दलीप सिंह (महाराजा)
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महाराजा दलीप सिंह (6 सितम्बर 1838, लाहौर -- 22 अक्टूबर, 1893, पेरिस) महाराजा रणजीत सिंह के सबसे छोटे पुत्र तथा सिख साम्राज्य के अन्तिम शासक थे। इन्हें 1843 ई. में पाँच वर्ष की आयु में अपनी माँ रानी ज़िन्दाँ के संरक्षण में राजसिंहासन पर बैठाया गया।
दलीप सिंह | |
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'सुकरचकिया मिस्ल' के प्रमुख | |
पूर्ववर्ती | महाराजा रणजीत सिंह |
घराना | संधवालिया (जाट सिख) |
पिता | महाराजा रणजीत सिंह |
माता | जिन्द कौर |
धर्म | सिख |
परिचय
संपादित करेंरणजीत सिंह के मरते ही पंजाब की दुर्दशा शुरू हो गई। दलीप सिंह पंजाब का अंतिम सिक्ख शासक था जो सन् १८४३ में महाराजा बना। राज्य का काम उसकी माँ रानी जिंदाँ देखती थीं। इस समय अराजकता फैली होने के कारण खालसा सेना सर्वशक्तिमान् हो गई। सेना की शक्ति से भयभीत होकर दरबार के स्वार्थी सिक्खों ने खालसा को १८४५ के प्रथम सिक्ख-अंग्रेज-युद्ध में भिड़ा दिया जिसमें सिक्खों की हार हुई और उसे सतलुज नदी के बायीं ओर का सारा क्षेत्र एवं जलंधर दोआब अंग्रेज़ों को समर्पित करके डेढ़ करोड़ रुपया हर्जाना देकर १८४६ में लाहौर की संधि करने के लिए बाध्य होना पड़ा। रानी ज़िन्दाँ से नाबालिग राजा की संरक्षकता छीन ली गई और उसके सारे अधिकार सिक्खों की परिषद में निहित कर दिये गये।
परिषद ने दलीप सिंह की सरकार को 1848 ई. में ब्रिटिश भारतीय सरकार के विरुद्ध दूसरे युद्ध में फँसा दिया। इस बार भी अंग्रेज़ों के हाथों सिक्खों की पराजय हुई और ब्रिटिश विजेताओं ने दलीपसिंह को अपदस्थ करके पंजाब को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। कोहिनूर हीरा छीनकर महारानी विक्टोरिया को भेज दिया गया। दलीप सिंह को पाँच लाख रुपया सालाना पेंशन देकर रानी ज़िंदा के साथ इंग्लैण्ड भेज दिया गया, जहाँ दलीप सिंह ने ईसाई धर्म को ग्रहण कर लिया और वह नारकाक में कुछ समय तक ज़मींदार रहा। इंग्लैंण्ड प्रवास के दौरान दलीप सिंह ने 1887 ई. में रूस की यात्रा की और वहाँ पर ज़ार को भारत पर हमला करने के लिए राज़ी करने का असफल प्रयास किया। बाद में वह भारत लौट आया और फिर से अपना पुराना सिक्ख धर्म ग्रहण करके शेष जीवन व्यतीत किया।
19 अप्रैल 2007 को बोनहम्स , लंदन में एक नीलामी में , 1859 में रोम में विक्टोरियन मूर्तिकार जॉन गिब्सन , आरए द्वारा महाराजा दलीप सिंह के 74 सेमी ऊंचे सफेद संगमरमर के चित्र की प्रतिमा [29] ने £1.7 मिलियन (£1.5 मिलियन प्लस प्रीमियम ) प्राप्त किया। [1]
महाराजा दलीप सिंह: ए मॉन्यूमेंट ऑफ इनजस्टिस नामक एक फिल्म 2007 में बनी थी, जिसका निर्देशन पीएस नरूला ने किया था।[2]
मृत्यु
संपादित करेंमहाराजा दलीप सिंह की 1893 में 55 वर्ष की आयु में पेरिस में मृत्यु हो गई, उन्होंने पंद्रह वर्ष की आयु के बाद भारत को केवल दो संक्षिप्त दौरे किये एक, 1860 में कड़े नियंत्रित दौरे (अपनी मां को इंग्लैंड लाने के लिए) और 1863 में (अपनी मां के शरीर का अंतिम संस्कार करने के लिए) देखने के बाद।
महाराजा दलीप सिंह की उनके शरीर को भारत लौटाने की इच्छा का सम्मान नहीं किया गया, अशांति के डर से, पंजाब के शेर के बेटे के अंतिम संस्कार के प्रतीकात्मक मूल्य और ब्रिटिश शासन की बढ़ती नाराजगी को देखते हुए। उनके शरीर को उनकी पत्नी महारानी बंबा और उनके बेटे प्रिंस एडवर्ड अल्बर्ट दलीप सिंह की कब्र के बगल में एल्वेडेन चर्च में, भारत कार्यालय की देखरेख में ईसाई संस्कारों के अनुसार दफनाने के लिए वापस लाया गया था। कब्रें चर्च के पश्चिम की ओर स्थित हैं।[3]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ Duleep Singh Statue Archived मार्च 4, 2007 at the वेबैक मशीन
- ↑ Maharaja Duleep Singh: A Monument Of Injustice (DVD) Archived जुलाई 12, 2009 at the वेबैक मशीन
- ↑ Royal tribute to first Sikh settler बीबीसी न्यूज़, July 29, 1999.
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- सिखों के अंतिम राजा क्यों बने थे ईसाई? (बीबीसी हिन्दी)
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