ताण्डव

भगवान शंकर द्वारा किया जाने वाला अलौकिक नृत्य
(ताण्डव नृत्य से अनुप्रेषित)

ताण्डव (संस्कृत : ताण्डवम्) या ताण्डव नाट्य भगवान शंकर द्वारा किया जाने वाला अलौकिक नृत्य है। नटराज रूप में शिव को ताण्डव नृत्य करते हुए निरूपित किया जाता है। नाट्यशास्त्र में ताण्डव नृत्य के विभिन्न पक्ष प्रस्तुत किये गये हैं।

ताण्डव करते हुए शिव

'ताण्डव' शब्द कुछ अन्य अर्थों में भी प्रयुक्त होता है। भारतीय संगीत में चौदह प्रमुख तालभेद में तांडवीय ताल भी है जो वीर रस तथा तथा वीभत्स रस के सम्मिश्रण से बना है। ताण्डव, एक 'घास' या तृण का नाम भी है। ताण्डव, शिव का एक नाम भी है।

पुरुषों के नृत्य को ताण्डव और स्त्रियों के नृत्य को 'लास्य' कहते हैं । ताण्डव नृत्य शिव को अत्यन्त प्रिय है। इसी कारण कोई तण्डु (अर्थात नन्दी) को इस नृत्य का प्रवर्तक मानते हैं। किसी किसी के अनुसार ताण्डव नामक ऋषि ने पहले पहल इसकी शिक्षा दी, इसी से इसका नाम ताण्डव हुआ ।

ताण्डव नामक भारतीय नृत्य-नाट्य उग्र और तीव्र गति वाला नृत्य है। जब यह नृत्य आनन्द के साथ किया जाता है, तब इसे 'अनन्द ताण्डव' कहते हैं। जब यह उग्र भावना के साथ किया जता है तब इसे 'रौद्र ताण्डव' या 'रुद्रताण्डव' कहते हैं। भारतीय ग्रन्थों में पाये जाने वले विभिन्न ताण्डव ये हैं- आनन्द ताण्डव, त्रिपुर ताण्डव, सन्ध्या ताण्डव, संहार ताण्डव, कलि ताण्डव या कलिका ताण्डव, उमा ताण्डव, शिव ताण्डव, कृष्ण ताण्डव, और गौरी ताण्डव।

शास्त्रों में प्रमुखता से भगवान् शिव को ही ताण्डव करते निरूपित किया गया है परन्तु कुछ आगम तथा काव्य ग्रंथों में दुर्गा, गणेश, भैरव, श्रीराम आदि के ताण्डव का भी वर्णन मिलता है। रावण विरचित शिव ताण्डव स्तोत्र के अलावा आदि शंकराचार्य रचित दुर्गा तांडव (महिषासुर मर्दिनी संकटा स्तोत्र), गणेश तांडव, भैरव तांडव एवं श्रीभागवतानंद गुरु रचित श्रीराघवेंद्रचरितम् में राम तांडव स्तोत्र भी प्राप्त होता है। मान्यता है कि रावण के भवन में पूजन के समाप्त होने पर शिव जी ने, महिषासुर को मारने के बाद दुर्गा माता ने, गजमुख की पराजय के बाद गणेश जी ने, ब्रह्मा के पंचम मस्तक के च्छेदन के बाद आदिभैरव ने एवं रावण के वध के समय श्रीरामचंद्र जी ने तांडव किया था।

उत्पत्ति

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संगीतरत्नाकर में ताण्डवनृत्य की उत्पत्ति के बारे में ये कहा गया है-

प्रयोगमुद्धतं स्मृत्वा स्वप्रयुक्तं ततो हरः।
तण्डुना स्वगणाग्रण्या भरताय न्यदीदिशत्॥
लास्यमस्याग्रतः प्रीत्या पार्वत्या समदीदिशत्।
बुद्ध्वाऽथ ताण्डवं तण्डोः मत्र्येभ्यो मुनयोऽवदन्॥
अर्थ : भगवान शिव ने तब उस उद्धत नृत्य का स्मरण किया जिसे उन्होंने पहले किया था, और उस नृत्य को अपने गणों में अग्रगण्य तण्डु के माध्यम से भरत को दिखाया। उनके साथ भगवती पार्वती भी थीं जिन्होंने लस्य नृत्य दिखाया। तण्डु द्वारा दिखाये गये ताण्डव नृत्य को मुनियों ने सारे मानव समाज को सिखाया।

चित्रावली

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ताण्डव नृत्य के चित्र और मूर्तियाँ
 
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इन्हें भी देखें

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