दिङ्नाग
दिङ्नाग (चीनी भाषा: 域龍, तिब्बती भाषा: ཕྱོགས་ཀྱི་གླང་པོ་ ; 480-540 ई.) भारतीय दार्शनिक एवं बौद्ध न्याय के संस्थापकों में से एक। प्रमाणसमुच्चय उनकी प्रसिद्ध रचना है। दिङ्नाग दो ही प्रमाण स्वीकार करते हैं- प्रत्यक्ष और अनुमान।
दिङ्नाग संस्कृत के एक प्रसिद्ध कवि थे। वे रामकथा पर आश्रित कुन्दमाला नामक नाटक के रचयिता माने जाते हैं। कुन्दमाला में प्राप्त आन्तरिक प्रमाणों से यह प्रतीत होता है कि कुन्दमाला के रचयिता कवि (दिङ्नाग) दक्षिण भारत अथवा श्रीलंका के निवासी थे। कुन्दमाला की रचना उत्तररामचरित से पहले हुयी थी। उसमें प्रयुक्त प्राकृत भाषा के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कुन्दमाला की रचना पाँचवीं शताब्दी में किसी समय हुयी होगी।
कुन्दमाला में कवि की शैली नितान्त सरस और सरला है। यहाँ न लम्बे-लम्बे समासयुक्त वाक्य हैं, न ही शास्त्रमात्र में प्रयुक्त अप्रचलित शब्दों का समावेश । प्रसादगुण इनकी कृतियों की शोभा बढ़ाता है। एक श्लोक देखें-
लङ्केश्वरस्य भवने सुचिरं स्थितेति
रामेण लोकपरिवादभयाकुलेन
निर्वासितां जनपदादपि गर्भगुर्वीं
सीतां वनाय परिकर्षति लक्ष्मणोऽयम् ॥
कृतियाँ
संपादित करें- प्रमाणसमुच्चय
- हेतुचक्र
- आलम्बनपरीक्षा तथा इसकी स्वरचित वृत्ति
- अभिधर्मकोशमर्मप्रदीप -- वसुबन्धु के अभिधर्मकोश का सक्षिप्त रूप
- महायान सम्रदाय के अष्टसाहस्रिकप्रज्ञापारमितासूत्र का सारांश
- त्रिकालपरीक्षा
- न्यायमुख
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- Dignaga's Logic of Invention, by Volker Peckhaus
- Das Rad der Gründe, German translation of The Wheel of Reason
- Vidhabhusana, Satis Chandra (1907). History of the Mediaeval School of Indian Logic. Calcutta University.
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