तिब्बत का इतिहास
मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित 16000 फुट की ऊँचाई पर स्थित तिब्बत का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7वीं शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में अतीश दीपंकर श्रीज्ञान और श्री विवेक बिलैया तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल 1207 ई0 में प्रांरभ हुआ। मंगोलों का अंत 1720 ई0 में चीन के माँछु प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर 1788-1792 ई0 के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके। परिणामस्वरूप 19वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी यद्यपि इसी बीच लद्दाख़ पर कश्मीर के शासक ने तथा सिक्किम पर अंग्रेंजों ने आधिपत्य जमा लिया। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया।
इतिहास के अनुसार तिब्बत ने दक्षिण में नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पड़ा और नेपाल ने इसको हराया। नेपाल और तिब्बत की सन्धि के मुताबिक तिब्बत ने हर साल नेपाल को ५००० नेपाली रुपये हरज़ाना भरना पड़ा। इससे आजित होकर नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से सहायता माँगी। चीन के सहायता से उसने नेपाल से छुटकारा तो पाया लेकिन इसके बाद 1906-7 ई0 में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार बनाया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की। 1912 ई0 में चीन से मांछु शासन अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया। सन् 1913-14 में चीन, भारत एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी दो भागों में विभाजित कर दिया गया:
- (1) पूर्वी भाग जिसमें वर्तमान चीन के चिंगहई एवं सिचुआन प्रांत हैं। इसे 'अंतर्वर्ती तिब्बत' (Inner Tibet) कहा गया।
- (2) पश्चिमी भाग जो बौद्ध धर्मानुयायी शासक लामा के हाथ में रहा। इसे 'बाह्य तिब्बत' (Outer Tibet) कहा गया।
सन् 1933 ई0 में 13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद से बाह्य तिब्बत भी धीरे-धीरे चीनी घेरे में आने लगा। चीनी भूमि पर लालित-पालित 14 वें दलाई लामा ने 1940 ई0 में शासन भार सँभाला। 1950 ई0 में जब ये सार्वभौम सत्ता में आए तो पंछेण लामा के चुनाव में दोनों देशों में शक्तिप्रदर्शन की नौबत तक आ गई एवं चीन को आक्रमण करने का बहाना मिल गया। 1951 की संधि के अनुसार यह साम्यवादी चीन के प्रशासन में एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। इसी समय से भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में हस्तक्षेप एवं कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी जो क्रमश: 1956 एवं 1959 ई0 में जोरों से भड़क उठी। परन्तु बलप्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। अत्याचारों, हत्याओं आदि से किसी प्रकार बचकर दलाई लामा नेपाल पहुँच सके। अभी वे भारत में रहकर चीन से तिब्बत को अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। अब सर्वतोभावेन चीन के अनुगत पंछेण लामा यहाँ के नाममात्र के प्रशासक हैं।
तिब्बत के आधुनिक इतिहास की प्रमुख घटनाएँँ - दलाई लामा
संपादित करें- 1855-56 : नेपाल-भोट युद्ध। तिब्बत ने नेपाल दरबार को दस हजार रूपये वार्षिक देने का समझौता किया। ल्हासा में नेपाल की व्यापारिक केन्द्र बनाने को भी स्वीकृति दी।
- 1906-07 : धोखे से चीन ने तिब्बत पर अपना अधिकार जमा लिया और याटुंग ग्याड्से समेत गरटोक में अपनी चौकियां स्थापित कर लीं।
- 1913 : तेरहवें दलाई लामा ने स्वतंत्रता की घोषणा की और 1950 तक तिब्बतियों ने वहां शासन किया।
- 1935: 6 जुलाई को चौदहवें दलाई लामा का जन्म हुआ।
- 1950: अक्टूबर में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी तिब्बत में दाखिल हुई। नवंबर में चौदहवें दलाई लामा की ताजपोशी हुई।
- 1951: मई में तिब्बत के प्रतिनिधियों ने दबाव में आकर चीन के साथ एक 17-सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें तिब्बत को स्वायत्तता देने का वादा किया गया था। सितंबर में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ल्हासा में दाखिल हो गई।
- 1959: 10 मार्च को चीन के कब्जे के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ।
- 1965: चीन ने तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र का गठन किया।
- 1979: तिब्बत में मंद गति से उदारीकरण शुरू हुआ।
- 1985: तिब्बत को बड़े पैमाने पर पर्यटन के लिए खोल दिया गया।
- 1989: हू जिंताओ और उनकी पार्टी के नेताओं के नेतृत्व में तिब्बत में विरोध प्रदर्शन दबा दिया गया।
- 2002: चीन सरकार ने दलाई लामा के साथ बातचीत प्रारंभ की। लेकिन वार्ता अब तक बेनतीजा।
- 2008: 14 मार्च को ल्हासा में चीन विरोधी दंगे के बाद तिब्बत में विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। चीन सरकार ने इस प्रदर्शन को दबा दिया। कई लोगों की गिरफ्तारी भी हुई और तिब्बत में विदेशी पत्रकारों के घुसने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
- 2011 : १४वें दलाई लामा ने तिब्बत के राष्ट्रप्रमुख के अपने राजनैतिक अधिकार का परित्याग करके लोकतांत्रिक विधि से चुने हुए डॉ लोबसांग सांगेय को सारे अधिकार प्रदान कर दिए। इस प्रकार ३७० वर्षों से चले आ रहे तिब्बत के गांदेन फोदरांग धर्मतंत्र शासन का अन्त हो गया। (1642–2011).
- 2020 : अमेरिका ने लोबसांग सांगे को ह्वाइट हाउस में स्वागत किया। लगभग ६० वर्ष बाद किसी तिब्बती नेता को व्हाइट हाउस में प्रवेश मिला।[1]
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- तिब्बत:संक्षिप्त इतिहास
- दलाई लामा की तिब्बत के लिए जंग (स्वतंत्र आवाज)
- तिब्बत पर चीन के खूनी अत्याचारों के पचास वर्ष (डा.सतीश चन्द्र मित्तल)
- तिब्बत कभी नहीं रहा चीन का हिस्सा, क्या है इसका इतिहास जानिए
- चीन के कब्ज़े में तिब्बत कब और कैसे आया?
- तिब्बत की शीर्ष धरा और वेद Archived 2021-03-23 at the वेबैक मशीन (पाञ्चजन्य)