तुलनात्मक साहित्य (Comparative literature) वह विद्या-शाखा है जिसमें दो या अधिक भिन्न भाषायी, राष्ट्रीय या सांस्कृतिक समूहों के साहित्य का अध्ययन किया जाता है। तुलना इस अध्ययन का मुख्य अंग है। साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन व्यापक दृष्टि प्रदान करता है। संकीर्णता के विरोध में व्यापकता आज के विश्व-मनुष्य की आवश्यकता है।

हेनरी एच.एच.रेमाक ने तुलनात्मक साहित्य की परिभाषा इस प्रकार की है-

तुलनात्मक साहित्य एकक राष्ट्र के साहित्य की परिधि के परे दूसरे राष्ट्रों के साहित्य के साथ तुलनात्मक अध्ययन है तथा यह अध्ययन कला, इतिहास, समाज विज्ञान, धर्मशास्त्र आदि ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के आपसी सम्बन्धों का भी अध्ययन है।[1]

परिचय संपादित करें

तुलनात्मक साहित्य अंग्रेजी के ‘कम्पैरेटिव लिटरेचर’ का हिन्दी अनुवाद है। यह एक स्वतन्त्र विद्याशाखा के रूप में विकसित है तथा विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में इसके अध्ययन-अध्यापन के कार्य को आजकल विशेष महत्व दिया जा रहा है। अंग्रेजी के कवि ‘मैथ्यू आर्नल्ड’ ने सन् 1848 में अपने एक पत्र में सबसे पहले ‘कम्पैरेटिव लिटरेचर’ पद का प्रयोग किया था। भारत में सन् 1907 में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने विश्व साहित्य का उल्लेख करते हुए साहित्य के अध्ययन में तुलनात्मक दृष्टि की आवश्यकता पर जोर दिया था।[2] मानव के सांस्कृतिक इतिहास की सहज धारा के आश्रय में ही ‘रवि बाबू’ ने तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन पर बल दिया था।

तुलनात्मक साहित्य के विषय में एक स्वतंत्र अध्ययन को मान्यता देना आज भी विवादग्रस्त विषय है। तुलनात्मक साहित्य का भी एक दृष्टिकोण है, एक प्रविधि है और एक तकनीकी है। तुलनात्मक साहित्य की प्रवृत्तियॉं अभी भी पूरी तरह से स्थिर नहीं हो पायी हैं। इसके अध्ययन का आरम्भ हम इतिहास बोध से करते हैं, किन्तु उसकी परिसमाप्ति एक प्रकार के सार्वभौम साहित्येतिहास में होती हैं।

तुलनात्मक साहित्य, एकक साहित्य (single literature) अध्ययन से भिन्न है। एकक साहित्य का अध्ययन जहाँ साहित्य के सीमित अध्ययन की दिशा की ओर संकेत करता है, वहीं तुलनात्मक साहित्य हमें साहित्य के व्यापक अध्ययन की दिशा में ले जाता है। यहाँ तुलना इस बात की नहीं होती कि कौन-सा साहित्यकार श्रेष्ठ है बल्कि तुलना इस बात की होती है कि दोनों साहित्यकारों में समानता और भिन्नता के बिन्दु कौन-से हैं। कहाँ भाव-संवेदनाएं-विचार-कला एक दूसरे के साथ मिलते हैं कहाँ अलग हैं। यह दूसरे को पहचानने तथा स्वीकार करने की दिशा में पाठक को ले जाता है। वर्तमान समय में इसकी विशेष आवश्यकता है।

तुलनात्मक साहित्य और भारत संपादित करें

भारत एक बहुभाषी देश है। यहाँ न केवल 1652 मातृभाषाएँ है, अपितु अनेक समुन्नत साहित्यिक भाषाएं भी हैं। जिस प्रकार अनेक वर्षों के आपसी सम्पर्क और सामाजिक द्विभाषिकता के कारण भारतीय भाषाएं अपनी रूप रचना से भिन्न होते हुए भी अपनी आर्थिक संरचना में समरूप हैं, इसी प्रकार यह भी कहा जा सकता है कि अपने जातीय इतिहास, सामाजिक चेतना, सांस्कृतिक मूल्य एवं साहित्यिक संवेदना के संदर्भ में भारतीय साहित्य एक है। ‘भारतीय साहित्य और संस्कृति’ की संकल्पना के मूल्य में भारतीय संस्कृति की आधारभूत एकता और वैशिष्ट्य की पहचान की छटपटाहट है। किन्तु इस ‘पहचान’ के लिए जो प्रयास होना चाहिए था उसके लिए साहित्यिक अध्ययन का जो तुलनात्मक आधार मिलना चाहिए था और तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन के जो संदर्भ, प्रणाली और तकनीक का विकास होना चाहिए था, वह दिखलाई नहीं पड़ता। भारत में बहुत कम विश्वविद्यालय हैं जहां ‘तुलनात्मक साहित्य’ की संकल्पना एक विधा के रूप में हो।

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

संदर्भ संपादित करें

  1. इंद्रनाथ, चौधुरी (2006). तुलनात्मक साहित्य:भारतीय परिप्रेक्ष्य. नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन. पृ॰ 17.
  2. इंद्रनाथ, चौधुरी (2006). तुलनात्मक साहित्य:भारतीय परिप्रेक्ष्य. नई दिल्ली: वाणी प्रकाशन. पृ॰ 7.