द्विराष्ट्र सिद्धांत
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द्विराष्ट्र सिद्धांत या दो क़ौमी नज़रिया भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों के हिन्दुओं से अलग पहचान का सिद्धांत है।
परिचय
संपादित करें1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दस साल बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के मुख्य संस्थापक सय्यद अहमद ख़ान ने हिन्दी–उर्दू विवाद के कारण 1867 में एक द्विराष्ट्र सिद्धांत को पेश किया था। इस सिद्धांत की सरल परिभाषा के अनुसार न केवल भारतीय उपमहाद्वीप की संयुक्त राष्ट्रीयता के सिद्धांत को अप्रतिष्ठित किया गया बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के हिन्दूओं और मुस्लमानों को दो विभिन्न राष्ट्र क़रार दिया गया|इस सिद्धांत द्वारा ही भारत पाकिस्तान दोनों राष्ट्रों का बंटवारा संभव हो पाया|
मुस्लिम नेतृत्व और द्विराष्ट्र सिद्धांत
संपादित करेंअलीगढ़
संपादित करेंमुहम्मद इक़बाल
संपादित करेंयूरोप में अध्ययन और मस्जिद कॉर्डोबा में अज़ान देने के बाद मुहम्मद इक़बाल ने व्यावहारिक राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया। तो यह राजनीतिक विचारधारा सामने आए। 1930 में इलाहाबाद में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के इक्कीसवीं वार्षिक बैठक की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने न केवल द्विराष्ट्र सिद्धांत खुलकर समझाया बल्कि इसी सिद्धांत के आधार पर उन्होंने हिन्दुस्तान में एक मुस्लिम राज्य की स्थापना की भविष्यवाणी भी की थी।
मुहम्मद अली जिन्नाह
संपादित करेंइन्होंने द्विराष्ट्र सिद्धांत के बारे में कहा था -हिन्दू मुस्लिम एक राष्ट्र नहीं बल्कि दो राष्ट्र हैं।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
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