम था नारायणराव।
11. नारायणराव त्र्यंबकराव नेवालकर
यह त्र्यंबकराव के पुत्र थे। इनके पुत्र का नाम था सदाशिवराव।
12. सदाशिवराव नारायणराव नेवालकर
१८४४-५७ तक यह पारोला, जलगांव के जहागिरदार थे। १८३५, १८३८ तथा १८५३ में झाँसी नरेश राजा गंगाधर राव के पुत्र कि निधन होने के पश्चात इन्होंने ने झाँसी सिंहासन की दावेदारी की। १३ जून १८५७ को झाँसी के समीप करेरा किले पर आक्रमण करके राजशाही की घोषणा कर दी। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने सदाशिव नारायण का विद्रोह मिटाकर उसे बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया था। १८५८ मे रानी की शहादत के पश्चात अंग्रेज़ों ने इसे झांसी किले की जेल से निकालकर कमिश्नरी में रखा था। १८६० में अंग्रेजों ने उसे अंदमान भेज दिया था। जहां उसकी मृत्यु हुई थी।
हरीपंत का वंश (झांसी का राजघराना) '
13. हरीपंत दामोदरपंत नेवालकर
यह दामोदरपंत के पुत्र थे। इन्हे तीन पुत्र थे। रघुनाथराव द्वितीय, शिवराव, लक्ष्मणराव (लालाभाऊ)
14. सुभेदार रघुनाथराव हरीपंत नेवालकर द्वि.(१७७०-९६)
(नेवालकर परिवार के पहले सुभेदार थे)
यह हरीपंत के पुत्र थे। यह झांसी के नेवालकर परीवार के पहले सुभेदार थे। पेशवा ने इन्हे झांसी राज्य की सुभेदारी दी थी। झांसी मे गोसावी का विद्रोह इन्होने समाप्त किया था। और झांसी में मराठा शाही की स्थापना की। यह निपुत्रिक थे। इसलिए झांसी का कारभार पेशवा ने इनके भाई शिवराव को दिया था।
15. राजा शिवराव हरीपंत नेवालकर (१७९६-१४)
(नेवालकर परिवार से झाँसी के पहले राजा)
यह हरीपंत के दुसरे पुत्र थे। यह द्वितीय रघुनाथराव नेवालकर द्वितीय के भाई थे। झांसी के यह अंतिम सुभेदार थे। पेशवा से मतभेद की वजह से इन्होंने ६ फरवरी १८०४ को अंग्रेजों की मदत से झांसी राज्य की गद्दी वंशानुगत करा ली थी। और यह झांसी राज्य के पहले राजा बने। इनके दो विवाह हुए थे। पहली पत्नी रखमाबाई से कृष्णराव और द्वितीय पत्नी पद्माबाई से रघुनाथराव तृतीय, गंगाधर राव हुए।
16. लक्ष्मणराव हरीपंत नेवालकर ( लालाभाऊ )
यह हरीपंत के पुत्र थे। पारोला के जहागीरदार थे। अंग्रेजों ने लालाभाऊ रानी लक्ष्मीबाई के परिवार सदस्य होने के कारण १८५९ पारोला की जहागीरदारी समाप्त कर दी गयी थी।
रघुनाथराव द्वितीय एवं शिवराव भाऊ नेवालकर का झाँसी का राजवंश
17. राजा कृष्णराव शिवराव नेवालकर
यह शिवराव भाऊ और उनकी पहली पत्नी रखमाबाई के पुत्र थे। यह झांसी के दुसरे राजा थे। इनकी पत्नी थी महारानी सखुबाई। काहां जाता हैं की सखुबाई बहुत षड्यंत्री थी। झांसी गद्दी के लिए सखुबाई ने अपने पती और पुत्र की हत्या करवाई थी और स्वयं झांसी की रानी बनकर राजपाल देख रही थी। किंतू अंग्रेजों की वजह से सखुबाई ने अपनी बेटी के पुत्र यानी पौत्र को झांसी का वारिस बनाया। कृष्णराव और सखुबाई के पुत्र थे रामचंद्र राव और कन्या गंगाबाई थी। गंगाबाई का सागर के सुभेदार मोरेश्वर विनायक राव चांदोरकर से विवाह हुआ था।
18. महाराज रामचंद्रराव कृष्णराव नेवालकर (१८११-३५) (नेवालकर परिवार से प्रथम झाँसी महाराजाधिराज)
इनका जन्म १८०६ में हुआ था। माता सखुबाई द्वारा पिता कृष्णराव की हत्या के पश्चात झांसी गद्दी पर यही बैठे थे। १८ नवम्बर १८१७ इन्होंने अंग्रेजों से संधी करके इन्होंने झांसी राज्य में राजशाही स्थापित की थी। १८३२ में अंग्रेज़ों ने इन्हें "महाराजाधिराज" पदवी देकर झांसी राज्य का महाराज घोषित कर दिया था। रामचंद्रराव को यह झांसी के पहले महाराजा थे। कृष्णराव की पत्नी का नाम था रानी लक्ष्मीबाई जो निपुत्रिक थी। १८३५ में रानी सखुबाई द्वारा इनकी हत्या करवाई गयी थी। परीवार क्लेश की वजह से रानी लक्ष्मीबाई झांसी राज्य छोडकर चली गयी थी। सखुबाई ने रामचंद्र के नाम से अपने पौत्र को गद्दी पर बिठाया था।
19. चंद्रकृष्णराव रामचंद्रराव नेवालकर
यह रानी सखुबाई की पुत्री सागर सुभेदार मोरेश्वर विनायक राव चांदोरकर की पत्नी गंगाबाई के पुत्र थे। रानी सखुबाई ने रामचंद्रराव के नाम से चंद्रकृष्णराव को दत्तक पुत्र बनाकर झांसी गद्दी पर बिठाया। अंग्रेजों ने इसे झांसी का वारिस नामुंजरी दी थी। और कृष्णराव के भाई रघुनाथराव तृतीय को राजगद्दी पर बिठाया।
20. महाराज रघुनाथराव शिवराव नेवालकर तृतीय.(१८३५-३८)
यह शिवराम भाऊ नेवालकर की दुसरी पत्नी पद्माबाई के पुत्र थे। इनका जन्म १८०३ में हुआ था। अंग्रेजों ने राजगद्दी पर बिठाया था। अंग्रेजों ने इन्हे "फिदवी बादशहा जमजाह इंग्लिशस्तान" यह खिताब दिया था। इनकी पत्नी थी महारानी जानकीबाई। यह निपुत्रिक थी। और झांसी राज्य की दावेदार थी। इसी कारण रघुनाथराव का संबंध झांसी की प्रसिध्द वेश्या गजराबाई उर्फ लछ्छोबाई से था। रघुनाथराव को लछ्छोबाई से अली बहादुर, नुसरत और मेहरूनिस्सा नामक एक बेटी थी। लछ्छोबाई अपने पुत्र अली बहादूर को झांसी राज्य का राजा बनाना चाहती थी। लेकिन उसे अंग्रेज़ों ने नाजायज संतान घोषित किया। महाराज रघुनाथराव कुष्ठरोगी थे। १८३८ में इनकी मृत्यु हुई।
21. महाराज गंगाधरराव शिवराव नेवालकर (१८३८-५३)
इनका जनम १८१३ में हुआ था। यह शिवरावभाऊ की दुसरी पत्नी पद्माबाई के पुत्र थे। रघुनाथराव तृतीय के मृत्यु के पश्चात अंग्रेज़ों ने १८३८ को गंगाधर राव को राजगद्दी पर बिठाया। और झांसी राज्य के सारे अधिकार कंपनी सरकार के हाथ गये। इनकी पहली पत्नी महारानी रमाबाई निपुत्रिक थी। उनके निधन के बाद महाराज ने १८४२ में मनिकर्णिका नामक कन्या से विवाह किया। जो बाद में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बनी। महाराज और रानी लक्ष्मीबाई को पुत्र हुआ जिसका तीन माह की आयु में निधन हुआ। महाराज ने वासुदेव के पुत्र आनंदराव को लिया था। २१ नवम्बर १८५३ को महाराज गंगाधरराव का निधन हुआ था।
22. महारानी लक्ष्मीबाई गंगाधरराव नेवालकर (१८५३-५८)
खुब लडी मर्दानी झाँसी वाली रानी.... नाम से प्रसिद्ध मनिकर्णिका का जन्म मोरोपंत तांबे और भागिरथीबाई के घर १९ नवम्बर १८३५ को हुआ था। १८४२ में झांसी नरेश से विवाह के पश्चात इनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया। यह महाराज गंगाधरराव की द्वितीय पत्नी थी। इनका पुत्र दामोदर राव की तीन माह की आयु में मृत्यु हुई। वासुदेव के पुत्र आनंदराव को गोद लेकर उसका नाम दामोदर रखा। महाराज गंगाधर राव की मृत्यू के पश्चात रानी लक्ष्मीबाई ने एक साल (२१ नवम्बर १८५३-१० मार्च १८५४) तक झांसी का राज पाठ संभाला। बाद में अंग्रेज़ों ने दामोदर राव को उत्तराधिकारी न मानते हुए रानी को निष्कासित कर के रानी महल भेज दिया। और झांसी का अधिकार कंपनी के हाथ गया। १८५७ के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महारानी ने अहम भूमिका निभाई थी। इस के पश्चात (४ जून १८५७-४ अप्रैल १८५८) तक रानी का झांसी पर शासन था। १८५८ में अंग्रेजों ने झांसी पर हमला किया। रानी ने झांसी से क्रमशः कोंच, कालपी और ग्वालियर युध्द किया। १७ जून १८५८ को ग्वालियर के कोटा की सराय में अंग्रेज़ों से लडते हुए रानी लक्ष्मीबाई शहीद हुई। यह झाँसी की अंतिम शासक थी।
23. दामोदर राव गंगाधरराव नेवालकर ( १८५१ )
इनका जन्म १८५१ में हुआ था। यह रानी लक्ष्मीबाई और गंगाधरराव के पुत्र थे। तीन माह की आयु में इनका निधन हुआ।
24. आनंदराव गंगाधरराव नेवालकर (१८४९-१९०६)
१५ नवम्बर १८४९ को वासुदेव नेवालकर के घर इनका जन्म हुआ था। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और महाराज गंगाधरराव ने २० नवम्बर १८५३ इन्हे गोद लेकर अपने मृत शिशु के नाम पर दामोदर राव नाम रखकर झांसी राज्य का उत्तराधिकारी घोषित किया। १८५७-५८ के संग्राम में दामोदर राव को महारानी लक्ष्मीबाई ने अपने पीठ पर बांधकर अंग्रेज़ों से युध्द किया था। लंबे संघर्ष के बाद २८ मई १९०६ में इंदौर में इनका निधन हुआ। इनके पुत्र थे "लक्ष्मणराव झांसीवाले" आज भी इनका वंश इंदौर में है।
अन्य झाँसी की रानी
संपादित करें1. रानी रखमाबाई
यह सुभेदार शिवराव भाऊ नेवालकर की पहली पत्नी थी। इनका पुत्र था कृष्णराव। यह रानी सखुबाई की सांस थी।
यह सुभेदार शिवराव भाऊ नेवालकर की द्वितीय पत्नी थी। इनके पुत्र थे रघुनाथराव तृतीय और गंगाधरराव। यह रानी लक्ष्मीबाई तथा रानी जानकीबाई की सांस थी।
3. रानी सखुबाई
यह सुभेदार कृष्णराव की पत्नी और झांसी के पहले राजा रामचंद्र राव की मां थी। राजगद्दी के लालच में इसने अपने पती एवं पुत्र की हत्या करवाई थी। यह झांसी राजगद्दी की दावेदार थी।
यह झांसी के प्रथम महाराज रामचंद्र राव की पत्नी थी। यह निपुत्रिक थी। रामचंद्र राव की मृत्यु के पश्चात यह १८३५ में झांसी छोडकर चली गई।
यह महाराज रघुनाथराव तृतीय की पत्नी थी। यह निपुत्रिक थी। यह भी झांसी राजगद्दी की दावेदार थी।
6. आफताब बेगम उर्फ रानी लछछोबाई
यह एक वेश्या थी। और रघुनाथराव तृतीय के समय मोतीबाई और गजराबाई के साथ झांसी दरबार में नृत्य करती थी। महाराज रघुनाथराव तृतीय इससे बहुत प्यार करते थे। वह लछ्छोबाई को प्यार से आफताब बेगम के नाम से बुलाते थे। रघुनाथराव ने इसके लिए झांसी में एक महल बनवाया। आज वो महल रघुनाथराव महल के नाम से जाना जाता है। उस महल के दरवाजेरपर आफताब बेगम ईद के दिन चांद का दिदार करती थी। इसलिए उस दरवाजे का नाम चांद दरवाजा रखा गया। इन्हे अली बहादूर, नुसरत नामक पुत्र और मेहरूनिस्सा नामक कन्या थी। यह अपने पुत्र अली बहादुर को राजा बनाने के अग्रणी थी। यह भी झांसी राजगद्दी की दावेदार थी।
यह महाराज गंगाधर राव की पहली पत्नी थी। इनकी निसंतान मृत्यु हुई थी। इसलिए महाराज ने दुसरा विवाह किया था।
8. वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाईसाहेब (रानी लक्ष्मीबाई)
यह महाराज गंगाधरराव की दुसरी पत्नी एवं विधवा थी। साधारण ब्राम्हण की पुत्री, पत्नी, माँ, महारानी, प्रजा की राजमाता और कुशल, कर्तबगार, कर्तुत्ववान प्रशासक के साथ वह एक महान क्रांतीकारी थी। वह एक देशभक्त थी। अंग्रेज सरकार इस वीरांगना से डरते थे। महारानी लक्ष्मीबाई ने अनेक बडे बडे अंग्रेज़ों को दाँतों तले लोहे के चने चबवाये थे। भारत देश की आजादी की लडाई में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। नेवालकर परिवार की यह प्रसिध्द व्यक्ती थी। झाँसी की यह आखरी शासक थी। झाँसी राज्य आज इन्हीं के नाम से जाना जाता है।