देवपाल (9वीं शताब्दी) भारतीय उपमहाद्वीप में बंगाल क्षेत्र के हिंदू कायस्थ पाल साम्राज्य का शासक था। वह इस वंश के तीसरे राजा थे, और अपने पिता धर्मपाल के बाद उत्तराधिकारी बने थे। देवपाल ने वर्तमान ओडिशा, कश्मीर और अफगानिस्तान को जीतकर साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। पाल अभिलेखों ने उन्हें कई अन्य विजयों का भी श्रेय दिया है। [1][2]

देवपाल के अनसुने तथ्य संपादित करें

देवपाल धर्मपाल का पुत्र एवं पाल वंश का उत्तराधिकारी था।

इसे 810 ई. के लगभग पाल वंश की गद्दी पर बैठाया गया था।

देवपाल ने लगभग 810 से 850 ई. तक सफलतापूर्वक राज्य किया।

उसने 'प्राग्यज्योतिषपुर' (असम), उड़ीसा एवं नेपाल के कुछ भाग पर अधिकार कर लिया था।

देवपाल की प्रमुख विजयों में गुर्जर प्रतिहार शासक मिहिर भोज पर प्राप्त विजय सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थी।

अरब यात्री सुलेमान ने देवपाल को राष्ट्रकूट एवं प्रतिहार शासकों में सबसे अधिक शक्तिशाली बताया है।

देवपाल ने 'मुंगेर' में अपनी राजधानी स्थापित की थी।

'बादल स्तम्भ' पर उत्कीर्ण लेख इस बात का दावा करता है कि, "उत्कलों की प्रजाति का सफाया कर दिया, हूणों का धमण्ड खण्डित किया और द्रविड़ तथा गुर्जर शासकों के मिथ्याभिमान को ध्वस्त कर दिया"।

प्रशासनिक कार्यों में देवपाल को अपने योग्य मंत्री 'दर्भपणि' तथा 'केदार मिश्र' से सहायता प्राप्त हुई तथा उसके सैनिक अभियानों में उसके चचेरे भाई 'जयपाल' ने उसकी सहायता की थी।

देवपाल एक हिन्दू राजा था लेकिन बौद्ध धर्म को भी मानने वाला था उन्हें भी 'परमसौगात' कहा गया है।

जावा के शैलेन्द्र वंशी शासक 'वालपुदेव' के अनुरोध पर देवपाल ने उसे बौद्ध विहार बनवाने के लिए पाँच गाँव दान में दिया थे।

उसने 'नगरहार' (जलालाबाद) के प्रसिद्ध विद्धान 'वीरदेव' को 'नालन्दा विश्वविद्यालय' का प्रधान आचार्य नियुक्त किया।

यह भी देखे संपादित करें

संदर्भ संपादित करें

  1. "Pala", Oxford Art Online, Oxford University Press, 2003, अभिगमन तिथि 2021-11-05
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर