डगशाई

भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश में स्थित एक नगर

डगशाई (Dagshai) भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य के सोलन ज़िले में स्थित एक छावनी नगर है। यह हिमाचल प्रदेश के सबसे पुराने छावनी नगरों में से एक है। यह 5,689 फुट (1,734 मीटर) ऊँची पहाड़ी की चोटी पर स्थित है, जो सोलन से लगभग 11 किमी की दूरी पर कालका-शिमला राजमार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग 5) पर स्थित है। इसकी स्थापना 1847 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह से पांच गांवों को मुफ्त में हासिल करके की थी। इन गांवों के नाम थे डब्बी, बधतियाला, चुनावड़, जवाग और डगशाई। नई छावनी का नाम डगशाई के नाम पर रखा गया था, क्योंकि यह पांचों गाँवों में सबसे बड़ा और इसकी अवस्थिति रणनीतिक रूप से सबसे उचित थी।[1][2]

डगशाई
Dagshai
डगशाई और कुमारहट्टी
कुमारहट्टी दगशाई रेलवे स्टेशन
कुमारहट्टी दगशाई रेलवे स्टेशन
डगशाई is located in हिमाचल प्रदेश
डगशाई
डगशाई
हिमाचल प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 30°53′N 77°03′E / 30.88°N 77.05°E / 30.88; 77.05निर्देशांक: 30°53′N 77°03′E / 30.88°N 77.05°E / 30.88; 77.05
देश भारत
प्रान्तहिमाचल प्रदेश
ज़िलासोलन ज़िला
ऊँचाई1734 मी (5,689 फीट)
जनसंख्या (2011)
 • कुल2,904
भाषा
 • प्रचलितपहाड़ी, हिन्दी
समय मण्डलभामस (यूटीसी+5:30)

नामोत्पत्ति

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एक लोकप्रिय स्थानीय किंवदंती के अनुसार दगशाई नाम दाग-ए-शाही से लिया गया है, जिसका अर्थ शाही निशान होता है। कहा जाता है कि मुगल शासन के दौरान, अपराधियों के यहां भेजे जाने के पहले उनके माथे पर एक शाही निशान लगाया जाता था।

डगशाई में अंग्रेजों ने एक आरोग्य-निवास या सैनेटोरियम का निर्माण कराया था, जहाँ तपेदिक के रोगियों को रखा जाता था। यहाँ घाटी को देखता एक ब्रिटिश-कालीन कब्रिस्तान भी है। यह चंडीगढ़ से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। कसौली के विपरीत यह शिमला की ओर जाते समय राजमार्ग के दाईं ओर स्थित है। ऊपर जाने को खड़ी चढ़ाई वाली दो सड़कें हैं। हिमपात के समय या उसके बाद, चालकों को ऊपर जाने या नीचे उतरने के लिए गाड़ियों के पहियों पर बर्फ की जंज़ीर (स्नोचेन) लपेटनी पड़ती है। वहां एक सैन्य दल तैनात है, यहाँ आर्मी पब्लिक स्कूल नाम का एक आवासीय विद्यालय, और एक निजी स्कूल जिसे डगशाई पब्लिक स्कूल कहा जाता है, भी स्थित हैं।

डगशाई एक बहुत छोटा सा नगर है, और पहाड़ की चोटी के अधिकांश पर उपरोक्त दोनों स्कूल स्थित हैं। डगशाई में कोई होटल नहीं है, लेकिन मनोहारी दृश्यों वाले पिकनिक स्थलों की भरमार है। कुछ स्थानों से रात में पूरे पंचकूला और चंडीगढ़ की रोशनियां देखी जा सकती है। इसके अलावा, कोई भी टिम्बर ट्रेल हाइट्स और टिम्बर ट्रेल रिसॉर्ट्स, परवाणू को यहाँ से देख सकता है। कुमारहट्टी डगशाई नाम का कालका शिमला लाइन का एक रेलवे स्टेशन भी यहाँ है, जहां से डगशाई लगभग 1.5 किलोमीटर की चढ़ाई पर है। शिमला की दिशा में चलने पर अगले नगर बड़ोग और सोलन हैं। सड़क मार्ग से सोलन कुमारहट्टी से लगभग 11 किमी दूर है, और डगशाई कुमारहट्टी से लगभग 3 किमी दूर है। कुमारहट्टी से सराहन और नाहन के लिए भी सड़कें जाती हैं।

डगशाई केंद्रीय कारागार

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ब्रिटिशों ने सन 1849 में डगशाई कारागार या जेल का निर्माण रू 72875/- की लागत से करवाया था। इस कारागार में कुल 54 कैदकक्ष हैं। प्रत्येक कैदकक्ष 8x12 फुट का है और जिसकी छत 20 फुट ऊँची है। हर कैदकक्ष का फर्श दीमकरोधी सागौन की लकड़ी से बना है और कक्ष का द्वार ढलवां लोहे से बना है जिसे बिना किसी उपयुक्त औजार के काटना प्राय: असंभव है। रोशनी और हवा के लिए हर कक्ष में एक मजबूत खिड़की दी गयी है। एक भूमिगत पाइपलाइन के द्वारा भी बाहर की हवा को अन्दर आने की व्यवस्था की गयी है। यह जेल अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर टी के आकार का है, ऐसे निर्माण के पीछे उद्देश्य, चौकसी दस्ते द्वारा कैदियों की हर गतिविधि पर नज़र रखना था। 54 कैदकक्षों में से 11 कक्षों को कर्मचारियों के आवास के रूप में प्रयोग किया जाता था जबकि बचे हुए 43 कैदकक्षों में से 27 सामान्य और 16 एकांत कारावास के कैदियों के लिए इस्तेमाल किए जाते थे।

अंग्रेज इस कारागार में बागी सैनिकों को रखते थे। यह जेल तब सुर्खियों में आया जब यहाँ कई आयरिश विद्रोहियों को मार डाला गया था, और महात्मा गांधी भी यहाँ जेल में बंद आयरिश कैदियों से मिलने और स्थिति का जायज़ा लेने आए थे। इसके अलावा कोमागाटा मारू घटना के चार क्रांतिकारियों को भी डगशाई में फांसी दी गई थी। गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को भी इसी कारागार में रखा गया था। कहा जाता है कि गोडसे इस कारागार की अंतिम कैदी था। इस कारागार को अब आम लोगों के लिए खोल दिया गया है। यहां रोजाना बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। कारागार के साथ एक संग्रहालय है, जिसमें जेल व डगशाई से जुड़ी स्मृतियां रखी गई हैं[3]

डगशाई सेंट्रल जेल को अब सैन्य इंजीनियरिंग सेवा (एमईएस) द्वारा कनिष्ठ अभियंता के कार्यालय और गोदाम के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। वर्तमान में इस जेल का रखरखाव जीई एस/एच कसौली के तहत एमईएस द्वारा किया जा रहा है।

आयरिश सैनिकों का विद्रोह, 1920

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1920 में ब्रिटिश सेना में सेवारत आयरिश सैनिकों ने बड़े पैमाने पर आयरलैंड के स्वतंत्रता संग्राम के समर्थन में विद्रोह कर दिया था, जिसके बाद दर्जनों विद्रोहियों को डगशाई जेल में कैद कर दिया गया। 2 नवंबर 1920 को, 21 वर्षीय विद्रोही नेता जेम्स डेली-सिपाही को कारागार के प्रांगण में एक गोलीबारी दस्ते द्वारा गोली मार कर मार दिया गया, और जो वह ब्रिटिश सेना का अंतिम सदस्य था जिसे विद्रोह के आरोप में मौत की सज़ा दी थी। डेली को डगशाई कब्रिस्तान में दफनाया गया था, और 1970 में उनके अवशेषों को वापस आयरलैंड भेज दिया गया जहाँ पूरे सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।

इन्हें भी देखें

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