थाना भवन
थाना भवन (Thana Bhawan) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के शामली ज़िले में स्थित एक नगर है।[1][2]
थाना भवन Thana Bhawan | |
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निर्देशांक: 29°34′59″N 77°25′01″E / 29.583°N 77.417°Eनिर्देशांक: 29°34′59″N 77°25′01″E / 29.583°N 77.417°E | |
देश | भारत |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
ज़िला | शामली ज़िला |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 36,669 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भामस (यूटीसी+5:30) |
पिनकोड | 247777 |
कस्बा थाना भवन उत्तर प्रदेश के जनपद शामली में स्थित है। इसके दक्षिण में देश की राजधानी दिल्ली लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर, उत्तर में जनपद सहारनपुर 45 किलोमीटर की दूरी पर, पूरब में जनपद मुजफ्फरनगर 35 किलोमीटर की दूरी पर है और यमुना नदी यहां से लगभग 45 किलोमीटर दूर पश्चिम में बह रही है।
थाना भवन नगर की गणना पौराणिक नगरों में की जाती है। महाभारत काल में पांडव इस क्षेत्र से होकर अपने बनवास को गए थे और उन्होंने एक शिवलिंग (दु:खभंजन महादेव) की स्थापना यहां जस्सू वाला मंदिर पर की। वह शिवलिंग महारथी भीम के द्वारा स्थापित किया गया था इसलिए थाना भवन का एक पौराणिक नाम भीम स्थानक (संस्कृत में स्थानक को स्थान कहते हैं). था, जो आगे चलकर भीम का थाना के रूप में लोकप्रिय हुआ।
एक समय ऐसा भी आया जब इस पृथ्वी पर कुछ लोगों ने मूर्ति पूजा को उचित नहीं माना और उन्होंने मंदिरों को तोड़ा उनकी मूर्तियों को खंडित किया और कुछ मंदिरों की मूर्तियों को वहां से उठाकर जंगलों में या तालाबों में फेंक दिया। काफी लम्बे समय तक इसी तरह धर्म परिवर्तन होते रहे।
अंग्रेजों के शासन काल में पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन चल रहे थे इसी प्रकार का एक आंदोलन भीम का थाना, झिंझाना, शामली एवं आस- पास के लोगों ने भी किया और इसके अंतर्गत कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया और क्षेत्र के मुखिया (काज़ी) को आदेश दिया गया कि जिन - जिन स्थानों से वें संबंधित हैं उन स्थानों को नष्ट कर दें। उस समय के मुखिया अर्थात काज़ी ने सभी नागरिकों को जंगलों में जाकर छुप जाने का आदेश दिया और रातों-रात उस क्षेत्र को सांकेतिक रूप से नष्ट कर दिया और सभी लोगों को बचा लिया। वह जंगल; आज वह स्थान है जहां पर कस्बा थाना भवन है और पूर्व का थाना भवन (भीम का थाना) रेलवे लाइन के उस पार पश्चिम की ओर था जहां आज आबाद गढ़/महमूद गढ़ है।
फिर काज़ी का आदेश हुआ कि जंगलों में ही अपने रहने के स्थान बना लिए जाएं और धीरे-धीरे अपना सामान रातो- रात ले जाकर अपना आगे का जीवन व्यतीत करें और हुआ भी ऐसा ही।
संयोग से एक तालाब इस जंगल में भी था। नए घर बनाने के लिए लोग उस तालाब से गारा निकालकर कच्ची ईंट बना रहे थे तभी एक मां भवानी की मूर्ति उस तालाब से निकली और यहां के नागरिकों ने मिलकर उस मां भवानी का एक भवन उसी तालाब के किनारे बनवा दिया।
आगे चलकर आसपास के गांवों के लोग जब यहां आते थे तो वें कहते थे कि हम "भवन" जा रहे हैं और कुछ कहते थे कि हम "थाने" जा रहे हैं। प्राचीन नाम 'भीम - स्थानक' से जो नाम परिवर्तित होकर 'भीम का थाना' बन गया था, वह कस्बा धीरे - धीरे थाना और भवन दोनों शब्दों को मिलकर "थाना भवन" के रूप में परिवर्तित हो गया। और इसी नाम से यह कस्बा आज भी जाना जाता है।
विवरण
संपादित करेंशामली ज़िला पहले मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के अंतर्गत आता था। यह दिल्ली-शामली राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। 1857 में शामली में इस क्षेत्र के लोगों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।
उल्लेखनीय व्यक्तित्व
संपादित करें- अशरफ़ अली थानवी (1863-1943) देवबंदी आंदोलन के एक भारतीय इस्लामी विद्वान थे। उन्होंने अपने जीवन के दौरान एक हजार से अधिक पुस्तकें लिखीं।
- शौकत थानवी (1904-1963), जिनका परिवार थाना भवन से आया था, एक पाकिस्तानी पत्रकार, निबंधकार, उपन्यासकार, लघुकथाकार, प्रसारक, नाटककार, और कवि थे। उन्हें 1963 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति से तमगा-ए-इम्तियाज पुरस्कार मिला।
- ओम थानवी हिन्दी के लेखक, वरिष्ठ पत्रकार, संपादक तथा आलोचक हैं.
भोपाल सिंह शर्मा "पौलस्त्य"
- सदियों याद रहेगा महात्मा रावण का साहित्य
'तेरा निष्ठुर मौन प्रियतम,
जीवन का अवसाद बन गया,
रात दिन जलती चिता से,
यह हृदय शमशान बन गया।'
काव्य की इन पक्तियों से साहित्य जगत में कदम रखने वाले बाबा भोपाल सिंह 'पौलत्स्य' ने देशभर में अपनी कृतियों से शामली जिले का नाम रोशन किया। संवेदनाओ की टीस में ताउम्र सृजन का समाधान खोजने वाले साहित्य के पुरोधा भोपाल सिंह पौलस्त्य आज भले ही सशरीर हमारे बीच नहीं है, लेकिन सच्चाई से रूबरू कराती उनकी अमर रचनाएं हमारे लिए अमूल्य धरोहर है।
सिद्ध बाबा के नाम से जाने वाले साहित्यकार भोपाल सिंह पौलस्त्य का जन्म 1 सितंबर 1938 को मुजफ्फरनगर जनपद के गांव भोपा में अभय सिंह के परिवार में राजकली की गोद में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा कैराना में प्रारंभ हुई, लेकिन शिक्षा दीक्षा शामली में हुई परंतु पौलस्त्य की कर्मभूमि शिक्षक के रूप में थानाभवन रही। कस्बे के लाला लाजपतराय इंटर कालेज से प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त होने के बाद भी पौलस्त्य उपन्यास लेखन में लगे रहे। पौलस्त्य भले ही साहित्य के उस मंच तक नहीं पहुंच सके, जहां से उन्हें पूरा देश देख पाता, लेकिन उनकी रचनाओं को जिसने भी पढ़ा वह उनकी लेखनी का मुरीद हो गया।
पौलस्त्य का मानना था कि समाज में रहकर घात अपघात और विश्वासघात की वे गिनती नहीं करते, क्योंकि संवेदनाएं टीस देती है। महात्मा रावण उनकी कालजयी रचनाओं में से एक है। चाटुकारिता से परहेज रखने वाले पौलस्त्य के जीवन मे कई ऐसे अवसर आए जो उन्हें साहित्यकारों की जमात में सबसे आगे खड़ा कर सकते थे, लेकिन स्वाभिमान से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। उनके करीबी बताते है कि पौलस्त्य में शिक्षा और लेखन का ऐसा जुनून था कि यदि देर रात भी कोई विषय दिमाग में आता तो पूरी रात उसे लिखने में बिता देते थे। हिन्दी काव्य रश्मिरथि की आलोचना करते हुए लगातार 36 घंटे लिख कर रश्मिरथि की आलोचना शीर्षक से एक पत्रिका प्रकाशित कराई। पौलस्त्य राष्ट्र के प्रति पूरा समर्पण भाव रखते थे। यही कारण रहा कि जीवन में उनके द्वारा लिखी पुस्तकों पर उन्होंने कभी मूल्य के रूप मे पैसे नहीं लिखा।
"आयरन लेडी" ने भी लेखन का माना था लोहा
थानाभवन के साहित्य पुरोधा के लेखन की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी मुरीद थी। पौलस्त्य की अमर रचना महात्मा रावण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दिल्ली बुलाकर पौलस्त्य को सम्मानित किया था।
पौलस्त्य की अमर रचनाएं
साहित्यकार पौलस्त्य ने वैसे तो तीन दर्जन से भी अधिक रचनाएं लिखी, लेकिन इनमें जययात्रा, भ़ूल का शूल, देवयानी, अमर विधा, रामात्मा, कृष्णद्वीप, पृथ्वीपुत्र, ऋषभ नंदन, भावना आदि काफी प्रसिद्ध है। कवि, परशुधर राम, अभी तो युद्ध शेष है ने भी खूब प्रसिद्धि हासिल की।
भोपाल सिंह पौलस्त्य का जन्म 1 सितंबर 1938 को मुजफ्फरनगर जनपद के गांव भोपा में अभय सिंह के परिवार में राजकली की गोद में हुआ था।
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इन्हें भी देखें
संपादित करेंथानभवान मे एक यारपुर गांव है वहां पर 400 परिवार के लोग रहते हैं थाना भवन का यार पुर गांव बहुत ही दबंग गांव है यहां पर जाट हरिजन,गडरिया सर्व समाज के लोग मिलजुल कर रहते हे।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Uttar Pradesh in Statistics," Kripa Shankar, APH Publishing, 1987, ISBN 9788170240716
- ↑ "Political Process in Uttar Pradesh: Identity, Economic Reforms, and Governance Archived 2017-04-23 at the वेबैक मशीन," Sudha Pai (editor), Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, Pearson Education India, 2007, ISBN 9788131707975